बाहर से जितना खूबसूरत है ताजमहल अंंदर से और भी सुंदर, पत्थर पर खिले फूल देख दांतो तले दबा जाएंंगे अंगुलियां

ताजमहल
ताजमहल

एमएपी अकादमी की अरुंधती चौहान बता रही हैं कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्रेम का प्रतीक ताज महल अद्वितीय है अपनी कला के लिए भी। विश्व के आश्चर्यों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला ताज महल मुगल वास्तुकला का आदर्श उदाहरण है और सहेज रहा है अपनी सदाबहार पच्चीकारी…
कीमती पत्थरों के बने उत्कृष्ट पद्धति से जड़े फूल, जो ताज महल के सफेद संगमरमर पर सूरज की रोशनी पडऩे पर चमकते हैं। उनके बारे में बुद्धिजीवी एबा कोच का कहना है कि ये फूल ताज महल की सजावटी योजना के केंद्र में थे, क्योंकि वे उस जन्नत के हरे-भरे बगीचों के प्रतीक थे, जहां मुमताज महल-जिसके लिए मकबरे के रूप में ताज महल का निर्माण किया गया था-अपनी मृत्यु के बाद जाने वाली थी। कारीगरों ने पच्चीकारी की उत्कृष्ट तकनीक का इस्तेमाल करके चमकीले पत्थरों को जडक़र स्थायी फूल बनाए, जो 17वीं सदी के कवि कलीम के अनुसार मकबरे पर सदाबहार रहेंगे।

कठोर पत्थरों की शैली

कठोर पत्थरों की शैली
कठोर पत्थरों की शैली

कहा जाता है कि यह तकनीक 16वीं सदी में इटली के फ्लोरेंटाइन कारीगरों ने विकसित और सिद्ध की थी। इटालियन में इसको पिएट्रा ड्यूरा कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-‘कठोर पत्थर’। इस तकनीक में कीमती पत्थर और जवाहरात संगमरमर जैसे कठोर पत्थरों पर काटकर और चमकाकर चित्र के रूप में जड़े जाते हैं। मुगल सम्राट शाहजहां इस तकनीक के बड़े समर्थक थे। इस तकनीक को स्थानीय मुगल शैली में अपनाया गया और इसका नाम पर्चिनकारी (पच्चीकारी) रखा गया, जिसका शाब्दिक अर्थ था-‘अंदर घुसाना’। कई विद्वानों का मानना है कि इटालियन कारीगरों ने मुगल कारीगरों को यह तकनीक मुगल कारखानों में सिखाई। जबकि कुछ विद्वान मानते हैं कि स्थानीय कारीगरों ने यह तकनीक खुद से सीखी, क्योंकि उन्हें नरम पत्थरों पर जडऩे की तकनीक पहले से आती थी।

कला का स्वदेशीकरण

कला का स्वदेशीकरण
कला का स्वदेशीकरण

अभी भी नहीं पता कि इन दोनों में कौन-सी कहानी सच है, लेकिन मुगल संदर्भ में पिएट्रा ड्यूरा का एक चित्ताकर्षक उदाहरण हमें वर्ष 1648 में बनी टेबलेट के रूप में देखने को मिलता है, जिसमें आर्फियस की ग्रीक पौराणिक आकृति को दर्शाया गया है। इस टेबलेट को 318 अन्य पैनलों के साथ दिल्ली के लाल किले के दीवान-ए-आम में शाहजहां के सिंहासन के पीछे की दीवार में जड़ा गया था। 17वीं सदी में निर्मित इमारतों में कई जगहों पर पर्चिनकारी तकनीक का इस्तेमाल करके ज्यामितीय और पुष्प सजावट के उत्कृष्ट डिजाइन पाए जाते हैं। नूरजहां द्वारा अपने पिता के लिए बनवाए गए एतमादुद्दौला के मकबरे में हमें इस तकनीक का इस्तेमाल करके बनाए गए रंगीले ज्यामितीय डिजाइन, फूल और सजे हुए गुलदान देखने को मिलते हैं। हालांकि ताज महल में हमें पिएट्रा ड्यूरा के स्वदेशीकरण के सबसे परिष्कृत और सुरुचिपूर्ण उदाहरण देखने को मिलते हैं। सफेद संगमरमर में जड़े तरह-तरह के रंगीन फूल मकबरे के उल्लेखनीय प्रवेश को सुंदरता की नई ऊंचाइयों तक ले जाते हैं। इस आकृति में अलग-अलग तरह के पीले चूना पत्थर और संगमरमर के साथ लापीस-लजुली, अगेट, ब्लडस्टोन, कारेलियन, जेड और क्वाट्र्ज जैसे कीमती पत्थर जड़े मिलते हैं।

फूलों ने खिलाए उद्योग

ताज महल की दीवारों पर ज्यामितीय डिजाइन बने दिखते हैं, वहीं उसके केंद्रीय कक्ष में बहुत जटिलता से डिजाइन किए गए फूल बने हुए हैं। शाहजहां और मुमताज महल की कब्रों पर भी संगमरमर में जड़े फूल के डिजाइन बने हैं। इसी तरह की डिजाइन शाहदरा, पाकिस्तान में जहांगीर की कब्र पर भी है। ताज महल पर बने फूल के अलंकरण आज भी उतने ही खिले-खिले नजर आते हैं, जितने वे तब दिखते थे, जब ताज महल बना था। इनकी देखा-देखी आगरा में कई उद्योग खुल गए हैं, जो संगमरमर की बनी और कीमती पत्थरों से जड़ी चीजें बेचते हैं। ये चीजें आगरा की हस्तकला के तौर पर पहचानी जाती हैं।

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