कहानी कांटे और फांस की

जो हुआ, वह सबने देखा और आने वाले दिनों में जो कुछ होगा वह भी सब देखेंगे। जो हुआ सो हुआ-जो होगा, सो होगा पर अब तक जो घटा-घटाया। अब तक जो हुआ। उसे देखकर तो यही लगता है कि आलाकमान को युवा पसंद नही है। नंबर दो-आलाकमान खुद राजनीतिक दाव पेंच चला रहा है। नंबर तीन-आलाकमान नही चाहता कि उनकी कद-काठी का नया नेता सामने खडा हो। नंबर चार-आलाकमान ने गलतियों से सबक ना सीखने की कसम खा रखी है। पार्टी में झगड़ा होवे तो होवे। पार्टी अंतरकलह की शिकार हो वे तो होवे। नेते आपस में लड़े तो लड़े। पार्टी की भद पिटे तो पिटे। अपने बणाव-सिणगार पर आंच नही आनी चाहिए।

शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे। हमें नहीं लगता कि ऊपर के पेरेग्राफ पर ज्यादा कुछ कहने की जरूरत है। पत्रवाचन लंबा खींचने की भी आवश्यकता नही। समझदार को इशारा काफी है। कई को तो इशारे की भी जरूरत नही। इस की पलट में भतेरे लोग ऐसे हैं जिन को इशारों में बता द्यो या कह के। लिख के समझा द्यो या प्रयोग करके। उनकी समझ में कुछ आने वाला नहीं। आएगा तो भी इंकार करने में कंजूसी नही। आम भाषा में ऐसे लोगों को ‘जाणगेलाÓ कहा जाता है। वो सब जानते हैं। वो सब को पहचानते हैं। अपने-पराए में भेद करना उन्हें बखूबी आता है। किस से लाभ होगा-किससे घाटा।

इस बात की वो अच्छी तरह खबर रखते हैं मगर अनजान बने रहते हैं। ऐसा नाटक करते हैं गोया कि उन्हें कुछ पता ही नहीं। ऐसे लोग अपना हित साधने में माहिर कहे जाते हैं। सियासत में ऐसे लोगों की भरमार। यूं कहें कि सियासत में ऐसे ही लोग पाए जाते हैं, तो भी गलत नहीं। पार्टी आलाकमान ऐसे लोगों से दस कदम आगे। बीस सीढियां ऊपर। पार्टी सुप्रीमों के पास फिलहाल कोई काम नहीं है। दिन भर ठाले बैठे रहो। टेेम पास करना मुश्किल इसके बावजूद कार्यकर्ताओं से मिलने में कंजूसी। पार्टी की रीढ कहे जाने वाले लोगों से ऐसी दूरी बनाए रखते हैं जैसे वो अछूत हो। वो कुत्ते के साथ खेल लेंगे। कुत्ते को बिस्कुट खिला देंगे। वो टॉमी-सॉमी को सहला देंगे मगर पार्टीजनों से ढंग से मिलने में गुरेंज। उसी का नतीजा है कि पार्टी दिन ब दिन रसातल की ओर जा रही है मगर नीरो की बासुंरी नही छूट रही।


इतना कुछ पढने-समझने के बाद पाठक अच्छी तरह जान गए कि बात किसी और दल की नही बल्कि सिर्फ-ओ-सिर्फ कांगरेस की हो रही है। कारण ये कि हथाईगिरो ने जो तीन-चार बिंदू गिनाए, कांगरेस उससे लदकद है। ज्यों-ज्यों बिन्दुओं का खुलासा हुआ त्यों-त्यों तस्वीर साफ होती गई। चौथे का नंबर आते-आते सारे पत्ते खुल गए। पक्का हो गया कि भाजपा-सपा-बसपा या टीएमसी-आरजेडी अथवा नेकां-राकांपा की ओर झांकने की भी जरूरत नही। रास्ता सीधा कांगरेस की तरफ जा रहा है।


राजस्थान कांगरेस में इन दिनों जो घमासान मचा हुआ है, उसे आखा देश देख रहा है। राज्य में वही सब कुछ हुआ जो कुछ दिन पूर्व मध्यप्रदेश में हो चुका था। फरक इतना रहा कि एमपी कांगरेस के हाथ से फिसल गया और राजस्थान में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट रूपी कांटा तो निकाल दिया मगर कांटे के फांस बनने की पूरी आशंका। सियासत में कोई किसी का सगा नहीं-कोई किसी स्थायी दुश्मन नही। कौन सा नेता किस की गोद में जाकर बैठ जाए, कहा नही जा सकता। हथाईबाज इसके लिए पार्टी आलाकमान को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं। कोई कितने ही दावे करे।

इस खेमे के अपने दावे-उसके खेमे के अपने। आलाकमान ऊपरी मंजिल पर बैठकर तमाशा देख रहा है। राजस्थान में आज जो कुछ हुआ वह एमपी में कल हो चुका है, मगर पार्टी ने कोई सबक नही लिया। वहां पार्टी ने कमलनाथ को सीएम बनाकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाशिए पे पटक दिया। इतनी उपेक्ष हुई कि सेवट उनको पार्टी छोडऩी पड़ी। इधर उन्होंने पार्टी छोड़ी-उधर सरकार खतरे में। उसके बाद तख्ता पलट।

लंबे समय बाद एमपी कांगरेस के हाथ आया था, वह भी फिसल गया। यही स्थिति राजस्थान की। यहां भी गहलोत और सचिन में भेंटीबाजी चल रही थी मगर आलाकमान बगल में हाथ डाल के बैठा रहा। दो पीढियां लड़ती रहीं-आलाकमान देखता रहा। यहां गहलोत ने फिलहाल अपनी कुरसी तो बचा ली-मगर संकट टला नही है। उन्होंने सचिन और उनके समर्थकों को मंत्रिमंडल से बाहर करके अपने रास्ते का कांटा तो निकाल दिया मगर फांस जस की तस। यह फांस कब दुखदायी बन जाए-कोई कुछ नही कह सकता। कुल जमा कांटे और फांस की कहानी कांगरेस के लिए घातक हो सकती है।