अफवाहपंथियों-शरम करो…

हम तो कहें कि शीर्षक के रूप में लटकाए गए नारे का व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को बजट का अलग से प्रावधान करने की जरूरत है। कोई बंदा अफवाह फैलाए उसका घर घेर लो। उसे घर से बाहर मती निकलने दो। यह अंतिम स्टेज। इससे पहले वो जहां जाए.. जिस समारोह में जाए.. जिस मिटिंग-बैठक में जाए.. जिस कार्यक्रम में जाए। उसका जबरदस्त घेराव किया जाए। उसके खिलाफ नारेबाजी की जाए-‘अफवाहपंथियों-शरम करो..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

अफवाहें समाज की दुश्मन है। अफवाहे फैलाने वाले देश के दुश्मन हैं। अफवाहें शहर में आग लगा सकती है। अफवाहें समाज में अलगाव पैदा कर देती हैं। अफवाहों से कटुता बढने की आशंका। अफवाहों से अमन-चैन को खतरा। अफवाहें समाजों में वैमनस्यता पैदा करती है। अफवाहें समाज में खार पैदा करती है। अफवाहें ऐसी आग लगाती हैं कि बुझाना भारी पड़ जाता है। समझ में नही आता है कि ऐसी विस्फोटक जुबानी गंदगी के आगे ‘वाह कैसे लग गया। अपने यहां अच्छे-मनोरंजक और सुट्ठे कार्य होने पर ‘वाह कहने की परंपरा है।

मौत-मैयत को छोड़ द्यो वरना लगभग सभी जगह इनका उपयोग किसी ना किसी रूप में होता रहा है। कवि सम्मेलन-मुशायरे में ‘वाह और ‘वाह-वाह की सुर लहरियां ना फूटे तो धूड़ है। दर्शक-श्रोता तालियां कूटने के साथ ज्यों-ज्यों ‘वाह-वाह के सुर फोड़ते हैं त्यों-त्यों मंच गरम होता है। माईक थामे कवि-शाइर को ऊर्जा मिलती है। बिना ‘वाह-वाह के ऐसे सम्मेलन शोकसभा की तरह नजर आते हैं। कई बार तो खुद कवि-शाइर श्रोताओं को अपने साथ गाने-गुनगुनाने और तालियां बजाने या ‘वाह…- वाह.. के सुर उगलने का आह्वान करते नजर आते हैं।

लजीज खाना मुंह में जाते ही ‘वाह निकल जाता है। वाह! क्या ताज है, वो तो ठीक है। वाह! क्या पकोड़े हैं। वाह! क्या सीरा है। वाह! क्या मलाई-कोफ्ता है। वाह! क्या पराठे हैं। वाह! क्या आलू-टिक्की है। कोई जानदार-शानदार मानखा-मानखी दिख जाए तो वाह! क्या ब्यूटी है.. क्या पर्सनेलिटी है। मन भावन-नजारे दिख जाएं तो वाह! क्या सीन है.. के सुर फूट ही जाते है। कुल जमा जो चीज-वस्तु-बातें-सीन-नजारे मन के भीतर तक उतर जाएं उनके लिए ‘वाह निकलना या निकल जाना स्वाभाविक है।

मगर समाज की दुश्मन ‘अफवाह के आगे ‘वाह फिट करना हमें तो जंचा नहीं। जंचा तो किसी को भी नहीं, मगर किसी ने ‘अफ के आगे चस्पा किए ‘वाह पर गौर करने की बजाय अफवाह को रूटीन में लिया। अब, जब हमने एतराज जताया तो सारे लोग अपने पाले में। जो लोग ‘वाह को ‘अफ से रूटीन में जोड़कर देखते रहे, वो भी गंभीर हो गए। कुछ बंदे तो कोर्ट में जाने की सोच रहे थे। कह रहे थे आदरजोग कोर्ट से ‘अफ के आगे से ‘वाह निकालने की मांग करेंगे। हमने समझा के मामला नक्की किया। नितर पता नही क्या होता। कोर्ट में वैसे भी-मुकदमों के अंबार लगे हैं। सच बात तो ये कि ऐसी-वैसी याचिकाएं रद्द होणी तय है। उल्टे जुरमाना ठुक गया तो बखेड़ा हो जाएगा।

जब-जब कोई अफवाह फैली, कहीं ना कहीं कोई पंगा हुआ। ज्यों-ज्यों अफवाहें पसरी पंगा भी पसरता गया। कई समाज विरोधी ताकतें अफवाहें फैला कर अपना उल्लू सीधा करने की नाकाम कोशिश करती रही है। समझवान लोग उनके इरादे भांप जाते हैं। कई बार नुकसान भी हो जाता है। नुकसान इधर का हो या उधर का। उधर का हो या इधर का। भुगतना तो समाज को ही पड़ता है। समाज का नुकसान देश का नुकसान।

हथाईबाजों ने कई मसलों-मुद्दों को लेकर अफवाहें उड़ती देखी। मौका परस्तों और अमन-चैन के दुश्मनों ने जब भी मौका मिला, अफवाहें उड़ाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। इन दिनों भी वही हो रहा है। एक तरफ पूरा देश कोरोना किलर वैक्सीन को लेकर विज्ञानियों-ज्ञानियों के प्रति आभार जता रहा है। पूरा देश सुनहरे दिन वापस आने की बाट जोह रहा है और दूसरी तरफ कुछ लोगों के पेट में इस गंभीर मसले पर भी मरोड़े चल रहे हैं। अरे नामुरादों, थोड़ी तो शरम करो। नीट तो अंधेरा छट रहा है और तुम ऐसे समय मे भी सियासी रोटियां सेकने से बाज नही आ रहे हो।

हथाईबाजों ने इस मुद्दे पर अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग मुनीमों की जुबान से अलग-अलग अफवाहें सुनी। देश की सब से पुरानी पार्टी का एक बिना जनाधार वाला बकवास छाप नेता वैक्सीन को कटके काढ रहा है तो उसी की पार्टी के दो सीएम टीके का टीका निकाल रहे हैं। वैक्सीन की तारीफ कर रहे हैें। एक बकवासी वैक्सीन को भाजपा की बता रहा है। कोई इसे सूअर के मास से जोड़ रहा है तो किसी ने अफवाह फैला दी कि इसके लगाने से ‘नपुसंकताÓ आ सकती है।

हथाईबाजों ने ऐसी भतेरी अफवाहें सुनी। सुन कर इतना गुस्सा आया कि उन के मुंह में नमक भर दें। पहले वो वैक्सीन कब आएगी का राग आलापते थे। अब, आ गई है तो भ्रम फैला रहे हैं। ऐसों का घेराव होना चाहिए। बहिष्कार होना चाहिए। ऐसों के खिलाफ नारेबाजी होती रहनी चाहिए। वो जहां जाएं-उनके खिलाफ नारे लगें-‘अफवाहपंथियों.. शरम करो..। उन्हें शरम आएगी, हमें तो शक है।