अमेरिका की कई टेक कंपनियों ने 1.27 लाख करोड़ का निवेश किया

नई दिल्ली। 2020 की शुरुआत से अब तक अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियों के भारत में निवेश की बाढ़ सी आ गई है। इन कंपनियों ने जनवरी से 15 जुलाई तक भारत में 17 अरब डॉलर (करीब 1.27 लाख करोड़ रुपए) का निवेश किया है। इनमें अमेजन, फेसबुक और गूगल जैसी दिग्गज टेक कंपनियां शामिल हैं। यह निवेश भारत की टेक इंडस्ट्री में किए गए 20 अरब डॉलर का हिस्सा है।

भारत में बड़े निवेश को लेकर यह हालात रातोंरात नहीं बदले। कुछ महीने पहले तक अमेरिकी टेक कंपनियों का भारतीय रेगुलेटर्स के साथ टकराव चल रहा था और उनके सीईओ को दिल्ली की यात्रा तक करनी पड़ी थी, लेकिन तब से अब तक हालात बदल चुके हैं। कोरोनावायरस के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था ठप पड़ गई है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा।

इसके अलावा टेक को लेकर भारत और चीन के बीच भी तनाव बढ़ा है। भारत के सुर में सुर मिलाते हुए ट्रम्प प्रशासन ने चीनी कंपनियों पर अविश्वास जताया है। अंत में चीन और हॉन्गकॉन्ग से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए भारत पहली पसंद के तौर पर बनकर उभरा है।

अमेरिकी कंपनियों की पसंद का दूसरा पहलू यह भी

भारत में टेक कंपनियों के निवेश की बाढ़ का दूसरा पहलू भारत की डिजिटल इकोनॉमी भी है। भारत में करीब 70 करोड़ इंटरनेट यूजर हैं। इनमें से करीब आधे ऑनलाइन आ गए हैं। यह एक बड़ा फायदा है, बड़ी टेक कंपनियां ज्यादा दिनों तक नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं।

अमेरिका-भारत बिजनेस काउंसिल में टेक पॉलिसी के हेड जे गुलिस के मुताबिक, टेक कंपनियां को भरोसा है कि भारत लंबे समय तक अच्छा बाजार बना रहेगा। यहां के नियम काफी आसान होने वाले हैं और इनमें खुलापन आने वाला है।

चीन भी है एक बड़ा कारण

सिलिकॉन वैली की कंपनियां लंबे समय से चीन को छोड़ रही हैं। इसके लिए चीन का सेंसरशिप मैकेनिज्म सबसे बड़ा जिम्मेदार है। इसके अलावा चीन की ओर से हॉन्गकॉन्ग में थोपे गए नए सुरक्षा कानून भी बड़ा मुद्दा हैं।

नया सुरक्षा कानून हॉन्गकॉन्ग की अथॉरिटी को टेक प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करने की ताकत देता है। इसमें चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली पोस्ट्स को डाउन करना भी शामिल है।

फेसबुक, गूगल और ट्विटर ने कहा है कि वे हॉन्गकॉन्ग सरकार के साथ डेटा साझा करना बंद कर देंगे। वहीं, टिकटॉक ने हॉन्गकॉन्ग को छोडऩे का फैसला कर लिया है।

चीन के साथ कारोबार करना काफी कठिन

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में लॉ, साइंस और टेक्नोलॉजी प्रोग्राम के डायरेक्टर मार्क लैमली का कहना है चीन में कारोबार करना कठिन से कठिन होता जा रहा है। चीन में ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं कि वहां नैतिकता से समझौता किए बिना कारोबार नहीं कर सकते। चीनी टेक के प्रति अमेरिका का अविश्वास लगातार बढ़ता जा रहा है।

पिछले हफ्ते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन की टेक कंपनी हुवावे की विस्तार योजना को नाकाम करने के लिए खुद की पीठ थपथपाई है। ट्रम्प प्रशासन लगातार चीनी ऐप टिकटॉक और बाइटडांस पर बैन लगाने की वकालत कर रहा है।