
जोधपुर। कृषि वानिकी परियोजना से न केवल मृदा और जल संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि होगी। यह बात स्विस हमासिल ट्रस्ट, स्वीटजरलैंड के सदस्यों ने कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर में संचालित कृषि वानिकी परियोजना के अवलोकन के दौरान कही। स्विस हमासिल ट्रस्ट, स्विट्जरलैंड के सदस्य, थॉमस सेज़ और डॉ. एनेट रौपाच ने विश्वविद्यालय का भ्रमण किया। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय में चल रही कृषि वानिकी परियोजना के विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन किया। उल्लेखनीय है कि यह परियोजना कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर और एग्रोफोरेस्ट्री प्रमोशन नेटवर्क (एपीएन), स्विट्जरलैंड के मध्य हुए समझौता ज्ञापन (एमओयू) के तहत प्रारंभ की गई है।
परियोजना को स्विस हमासिल ट्रस्ट, स्विट्जरलैंड से कृषक कल्याण, अनुसंधान तथा कृषि वानिकी तकनीकी विस्तार हेतु वित्तीय अनुदान प्राप्त हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य अर्ध-शुष्क और शुष्क जलवायु क्षेत्रों में मृदा गुणवत्ता, जैव विविधता, जल संरक्षण और सतत कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना है। परियोजना के तहत स्थानीय एवं बहुउद्देशीय वृक्ष प्रजातियों को शामिल करते हुए जलवायु परिवर्तन अनुकूल खेती प्रणाली विकसित की जा रही है, जो किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभदायक और पर्यावरणीय रूप से सतत होगी।
वैज्ञानिकों से की चर्चा
इस दौरान क्षेत्रीय निदेशक, अनुसंधान डॉ. एसके मूंड, परियोजना अन्वेषक डॉ. कृष्णा सहारन, सह-अन्वेषक डॉ. एके मीना और डॉ. एनएल डांगी ने परियोजना के तहत चल रहे अनुसंधान कार्यों की जानकारी दी। इस दौरान वैज्ञानिकों ने बताया कि परियोजना के तहत मृदा जैव विविधता, जैविक खाद, जल संरक्षण तकनीकों और मिश्रित खेती मॉडल पर अनुसंधान किया जा रहा है। निदेशक अनुसंधान, डॉ. एमएम सुंदरिया ने अतिथियों का राजस्थानी साफा, बुके और मोमेंटो देकर सम्मान किया। डॉ. सुंदरिया ने विश्वविद्यालय की विभिन्न शोध उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि संस्थान ने जलवायु-अनुकूल कृषि प्रणाली, सूखा-प्रतिरोधी फसलें, नई प्रजातियों का विकास, जैविक खेती तकनीकों एवं मृदा सुधार विधियों पर महत्वपूर्ण अनुसंधान किए हैं।
साथ ही, विश्वविद्यालय द्वारा विकसित स्थानीय कृषि वानिकी प्रजातियों की जानकारी भी साझा की, जो पश्चिमी राजस्थान की जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं।प्रतिनिधियों ने कृषि महाविद्यालय की बेसिक साइंस लैब का भी निरीक्षण किया। इस दौरान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता एवं संकाय अध्यक्ष डॉ. जीवाराम वर्मा भी मौजूद रहे। इस अवसर पर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरुण कुमार के मार्गदर्शन में चल रहे अन्य अनुसंधान कार्यों पर भी चर्चा की गई।