जयपुर । महासभा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र रावणा ने बताया कि, ब्रिटिश शासन के दौरान 1872 से लेकर 1931 तक नियमित रूप से जाति आधारित जनगणना की जाती थी। साल 1947 में देश आजाद हुआ और भारत सरकार ने नीतिगत रूप से अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के अलावा अन्य जातियों की जनगणना नहीं की। हालांकि, आखिरी बार सरकार द्वारा 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (Socio-Economic and Caste Census – SECC) कराई थी जिसे पुर्ण रूप से गोपनीय रखें और इस जनगणना में जाति को लेकर लिए गए आंकड़े पूरी तरह जारी नहीं हुए। इसके बाद जाति आधारित जनगणना को लेकर मोदी सरकार में 2018 में लोकसभा व राज्यसभा में विधेयक भी पास हो चुके है।
रावणा ने बताया कि राष्ट्रीय जनगणना विभाग का जाति आधारित जनगणना को लेकर स्पष्ट निर्णय नहीं आया है। इसलिए रावणा राजपूत महासभा केन्द्र सरकार के माध्यम से जानना चाहती है कि जिस प्रकार भारतीय संविधान में समता के अधिकारों की परिधि में अनुच्छेद 14, 15 व 16 से पिछड़े वर्गों के ही दूसरे भाग अनुसूचित जाति / जनजाति की भांति ओबीसी में भी आबादी के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए।
दूसरी तरफ आरक्षण के लिए मुख्य आधार सामाजिक व शेक्षणिक पिछड़ी जातियां है तो फिर उसके लिए क्रिमिलेयर के रूप में आर्थिक आधार का प्रावधान क्यों है? जबकि संविधान से परे जाकर राजनैतिक दबाव में आकर संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 से आरक्षण की अनुमति देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करते हुवे EWS के नाम से आर्थिक आधार पर सामान्य जातियों को अलग से बगैर किसी आधार के 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया दूसरी तरफ घूमन्तु जातियों को SBC के नाम पर 5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया अब बची शेष अति पिछडी जातियों को ओबीसी में संपन्न जातियों के साथ छोड़ दिया जो सामाजिक न्याय के विरुद्ध है, इसलिए हमारी महासभा चाहती है कि, भारतीय संविधान में अनुच्छेद 340 का विस्तार एवं संशोधन करते हुवे नीतिगत रूप से पिछड़े वर्गों के शेक्षणिक एवं सामाजिक उत्थान हेतु उनकी आबादी के हिसाब से क्रिमिलियर रहित अलग से आरक्षण का प्रावधान किया जावे।
महासभा के संस्थापक जसवंत सिंह सोलंकी ने बताया कि जातिगत जनगणना से कमजोर वर्गों के लिए –
सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का आकलन किया जा सकता है जिससे जातिगत जनगणना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न जाति समूहों के बीच शिक्षा, रोजगार, आय और संपत्ति के वितरण में मौजूद असमानताओं का सटीक आकलन करना और अन्तरजातिय विवाह से सामाजिक समन्वय का अंकलन करना है।
लक्षित नीतियों का निर्माण किया जा सकता है जिससे जाति जनगणना से मिले डाटा से सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को बनाने में मदद मिलेगी। संसाधनों का उचित आवंटन किया जा सकता है जिससे उन क्षेत्रों में ध्यान देने में मदद मिलेगी, जहां संसाधनों की आवश्यकता है।
पिछड़े वर्गों की जनसंख्या के रूप में पहचान की जा सकती है जिससे सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने में मदद मिलेगी, जिससे उनके लिए बेहतर नीतियां बनाई जा सके। अनुसंधान के लिए डाटाबेस तैयार होगा जिससे शिक्षाविदों और विशेषज्ञों को विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान करने के लिए मदद मिलेगी।
कसिटी प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र रावणा, युवा प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह भाटी सहित जगदीश जी पंवार, राजबहादुर सिंह, रामनिवास पालवास, विजेन्द्र सिंह शेखावत, मुकेश सिंह जोधा, प्रताप सिंह, लोकेश पंवार, गुजरात से – मदन सिंह, जयपुर ग्रामीण से – महावीर सिंह सिंघावत, उमराव सिंह मोरडा, मोहन सिंह चौहान, सांगानेर, चेन सिंह सिसोदिया,अजमेर से – विभा सिंह राठौड़, राजवीर मझेवला, प्रहलाद सिंह, विजेन्द्र सिंह भाटी, बांसवाड़ा से – नरेन्द्र सिंह चावड़ा, भीलवाड़ा से – विजय सिंह जी पंवार, हिम्मत सिंह सोलंकी, शंकर सिंह सिसोदिया, रतन सिंह जादू, महावीर सिंह देवड़ा, जोधपुर से – रामलीलावती भाटी, शंकर सिंह भाटी, रासमणी चौहान, नागौर से – मनोहर सिंह, सवाई माधोपुर से – राधेश्याम गहलोत, गोरधन सिंह कितावत, मोहन सिंह नाथावत, शिवराज सिंह तंवर, लड्डू सिंह राजावत, धन सिंह शेखावत, टोंक से – सुमेर सिंह जी, निवाई, राम सिंह राजावत, उदयपुर से – ओम प्रकाश सोलंकी ने रावणा राजपूत समाज से अपील करते हुवे कहा कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में अपनी जाति रावणा राजपूत बताये और वर्ग के कॉलम में ओबीसी लिखवाये। प्रदेश भर से 100 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने विभिन्न जिलों से भाग लिया। सभी प्रतिनिधियों ने ई मेल के जरिये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को 2 अलग अलग जाति आधारित जनगणना एवं क्रिमिलेयर हटाने के लिए ज्ञापन प्रेषित किए।
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