कांगरेस की जाजम में खाडा

राज्य के हरेक जागरूक बंदे के जेहन में पिछले 24-36-48 घंटे से एक ही सवाल खदबदा रहा है-‘रहेगी या जाएगी? हो सकता है-अन्य राज्यों के सतर्क बंदों के जेहन में भी यही सवाल छटपटा रहा हो। कारण ये कि अपने यहां राज्य स्तरीय मुद्दे राष्ट्र स्तरीय बन जाते हैं अथवा बना दिए जाते हैं। ऐसा होने पर गुजरात को महाराष्ट्र की चिंता और तमिलनाडु वालों की नजर हरियाणे पर। दिल्ली वालों की नजर बिहार और यूपी वालों की निगाहें राजस्थान पर। ऐसा हमेशा होता है। इन दिनों विशेष रूप से सब की नजरें राजस्थान पर और सभी की जुबान-जेहन में एक ही सवाल। जवाब मिलेगा तब मिलेगा। उम्मीद है बहुत जल्दी मिलेगा। जवाब खारा होगा या मीठा होगा। इसका खुलासा भी हो जाएगा। फिलहाल सवाल का एक जवाब-‘सुराख तो हो ही गया। के रूप में टपक पड़ा। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


राजस्थानी भाषा में सुराख को ‘खाडो अथवा ‘खाडा कहा जाता है। हिन्दी में इसके पर्यायवाची शब्द के तौर पर छेद अथवा खड्डा परोसे जा सकते हैं। जहां तक अपना खयाल है, इन पर ज्यादा पत्रवाचन करने की जरूरत नहीं। इनका साम्राज्य हर क्षेत्र में पाया जाता है। भले ही समाज में खड्डे-खाडे को हेय नजर से देखा जाता हो, हमारी नजर में खड्डे की इतनी अहमियत हैं जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता। खड्डे को लेकर बैठ गए तो शब्द कम पड़ जाने है। कुल जमा इतना कह सकते हैं कि बिन खड्डा काफी कुछ सून।

कई लोगों को खड्डे के महिमामंडन पर हैरत हो रही होगी। ये कैसे लोग हैं जो खड्डे को महान बता रहे हैं। समाज में इस की तुलना किसी के करने को उचित नही माना जाता। समाज में इस का उपयोग हेय माना जाता है, उसको सिर पे बिठाना कहां तक उचित है। हमको इस पर कोई एतराज नहीं। कोई उसे हेय समझे तो समझे। यह उनका अधिकार है। इसकी पलट में जो लोग खड्डे को बहुत कुछ बता रहे हैं, उनके भी अपने अधिकार हैं। उनके अधिकारों की रक्षा करना हम सबका दायित्व है। इसके माने कुछ लोग खड्डे के विरोध में तो ज्यादातर लोग पक्ष में। कुछ लोगों के लिए खड्डे हेय तो ज्यादातर लोगों के लिए खड्डे हंै तो बहुत कुछ है।


खड्डे सड़क के। खड्डे गली-गुवाड़ी के। खड्डे कपड़ों पे। छेद सुरक्षा व्यवस्था में। छेद कागज पे। सुराख दीवार में। सुराख दरवाजे-खिड़कियों में। सुराख कार्यप्रणाली में। खड्डे चार दीवारी में। खड्डे-खेत-खलिहानों में। छेद ऑजोन की परत में। छेद लकड़ी में। सुराख भाडों-बरतन में। सुराख व्यवस्था में। इन सब के लिए छेद का संबंध नकारात्मक स्थिति से। हमारा वोट खड्डे के पक्ष में इसलिए कि इसी पे दुनिया टिकी हुई है। मकान बनाते समय नींव खुदती है कि नहीं। खुदती है। नींव के बिना तामीर खडी हो सकती है क्या। नही हो सकती। साफ है कि नींव के लिए खड्डे खोदने जरूरी। खड्डे खुदेंगे तो नींव पड़ेेगी। नींव पड़ेगी तो तामीर खडी होगी। पहले मजबूत नींव, उसके बाद मकान का बाकी हिस्सा खडा किया जाता है। जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण और शुद्ध पर्यावरण के लिए पेड़ जरूरी है। हर कोई जानता है कि पौधे आगे चल कर पेड का रूप धारण करते हैं और पौधे रोपने के लिए खडडे खोदने पड़ते हैं। खड्डों में पौधे रोपे जाते हैं। पौधे की देखभाल की जाती है। उन्हें सींचा जाता है, आगे चल कर पौधे पेड का रूप धारण करते हैं।
सड़क और बिजली विकास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण सीढियां होती है। नई सड़क बनाने के लिए जमीन खोदनी पड़ती है। यह बात दीगर है कि कई स्थानों पर खड्डे ज्यादा सडक कम दिखाई देती है। कई सडकें धाकड भी।

बात करे बिजली की, तो उसे दूर दराज क्षेत्रों में पंहुचाने के लिए खड्डे पहली जरूरत। बिजलीघर बनाने के लिए खड्डे। उपकरण लगाने के लिए खड्डे। टावर लगाने लेकर खंभे खड़े करने के लिए खड्डे जरूरी। पर हथाईबाज जिस सुराख-छेद और खड्डे की बात कर रहे हैं वह सियासी जाजम से जुड़े हुए।
राजस्थान कांग्रेस में इन दिनों जो चल रहा है उसे हर जागरूक नागरिक देख रहा है। एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दूसरी तरफ सचिन पायलट। दोनों में डेढ साल पूर्व राज्य सरकार के गठन के समय से तनातनी चल रही है। इस बार खींचतान ने पराकाष्ठा लांघ दी। दोनों गुटों में तलवारें तनी हुई। एक ने कहा हमारे पास जादुई आंकडा है-दूसरे ने कहा-सरकार अल्पमत में। दो दिन की बैठकबाजी के बाद गहलोत खेमे ने पायलट खेमे को सरकार और संगठन से बाहर निकाल दिया। पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। उनके दो समर्थक मंत्री भी बाहर कर दिए गए।


हथाईबाजों को अब सचिन खेमे के कदम का इंतजार है। वो भाजपा में जाते हैं या नया दल बनाते हं सरकार रहती है या जाती है। यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। फिलहाल राजस्थान कांग्रेस की जाजम में पड़ा ‘खाडाÓ और बड़ा होता दिखाई दे रहा है। आशंका इस बात की है कि कहीं यह ‘खाडा पूरी जाजम ना फाड़ दे।