
-नफीस आफरीदी
आज हम विश्व गौरैया दिवस मनाजा रहे हैं। गोरैया सदियों से हमारे घर आँगन का सौन्दर्य और गौरव रही किन्तु आज लुप्त प्रायः हो गई है। उसके साथ अठखेलियों के बीच हमारा बचपन बीता, जवान हुए और वरिष्ठ नागरिकता तक पहुंचे। घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दूर तक दिखाई नहीं देती। इस खूबसूरत पक्षी का कभी हमारे घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चेइसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब गौरैया के अस्तित्व पर संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।
गौरैया हमारे परिवार और पर्यावरण का अभिन्न अंग रही है लेकिन आज वह हमसे रूठ ही नहीं गई बल्कि जीवन से बिछुड़ सी गई है। उसकी चहचहाहट के लिए हम और हमारे बच्चे तरस गए हैं। हमने अपनी लापरवाही और उदासीनता से उसे अपने से दूर कर दिया है। यह सुखद है कि हमने जल्दी ही उसका अभाव महसूस करते हुए उसे फिर से अपने घर-आँगन का हिस्सा बनाने का संकल्प ले लिया है। इसीलिए पिछले पंद्रह वर्षों यानि वर्ष 2010 से हर वर्ष 20 मार्चको विश्व गौरैया दिवस मनाया जा रहा है। यूं तो सारा विश्व गौरैया के लुप्त होने से चिंतित है लेकिन इसे बचाने की पहल संयोगवश भारत से हुई। पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी भारतीय संस्था ‘’नेचर फ़ॉरएवर सोसाइटी’’ने विश्व गौरैया दिवस मनाने की मुहिम शुरू की थी।
इस दिवस को मनाने का मकसद घरेलू गौरैया और अन्य सामान्य पक्षियों को बचाने के महत्व पर ज़ोर देना है। गौरैया पक्षी की संख्या में लगातार गिरावट एक गंभीर चेतावनी है कि किस प्रकार बढ़ता प्रदूषण और रेडिएशन हमारी प्रकृति और मानव सभ्यता को लीलता जा रहा है। गौरैया पक्षी को दाना-पानी नहीं मिल पाने की वजह सुपरमार्केट और मॉल संस्कृति पनपने के कारणअब पंसारी की पुरानी दुकानें बीते दिनों की बात हो गई है।गौरैया पक्षी, जैव विविधता और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। घरेलू गौरैयाऔर शहरी वातावरण में रहने वाले अन्य आम पक्षियों तथा उनकी आबादी के लिए बढ़ते खतरों से जागरूक करने के लिए विश्व गौरैया दिवसमनाने की शुरुआत हुई। यह नेचर फॉरएवर सोसाइटीऑफ इंडिया द्वारा इको-सिस एक्शन फाउंडेशन (फ्रांस) और दुनिया भर के कई अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है।

नेचर फॉरएवर सोसाइटी की स्थापना मोहम्मद दिलावर ने की थी, जो एक भारतीय पर्यावरणविद हैं। इन्होंने नासिकमें घरेलू गौरैया की सहायता केसाथ अपना काम शुरू किया था। उनकेप्रयासों के लिए टाइमपत्रिकाद्वारा 2008 के “पर्यावरण के नायकों”में से एक नामित किया गया था।विश्व गौरैया दिवस को चिह्नित करने का विचार नेचर फॉरएवर सोसाइटी कार्यालय में एक अनौपचारिक चर्चा के दौरान आया। विचार यह था कि घरेलू गौरैया और अन्य सामान्य पक्षियों के संरक्षण का संदेश देने के लिए घरेलू गौरैयाऔर आम जैव विविधता की सराहना करने के लिए उत्सव का दिन चिह्नित किया जाए। इसी विचार के तहत पहला विश्व गौरैया दिवस 2010 में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मनाया गया।इस दिन को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और कार्यक्रमों जैसे कला प्रतियोगिताओं, जागरूकता अभियानों और गौरैया जुलूसों के साथ-साथ मीडिया के साथ बातचीत करके मनाया गया। अब यह दिवस व्यापक रूप ले चुका है।
इसके पीछे एक दृष्टिकोण यह भी है कि एक ऐसा मंच प्रदान किया जाए जहाँ घरेलू गौरैया और अन्य सामान्य पक्षियों के संरक्षण पर काम करने वाले लोग नेटवर्क बना सकें, सहयोग कर सकें औरविचारों का आदान-प्रदान कर सकें ताकि बेहतर विज्ञान और बेहतर परिणाम सामने आ सके। इसका उद्देश्य दुनिया के विभिन्न हिस्सों के लोगों को एक साथ आने और एक ऐसी ताकत बनाने के लिए प्रयास करना है जो ऐसे पक्षियों की वकालत में और सामान्य जैव विविधता या कम संरक्षण स्थिति वाली प्रजातियों के संरक्षण की आवश्यकता पर जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। इन प्रयासों को प्रोत्साहित करने और नि;स्वार्थ रूप से पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए, एनएफएस ने 20 मार्च 2011 को अहमदाबाद, गुजरात में पहला स्पैरो पुरस्कार स्थापित किया गया।वर्ष 2013 में, एनएफएस के साथ जुड़ने वाले और स्पैरो पुरस्कारों का समर्थन करने वाले प्रमुख सुविधाकर्ताओं में से एक सस्टेनुएंसपत्रिका है।
पत्रिका के संपादक शाश्वत डीसी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया और विजेताओं को पुरस्कार दिये। उन्होने कहाकिये पुरस्कार विजेता गुमनाम नायक हैं जो जीवन के सभी क्षेत्रों से आते हैं। उल्लेखनीय यह है कि वे आमतौर पर बिना किसी सरकारी फंडिंग के काम करते हैं और किसी मान्यता की तलाश नहीं करते हैं। सर्वविदित है कि एक-दो दशक पहले हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। इस नन्हें से परिंदे को बचाने और संरक्षण के प्रति जागरूकता लाने के लिए हर स्तर पर प्रयासों को पंख लगाने होंगे।राजधानी दिल्लीमें तो गौरैया ऐसे दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भीनहीं मिलती, इसलिए वर्ष2012में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया।पहले यह चिड़िया जब अपने बच्चों को चुग्गा खिलाया करती थी तो हमारे बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे, लेकिन अब तो इसके दर्शन हीदुर्लभ हैं। गोरैया अब यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है।

पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के अनुसार गौरैयाकी आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी चिंताजनक है। ऐसा ना हो कि गौरैया इतिहासका प्राणी बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।ब्रिटेनकी ‘रॉयल सोसायटी ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्डस’ ने भारतसे लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है। आंध्र विश्वविद्यालयद्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह ह्रास ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है।पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।आज यह पक्षी संकटग्रस्त है और पूरे विश्व में तेज़ी से दुर्लभ होता जा रहा है।
दस-बीस साल पहले तक गौरेया के झुंड सार्वजनिक स्थलों पर सामान्य रूप से देखे जा सकते थे, लेकिन खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली यह चिड़िया अब भारतही नहीं, यूरोपके कई बड़े हिस्सों में भी काफ़ी कम रह गई है। ब्रिटेन, इटली, फ़्राँस, जर्मनीऔर चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या तेज़ी से गिर रही है वहीं नीदरलैंड में तो इन्हें ‘दुर्लभ प्रजाति’ के वर्ग में रखा गया है। गौरेया ‘पासेराडेई’ परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे ‘वीवर फिंच’ परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते हैं। गौरेयाअधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील तक की दूरी तय करता है। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन ढूंढ़ लेते हैं। गौरैयाकी घटती संख्या के कुछ मुख्य कारण भोजन औरजलकी कमी,घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी,तेज़ी से कटते पेड़-पौधे प्रमुख हैं।
गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं, जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते हैं और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हज़ारों पक्षी या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं। आवासीय ह्रास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं।कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है।
कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंगदेते हैं, जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है। पक्षी विज्ञानियों के अनुसार गौरैयाकेई पुनर्वास के लिए हमेअपने घरों में कुछ ऐसे स्थान उपलब्ध कराने होंगे,जहां वे आसानी से अपने घोंसले बना सकें और उनके अंडे तथा बच्चे हमलावर पक्षियों से सुरक्षित रह सकें। वैज्ञानिकों का मानना है कि गौरैया की आबादी में ह्रास का एक बड़ा कारण यह भी है कि कई बार उनके घोंसले सुरक्षित जगहों पर न होने के कारण कौए जैसे हमलावर पक्षी उनके अंडों तथा बच्चों को खा जाते हैं। गौरैया अपने अस्तित्व के लिए मनुष्यों और अपने आसपास के वातावरण से काफ़ी जद्दोजहद कर रही है। हमें इन पक्षियों के लिएअनुकूल माहौल होगा तभी ये हमारे बीच चहचहायेंगे।
ऐसा नहीं कर सके तो मॉरीशस के ‘डोडो’ पक्षी और गिद्ध की तरह ये पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। मानव जाति ही गौरैया को इस हालत में पहुंचाने के लिए जिम्मेदारहै। कहने को हमने विकास की कई मंज़िलें तय की हैं लेकिन पर्यावरण कीभी घोर उपेक्षा की है। गौरैया महज एक पक्षी नहीं बल्कि ये तो हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी है। इनके लिए हमें थोड़ी मेहनत करनी होगी। राजस्थान ने विलुप्त हो रहे राज्य पक्षी गोड़ावण के साथ बाघ को बचाने में अपनी विशेषज्ञता से हामने वन एवं पर्यावरण विज्ञानियों के कौशल का उदाहरण प्रस्तुत किया है जिससे इनकी संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है। इस तकनीक और जन सहयोग की मिसाल को अन्यत्र पहुंचाना होगा।