शुकर है-दो तो मिले

गनीमत बोले तो शुक्र। शुक्र का अपभ्रंश शुकर। अब चाहे शुकर करो या शनि या कि अदीत-सोम। दो तो मिले। सकारात्मक सोच रखें तो कल दो के दो सौ हो सकते हैं। ढाई सौ हो सकते हैं। पौने तीन सौ भी हो सकते हैं। तीन सौ या तीन सौ प्लस इसलिए नहीं कर सकते कि पांच-पच्चीस तो छुट्टी पे रहते ही होंगे। सकारात्मक को पलट के नकारात्मक पर नजर डालें तो हो सकता है कि कल को दो भी ना मिले। कह देंगे कि हम बहुमत के साथ। जब 308 नही मिले तो हम दो मिल के कौनसी नौ की तेरह कर लेेंगे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


शुकर-शनि और दो-नौ के बारे में पढ-सुन कर हैरत करने की कोई जरूरत नही है, कारण ये कि इनका साबका हमारे-आप के जीवन से पड़ता रहा है। पड़ रहा है और पड़ता रहणा है। वैसे, अपने यहां कल के बारे में दावे के साथ आज कहना उचित नही माना जाता। लोग कहते हैं कल क्या होगा, कौन जानता है। कहीं से आवाज आती है-कल किसने देखा। हम कहते हैं कि जो परंपराएं चलती आ रही है वो आने वाले कल में भी चलती रहेंगी। रही बात जानने या ना जानने की तो भाया देखने के लिए हम भले ही ना रहें, देखने वाले तो देखते आए हैं.. देख रहे हैं और देखते रहेंगे..। इसलिए खुद पे विश्वास रखो। नीली छतरी वाले पे भरोसा रखो। जो होगा-अच्छा होगा और अच्छे के लिए होगा। बड़े-सयाने कहते हैं-‘मन की हो जाए तो अच्छा.. ना होवे तो और भी अच्छा। आप नन्ने को नेगेटिव रूप से क्यूं देखते हो, यह भी तो हो सकता है कि उसके पीछे पॉजिटिव छुपा हो। वैसे भी इन दिनों कोरोनाकाल चल रहा है। लोग पॉजिटिव के नाम से डर रहे हैं। जो लोग -‘बी पॉजिटिव रहने का रट्टा मारते थे, आज वो-‘बी नेगेटिव का आशीर्वाद दे रहे हैं। इसी में शुकर मनाओ, कि जो लोग पॉजिटिव हैं वो शीघ्र नेगेटिव बने और जो नेगेटिव हैं वो पूरी गाइड लाइन का पालन करते हुए नेगेटिव ही बने रहें।

शुकर अथवा शुक्र के तार यहां-वहां से जुड़े हुए नजर आ रहे हैं। शुक्रवार मां संतोषी का दिन। मैं तो आरती उतारूं रे.. संतोषी माता की.. जै-जै संतोषी माता.. जै-जै मां..। एक होता है शुक्र ग्रह। दूसरी दुनिया से आने वाले एलियन शुक्र ग्रह से आते हैं या मंगल-बुध से इस का तो पता नहीं, ज्ञानी-विज्ञानी इतना जरूर कहते हैं कि दूसरी दुनिया का अस्तित्व है जरूर। मराजों की माने तो फलाणे का शुक्र कमजोर है-ढीमके का मजबूत है। कमजोर को दृढ बनाने के लिए ये करना पड़ेगा..वो करना पड़ेगा। शुक्र से शुक्रिया। इसका चलने प्रचलन शुकरिया के रूप में।

यदि कोई किसी के काम का आए। कोई किसी का काम कर दे। किसी की वजह से किसी का रूका काम हो जाए। कोई किसी की मदद कर दे। किसी की मदद से किसी की गाड़ी खिंच जाए तो अगली पार्टी का शुकरिया अदा करने की परंपरा पुरातन है। कोई नुगरा निकल जाए तो बात कुछ और है नितर धन्यवाद-शुक्रिया-थैंक्स तो कहना बनता है। अपने यहां शुकराना अता करने का रिवाज भी है। हम हमारे आस्था स्थल पर धोक देकर मन्नत-मनौती मांगते है। अरदास करते है। मत्था टेकते है। प्रार्थना करते हैं। दुआ करते है। मन्नत पूरी होने पर वापस उनके दर पे जाकर शुकराना अता करते हैं- ‘हे, मालिक आप की किरपा से मेरा काम हो गया। आप का आभार। हम बच्चों पे अपने आशीर्वाद की छत-छाया हमेशा बनाए रखना


एक शुक्र अथवा शुकर का संबंध गनीमत से। यह भी अपने जीवन के साथ घुला-मिला है। ऐसा कोई बंदा या बंदी नही जिसने इनका सहारा ना लिया हो। अपन कहते है-‘शुकर है कि इतने मे ही बला टल गई, बड़ा हादसा हो जाता तो..? किसी अनहोनी के होने या घटना-दुर्घटना हो जाने पर इसी जुमले का सहारा लिया जाता है। शुकर है कि इत्ते में ही पिंड छूट गया..। शुकर है कि इत्ते मे ही मामला सुलट गया। यहां शुक्र अथवा शुकरिया का नाता गनीमत से। गनीमत रही कि ऐसा हुआ-वैसा हो जाता तो..? मगर हथाईबाजों की यहां परोसी गनीमत कोई और ही कहानी बयान कर रही है। वो कहते है-गनीमत रही कि दो तो मिल गए, वो भी नही मिलते तो की होंदा। उन्हें भी चेतावनी मिल जाती। चार-छह दिन खटका-खौफ-भय रहता उसके बाद वही राग-वही खटराग।


हुआ यूं कि जोधपुर संभाग के आयुक्त ने जोधपुर विकास प्राधिकरण की देग का चावल देखा। सर 9.30 बजे वहां पहुंच गए। दफ्तर आने का यही सरकारी समय। पर आता कौन है। कौन कब आता है। कब जाता है। आता है तो क्या करता है। जानने वाले जानते हैं। संभागीय आयुक्त के पास जेडीए चेयरमेन का जिम्मा भी है। पिछले दिनों उन्होंने एक आदेश जारी कर सभी विभागों के कारिंदो को समय पर दफ्तर पहुंचने और समय पर दफ्तर छोडऩे की हिदायत दी थी। आदेश का असर जांचने के वास्ते साब वहां सुबह-सुबह धमक गए। असर देख भी लिया। जोविप्रा में कार्यरत 310 में से सिर्फ 2 करमचारी ही वहां मिले बाकी के कहां थे, वो जाणे। आधे-एक घंटे के बाद भाई लोगों का पदार्पण होणा शुरू हुआ। कोई दस बजे पधारा-कोई साढे दस-ग्यारह बजे तक। तब तक साब वही बिराजे रहे। बाद में वही हुआ जो अब तक होता रहा है। चेतावनी दी और मामला नक्की। आइंदा टेम से आना और उनने ‘हांÓ में घांटकी हिला दी-और बात आई गई हो गई। ऐसी चेतावनियां कईयों ने कई बार दी। बार-बार दी। हर बार दी। नतीजा सामने है। शुकर है कि दो तो मिल गए। वो भी नहीं मिलते तो क्या होता। सब जानते हैं कि ऐसी चेतावनिया गई चेताणियों की गली में। अंगुली टेढी नहीं की तो इस चेतावनी भी वही हश्र होणा है।