‘संघ संग’: आरएसएस के हिंदुत्व एजेंडे को धार देने में जुटे भजनलाल

CM BHAJAN LAL
CM BHAJAN LAL

जानिए संसद से राज्यों तक धर्मपरिवर्तन पर क्या हुआ

राजस्थान की भजनलाल सरकार संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने में जुटी है। लव जिहाद के खिलाफ प्रदेश में नया कानून लाने का ऐलान इसकी शुरुआत भर है।

उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान में भी संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को बेहद आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। राजस्थान में लोकसभा चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक बीजेपी ने लव जिहाद के मुद्दे को जबरदस्त तरीके से प्रचारित किया था। पिछले दिनों मथुरा में संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी धर्मांतरण, लव जिहाद जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।

अब राजस्थान की भजनलाल सरकार ‘लव जिहाद’ के खिलाफ आने वाले विधानसभा सत्र में प्रोविजन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्जन ऑफ रिलीजन बिल- 2024 लाने जा रही है। शनिवार को कैबिनेट की बैठक में बिल के मसौदे को मंजूरी दे दी गई। यह सिर्फ शुरुआत है। कैबिनेट के ऐलान के बाद रविवार को राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी ने प्रेस कांफ्रेंस कर लव जिहाद पर कानून लाए जाने को ऐतिहासिक फैसला बता दिया। यह सामान्य घटना नहीं है। घनश्याम तिवाड़ी संघ पृष्ट भूमि से आते हैं। यह कांफ्रेंस संघ के एजेंडे के तहत ही की गई।

वसुंधरा राजे के कार्यकाल में भी 2 बार आया था विधेयक

हालांकि राजस्थान में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार भी 2 बार धर्म स्वातंत्र विधेयक लाई थी। लेकिन राष्ट्रपति से इसे मंजूरी नहीं मिली। बीजेपी की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे भी 2006 व 2008 में धर्म स्वातन्त्र्य विधेयक लाई थी। लेकिन पिछले 16 साल में यह विधेयक राष्ट्रपति भवन में अटका रहा। राष्ट्रपति की अनुमति के बिना यह बिल कानून का रूप नहीं ले पाया। इसके बाद भजनलाल सरकार ने इसे वापस लेने का निर्णय लिया है।

अन्य राज्यों में अब तक धर्मपरिवर्तन कानूनों को लेकर क्या हुआ

राजस्थान से पहले कई राज्यों में धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण को लेकर कानून बनाए जा चुके हैं। इनमें 27 नवंबर, 2020 को, उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए अध्यादेश लाई थी। इसके बाद मध्य प्रदेश (एमपी) सरकार ने जनवरी 2021 में मध्य प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020 को लागू किया। हरियाणा में तत्कालीन मनोहर लाल खट्टर सरकार ने भी हरियाणा विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन निवारण नियम, 2022 बनाया।

संसद में कई बार प्राइवेट बिल के रूप में पेश किया गया

देश में अब तक जिन राज्यों में भी धर्म परिवर्तन विरोधी कानून पारित हुए हैं उनमें धर्म को मानने, प्रचार करने और उसका पालन करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, और सभी धार्मिक वर्गों को धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है। आज तक, धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं बना है। इसके अलावा, 2015 में, केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी क्षमता नहीं है। हालांकि संसद में कई बार धार्मिक परिवर्तन को लेकर प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए गए। लेकिन संसद से कभी पास नहीं हुए।

फिर भी पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन से किए गए धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिए ‘धर्म की स्वतंत्रता’ कानून बनाए हैं। इनमें (i) ओडिशा ( 1967 ), (ii) मध्य प्रदेश ( 1968 ), (iii) अरुणाचल प्रदेश ( 1978 ), (iv) छत्तीसगढ़ ( 2000 और 2006 ), (v) गुजरात ( 2003 ), (vi) हिमाचल प्रदेश ( 2006 और 2019 ), (vii) झारखंड ( 2017 ), और (viii) उत्तराखंड ( 2018 ), हरियाणा ( 2022 ), मध्य प्रदेश ( 2020 ) उत्तर प्रदेश ( 2024 ) । इसके अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश (2019) और उत्तराखंड के कानून भी विवाह को शून्य घोषित करते हैं यदि यह केवल गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से किया गया था। इसके अलावा, तमिलनाडु ( 2002 ) और राजस्थान ( 2006 और 2008) राज्यों ने भी इसी तरह के कानून पारित किए थे। हालाँकि, तमिलनाडु के कानून को 2006 में (ईसाई अल्पसंख्यकों के विरोध के बाद) निरस्त कर दिया गया था। जबकि राजस्थान के मामले में, बिलों को क्रमशः राज्यपाल और राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिली।

देश भर में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की तुलना

एनडीए सरकार की अगुवाई में 2029 में हुए लोकसभा चुनावों के दौरान लव जिहाद का मुद्दा जमकर उछाला गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधि आयोग ने जबरन/धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं का हवाला देते हुए नवंबर 2019 में धर्म परिवर्तन को विनियमित करने के लिए एक नया कानून बनाने की सिफारिश की । इस सफिरिश पर अमल करते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2020 में में अध्यादेश जारी कर दिया।
यूपी के बाद, एमपी सरकार ने भी धार्मिक धर्म परिवर्तन को विनियमित करने के लिए जनवरी 2021 में एक अध्यादेश जारी करने का फैसला किया। इसके बाद जुलाई 2024 में यूपी विधानसभा ने गैरकानूनी धर्म परिवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया।

धर्मपरिवर्तन के लिए पहले कलेक्टर को देनी होती है सूचना

उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश में मौजूदा प्रावधानों के अनुसार धर्मपरिवर्तन करने के लिए पहले कलेक्टर को पूर्व में सूचना देनी अनिवार्य है। इसमें यूपी में धर्मांतरण करने वालों को एक महीने पहले सूचना देनी होती है, जबकि एमपी में पुजारी या आयोजकों को भी 60 दिन पहले सूचना देनी होती है। यूपी में धर्मांतरण का आवेदन मिलने के बाद डीएम प्रस्तावक की पुलिस जांच करवाता है कि धर्मांतरण जबरन या लालच में तो नहीं करवाया जा रहा।

एमपी अध्यादेश में ऐसी कोई आवश्यकता नहीं है, हालांकि यह इन प्रक्रियाओं के उल्लंघन के कारण हुए अपराध का संज्ञान लेने के लिए किसी भी अदालत के लिए डीएम की मंजूरी को एक पूर्व शर्त के रूप में अनिवार्य बनाता है।
यूपी अध्यादेश में धर्म परिवर्तन के बाद की प्रक्रिया भी निर्धारित की गई है। धर्म परिवर्तन के बाद, धर्म परिवर्तन की तिथि से 60 दिनों के भीतर, धर्मांतरित व्यक्ति को डीएम को एक घोषणा (विभिन्न व्यक्तिगत विवरणों के साथ) प्रस्तुत करना आवश्यक है। डीएम घोषणा की एक प्रति सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करेगा (धर्मांतरण की पुष्टि होने तक) और धर्म परिवर्तन पर किसी भी आपत्ति को दर्ज करेगा।

धर्मांतरण कराने/कराने में सहायता करने वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में निम्न लिखित सजा का प्रावधान किया गया है। मध्य प्रदेश सामूहिक धर्मांतरण (एक ही समय में दो या अधिक व्यक्तियों का धर्मांतरण) कारावास की अवधि 3-10 वर्ष 5-10 वर्ष जुर्माना राशि 50,000 रुपये या उससे अधिक 1,00,000 रुपये या उससे अधिक किसी नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कारावास की अवधि 2-10 वर्ष 2-10 वर्ष जुर्माना राशि 25,000 रुपये या उससे अधिक 50,000 रुपये या उससे अधिक कोई अन्य रूपांतरण कारावास की अवधि 1-5 वर्ष 1-5 वर्ष जुर्माना राशि 15,000 रुपये या उससे अधिक 25,000 रुपये या उससे अधिक यदि किसी संगठन द्वारा उपरोक्त तीनों में से कोई भी अपराध किया जाता है, तो उत्तर प्रदेश अध्यादेश के तहत संगठन का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है और राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदान या वित्तीय सहायता बंद की जा सकती है। मध्य प्रदेश अध्यादेश के तहत ऐसे संगठनों का केवल पंजीकरण ही रद्द किया जा सकता है।