
जयपुर। बुधवार को सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल में साउथ ईस्ट एशिया इंस्टीट्यूट ऑफ थैलेसीमिया के सहयोग से विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया गया। इस अवसर पर आयोजक डॉ रचना नारायण ने बताया कि बताया कि अब तक वर्ष 2012 में पहला ट्रांसप्लांट हुआ। 190 बच्चों को निशुल्क बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए उपचारित किया जा चुका है। इसमें राज्य सरकार से सहायता भी मिल रही है।
डॉ प्रिया मारवाह ने बताया कि कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न हिस्सों से थैलेसीमिया से मुक्त हो चुके बच्चों ने परिजनों के साथ हिस्सा लिया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एमिरेट्स चेयरमैन डॉ एम एल स्वर्णकार, श्री आर आर सोनी, डॉ जी एन सक्सैना, डॉ अचल गुलाटी, डॉ वी के कपूर, डॉ सुधीर सचदेव, श्रीमती चंद्र बाला परनामी, श्री आलोक परनामी, डॉ एन डी सोनी, डॉ एस एस जायसवाल, डॉ अशोक गुप्ता, डॉ आर एम जैसवाल, डॉ श्वेता शर्मा, डॉ राजीव बंसल, डॉ तारा प्रणव भट्टाचार्य सहित बड़ी संख्या में चिकित्सकों ने हिस्सा लेकर प्रेजेंटेशन दिए।
चिकित्सकों के अनुसार भारत में करीब दस लाख बच्चे इस रोग से ग्रसित हैं। उपचार के अभाव में ये कम उम्र में ही मौत का शिकार हो जाते हैं। आमतौर पर ऐसे रोगियों में एनीमिया हो जाता है, जीभ और नाखून पीले पड़ने लगते हैं, बच्चे का विकास नहीं हो पाता है तथा वजन गिरने लगता है।थैलेसीमिया दो प्रकार का होता है। यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है तो बच्चे में मेजर थैलेसीमिया हो सकता है जो काफी घातक होता है। किन्तु माता-पिता में से एक ही में माइनर थैलेसीमिया होने पर बच्चे को खतरा नहीं होता।
उन्होंने जानकारी दी कि थैलेसीमिया के गंभीर रोगी में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है। ऐसे में बार बार रक्त चढ़ाया जाता है। इससे शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे लिवर तथा दूसरे अंगों पर विपरीत प्रभाव आने लगता है। इसके उपचार के तौर पर रक्त संबंधी का बोन मैरो लेकर रोगी को चढ़ाया जाता है। इसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट कहा जाता है।ऐसे ही थैलेसीमिया का उपचार किया जाता है।कार्यक्रम में डॉ रचना नारायण तथा डॉ प्रिया मारवाह द्वारा लिखित पुस्तक “थैलेसीमिया से उन्मुक्ति, नवजीवन की ओर” का विमोचन भी किया गया।