जैव विविधता संरक्षण पर कार्यशाला आयोजित

जैव विविधता संरक्षण
जैव विविधता संरक्षण
  • बटरफ्लाई स्टोरी के जरिए दिया जैव विविधता संरक्षण का संदेश

  • विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर किया मंथन

जयपुर। राजस्थान की पारंपरिक धरोहर, सामुदायिक जीवन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को केंद्र में रखकर मंगलवार को ‘जैव विविधता एवं संरक्षकता- पारिस्थितिक मनोविज्ञान एवं स्वास्थ्य मॉनिटरिंग की समझ’ पर जयपुर के एक होटल में कार्यशाला आयोजित की गई। रणबंका बालाजी ट्रस्ट (जोधपुर) और फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (भीलवाड़ा) के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस कार्यशाला में ट्रस्ट के कार्तिकेय सिंह राठोर ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य में जैव विविधता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

जैव विविधता संरक्षण
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उन्होंने कहा कि ट्रस्ट विभिन्न स्तरों पर संस्थाओं एवं सरकार के साथ मिलकर जैव विविधता संरक्षण के लिए कार्य कर रहा है। इसी क्रम में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है, ताकि सामूहिक प्रयासों से पर्यावरणीय चुनौतियों को कम करने के साथ-साथ ग्रामीण आजीविका और प्राकृतिक संसाधनों को सुदृढ़ बनाया जा सके। सुप्रसिद्ध नेचुरलिस्ट और बटरफ्लाई मैन ऑफ उत्तराखंड पीटर स्मेटासेक ने बटरफ्लाई स्टोरी के जरिए जैव विविधता की संवेदनशीलता और उसमें छिपी पारिस्थितिकीय कहानियों को जीवंत किया। उन्होंने कहा कि तितलियाँ और छोटे जीव हमें यह सिखाते हैं कि हर छोटा बदलाव पूरी पारिस्थितिकी को प्रभावित करता है। जैव विविधता को समझे बिना संरक्षण अधूरा है।

जैव विविधता संरक्षण
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कार्यशाला में श्वेता सिंह राठोर, निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी, रणबंका बालाजी ट्रस्ट ने प्राकृतिक संसाधनों जल, भूमि एवं जैव विविधता के संरक्षण हेतु समन्वित प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सामूहिक प्रयास ही इन संसाधनों के सतत विकास, संरक्षण और उपयोग की कुंजी है। र्यशाला में अतिरिक्त मुख्य सचिव, जल संसाधन विभाग,  अभय कुमार ने कहा कि भूजल पुनर्भरण और कॉमन्स का प्रभावी प्रबंधन राजस्थान की सतत प्रगति के लिए निर्णायक है। हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ स्थानीय ज्ञान और परंपराओं को जोड़कर काम करना होगा।

इस अवसर पर विभिन्न विषय विशेषज्ञों ने ग्रामीण आजीविका की चुनौतियों, शुष्क परिदृश्य में जैव विविधता की भूमिका, तथा पारिस्थितिकी और अर्थशास्त्र के अंतर्संबंध पर विचार साझा किए। उन्होंने कार्यशाला को राजस्थान में विकास के साथ पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों का शमन करने एवं सतत प्रबंधन पर समृद्ध संवाद और सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना। सहभागी संस्थाओं ने विश्वास व्यक्त किया कि इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में राज्य के पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक सुदृढ़ एवं सतत बनाने में सहायक सिद्ध होंगे।

कार्यशाला में जल संसाधन विभाग, पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना निगम लिमिटेड, वाटरशेड एवं मृदा संरक्षण, रेन मैटर फाउंडेशन, दसरा सेंटर फॉर माइक्रो फाइनेंस, प्रदान, उरमूल एसपीजीवीएस, सेंट्रल यूनिवर्सिटी राजस्थान सिहित विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने भाग लिया और अपने विचार रखे।

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