ठग्गू के लड्डू

जैसा देखने-सुनने और पढने में आ रहा है, उसके हिसाब से तो यही लग रहा है कि ठग्गू के लड्डू अभी और बढने हैं। हो सकता हैं ठग्गू काल और ज्यादा लंबा खींचे। कोरोना किलर आज नही तो कल बाजार में आणी तय है। कोरोना को किल करने वाली वैक्सीन बनाने पर भारत सहित दुनिया के अन्य देश जी-जान और प्रण-प्राण से जुटे हुए हैं। ठग्गू काल खल्लास करने के पक्के इंतजाम होने में शक भी है और शंका भी है। जब पी ‘से वाले ही ठग्गू के लड्डू बांट रहे है तो और किसी से क्या शिकायत करें। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
ठग्गू के लड्डू कोई मिष्ठान नहीं है, ना ही ठग्गूकाल कोई काल। अपने यहां कई शहरों की पहचान वहां के उत्पादों या कि खाद्य-पदार्थ अथवा चट्टी वस्तुओं से होती है। यह एक बात-दूसरी बात ठग्गूकाल की।

इन दिनों कोरोनाकाल चल रहा है। किसी ने सोचा भी नहीं था कि इसका सामना करना पड़ जाएगा। हम किसी भी काल-परिस्थितियों का सामना करने से घबराने वाले नहीं। हमने विकट से विकट और भयानक से भयानक कालों का सामना कर उन पर विजय प्राप्त की है। उम्मीद है कि कोरोना भी हमारे ही हाथों परास्त होगा। यह तो सिर्फ बात है कि किसी ने इस काल की कल्पना भी नही की थी, जिसे आज भुगतना पड़ रहा है। पूरी दुनिया कोरोना का रोना रो रही है। कोरोना आखे विश्व को रूला रहा है। आशा ही नही बल्कि पूर्ण विश्वास है कि हम इस पर विजय प्राप्त कर लेंगे। कोरोना एक बुरा सपना बनके रह जाणा है। जब-जब प्लेग-चेचक-स्वाईन फ्लू और अन्य हारी-महामारी की चर्चा होगी, उसमें कोरोना का नाम भी जुड़ा नजर आएगा।


हमे भूतकाल याद है। हम वर्तमान में जी रहे हैं, भविष्यकाल में क्या होगा-किसी को कुछ पता नहीं। हम महाकाल को पूजते हैं। हम महाकाल को ध्याते हैं-जैकारे लगाते है। भारत में महाभारत काल हुआ। राम-कृष्णजी का काल हुआ। ऋषियों-मुनियों का काल रहा। राजों-रजवाड़ों का और मुगलिया काल रहा। गोरा काल भी हमने भुगता। सियासी पार्टियों के शासन को भी काल से जोड़ा जा सकता है। कांगेे्रसकाल। जपा काल। यूपीए काल। एनडीए काल। राज्यों के अपने काल। वहां राष्ट्रीय स्तर के दलों से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों का शासन रहा है। टीएमसी का राजस्थान में कोई नामलेवा नहीं मगर पश्चिम बंगाल में उस का राज। वहां दीदीकाल। काल आए-काल गए। काल-आएंगे-काल जाएंगे। हमारे राजस्थान ने अकाल भुगते। दुकाल-त्रिकाल तकातक का सामना किया मगर अपनी जमीन नही छोड़ी। हर काल-अकाल में हमें नई हिम्मत दी। हमने अकाल-दुकाल के साथ जीवन जीया। आज मालिक की रहम है। खुदा-ना-खास्ता वैसी स्थिति आई तो हम होंगे कामयाब एक दिन..। इतने काल-कालांतर के बावजूद ठग्गूकाल को खरोंच तक नही आई। ठग्गू के लड्डू कल भी थे-आज भी है-कल की कह नही सकते। काल-स्थितियां-परिस्थितियां आगे भी चलते रहने की ओर इशारा कर रही है।


लडडू से बात घूम-फिर कर पहचान वाले शहरों पर आ गई। किसी शहर की पहचान वहां के उत्पादों से, तो किसी की खाने की वस्तुओं से होती है। मुख्य बिन्दू ‘लड्डू है तो बात खाने की चीजों पर ही केंद्रीत रखी जाए। उत्पाद के पहचान के बतौर सांगानेर का प्रिंट और जैपर की चूंदडी को ले लें बाकी का ध्यान चट्टे की ओर। जोधपुर की मावे की कचौड़ी-मिर्चीबड़ा और लस्सी। अजमेर का सोहन हलवा। नसीराबाद का कचौड़ा। मथुरा के पेड़े। आगरे के पेठे। पाली का गुलाब हलवा। डांगियावास का मावा। शहरों के साथ-साथ दुकानों की अपनी पहचान। वहां पर बनने वाली मिठाईयों के आगे उनके निर्माता-निर्देशकों और मेकरों के नाम चस्पा। पहले चतुर्भुज पीछे गुलाब जामुन तो हुआ चतुर्भुज के गुलाब जामुन। इसी प्रकार जनता के मिर्चीबड़े। रावत की मावे की कचौड़ी। मोहनजी के लड्डू आदि-वगैरहा। पर हथाईबाज जिस ठग्गू की बात कर रहे हैं वो मिठाईवाला नही वरन वो, जो किसी का सगा नहीं-ऐसा कोई नही जिसे उसने ठगा नही..।


आज कल गली-गली में ठग्गू के लड्डुओं की खिलाई-जिमाई हो रही है। ठग्गू के लड्डू अरोघने के बाद जजमान को पता चलता है कि सिर मुंंडाते ही ओले पड़ गए। जहां देखो वहां यही हो रहा है। कहीं नौकरी के नाम पर तो कहीं भर्ती के नाम पर। कहीं ऑन लाइन के नाम पर तो कहीं ऑफ लाइन के नाम पर। कहीं शादी के नाम पर तो कहीं खरीद-बेचान के नाम पर। चारों ओर ठग्गू के लड्डू।

धोखेबाजी-फरेब-साजिश-छलकपट-कूटरचना ये सब ठग्गू के लड्डू की नुकती। हैरत तो तब हुई जब एक पूर्व स्वर्गीय विधायक के पुतर अपने पिता के गुजर जाने के बाद भी पेंशन उठाते रहे। खंडेला और श्रीमाधोपुर से विधायक रहे उन बाऊजी का जून 18 में निधन हो गया था मगर उनका एक पुत्तर दो साल से पेंशन उठा रिया था। एक माह की पेंशन चालीस हजार से ज्यादा। पुत्तर आराम से लड्डू जीम रहा था। दूसरे भाई ने इसकी शिकायत कर दी और भांडा फ ूट गया। आगे जो होगा सो होगा। कै तो वापस वसूली या फिर जीमणे के बाद चुळू। पर यह बात फिर पुख्ता हो गई कि ठग्गू के लड्डू दिन-ब-दिन नाम कमा रहे है।