जयपुर। इक्कीसवीं सदी में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में दुर्लभ बीमारियों और उनके उपचार विकल्पों के बारे में जागरूकता बढ़ी है। इसके बावजूद, कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं जो तब तक छिपी रहती हैं जब तक कि वे अक्षम और जानलेवा न हो जाएँ। सीकर निवासी बयालीस वर्षीय गृहिणी अनीता चौधरी अपने परिवार और बच्चों की देखभाल में व्यस्त रहती थीं। उन्हें दाहिनी आँख में दृष्टि संबंधी गड़बड़ी दिखाई देने लगी, जो महीनों से बहुत ही सूक्ष्म थी, लेकिन पिछले एक महीने से दाहिनी आँख की दृष्टि में तेजी से गिरावट आई और बाईं आँख में भी दृष्टि संबंधी गड़बड़ी शुरू हो गई। उनको आँख की रोशनी में कमी के साथ साथ सिरदर्द, व्यक्तित्व में बदलाव और सूंघने की क्षमता के कमी भी महसूस होने लगी।
उनके परिवार के सदस्यों के अनुसार, गिरते स्वास्थ्य के कारण उन्हें न केवल परिवार के सदस्यों की, बल्कि खुद की भी देखभाल करने में कठिनाई होने लगी थी। उन्होंने सीकर में परामर्श लिया और एमआरआई ब्रेन में कपाल के अग्र भाग में 6.5 सेमी का विशाल ब्रेन ट्यूमर दिखा। ट्यूमर प्रमुख रक्त वाहिकाओं को घेर रहा था और दृष्टि व घ्राण के लिए जिम्मेदार तंत्रिकाओं पर दबाव डाल रहा था। आँखों के परीक्षण से पता चला कि दाहिनी आँख में लगभग अपरिवर्तनीय क्षति हुई है और बाईं आँख में सूजन बढ़ रही है। रोगी ने उपलब्ध उपचार विकल्पों के बारे में कई डॉक्टर से राय ली, लेकिन उसे सलाह दी गई कि यह उच्च जोखिम वाली सर्जरी है और अगर ब्रेन ट्यूमर निकाल भी दिया जाए, तो भी दृष्टि में सुधार की संभावना न के बराबर होगी।
जयपुर में डॉ. अनिल कोठीवाला (न्यूरोसर्जन) और डॉ. रवि जाखड़ (न्यूरोलॉजिस्ट) की देखरेख में कंट्रास्ट स्कैन और एंजियोग्राफी के माध्यम से रोगी का विस्तार से मूल्यांकन किया गया। आगे के उपचार के जोखिमों और लाभों पर चर्चा करने के बाद, रोगी और उसके परिवार के सदस्य ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी कराने के लिए सहमत हो गए। 10 घंटे तक चली सर्जिकल प्रक्रिया में सभी महत्वपूर्ण रक्त वाहिकाओं और तंत्रिकाओं को सुरक्षित रखते हुए ट्यूमर को सफलतापूर्वक जड़ से हटा दिया गया। सर्जरी के उसी दिन रोगी राहत की साँस लेकर होश में आई।
ऑपरेशन के अगले दिन रोगी ने स्वयं डॉ. अनिल कोठीवाला को बताया कि वह दो फीट तक देख पा रही है, जो रोगी और उसके परिवार के सदस्यों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। जयपुर के एनएचबीएच अस्पताल में कार्यरत डॉ रवि जाखड़ (न्यूरोलॉजिस्ट) ने बताया कि इस तरह के ट्यूमर सुबह के सिरदर्द, भूलने की बीमारी जैसे बहुत हल्के लक्षणों के साथ आते हैं, जिन्हें अक्सर व्यस्त जीवन शैली में नजरअंदाज कर दिया जाता है। डॉ जाखड़ ने जोर देकर कहा कि आंख की रोशनी में गड़बड़ी, उल्टी या व्यक्तित्व की गड़बड़ी के साथ सिरदर्द को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
डॉ अनिल कोठीवाला (न्यूरोसर्जन) ने बताया कि माइक्रोन्यूरोसर्जिकल ट्यूमर एक्सीजन ज्यादातर मामलों में उपचारात्मक इरादे से सुरक्षित रूप से किया जा सकता है। डॉ कोठीवाला ने 10 घंटे लंबी सर्जरी के लिए न्यूरोलॉजी और एनेस्थीसिया ऑपरेशन थिएटर टीम से अच्छे सहयोग पर जोर दिया। उन्होंने आगे बताया कि ट्यूमर सर्जरी के साथ-साथ योजना इस तरह से बनाई गई थी कि माथे पर अच्छे कॉस्मेटिक परिणामों के साथ खोपड़ी के बाल भी बचे रहे। मरीज दो-तीन हफ्तों के अंतराल में अपने सामान्य जीवन में फिट होने में सक्षम हैं।
यह भी पढ़ें ; सीएम भजनलाल शर्मा ने नगरीय विकास विभाग की बजट घोषणाओं की समीक्षा की