
नागौर। जयगच्छीय साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने जयमल जैन पौषधशाला में मंगलवार को प्रवचन में कहा कि व्यक्ति की जैसी दृष्टि होती है, वैसी ही सृष्टि उसे नजर आती है। दृष्टिकोण सम्यक होने पर व्यक्ति को सभी में गुण ही नजर आते हैं। ऐसा गुण अनुरागी स्वयं भी गुणवान बन जाता है।
हर इंसान में गुण और अवगुण दोनों ही मौजूद रहते हैं। छिद्रान्वेषी व्यक्ति चांद में दाग, गुलाब में कांटे, समुद्र में खारा पानी ही देखता है। दृष्टि दोष होने पर तो उपचार हो सकता है। मगर दोष दृष्टि होने पर किसी तरह का उपचार नहीं किया जा सकता। इसलिए साधक को स्वयं के ही स्वभाव में और सोच में परिवर्तन लाना चाहिए। इंसान को अपना स्वभाव मक्खी की तरह नहीं अपितु भंवरे की तरह बनाना होगा।
मक्खी हमेशा गंदगी को ही ग्रहण करती है, जबकि एक भंवरा फूल से पराग को ग्रहण करता है। व्यक्ति का नित्य प्रतिदिन गुण ग्रहण करने का भाव रहना चाहिए। दोष पर दृष्टि नहीं जानी चाहिए। मनुष्य स्वयं के पहाड़ जितने दोषों को भी नहीं देखता है, परंतु दूसरों के अणु मात्र दोष का प्रसार कर देता है।
संचालन संजय पींचा ने किया। प्रवचन की प्रभावना दौलतमल, राजेश सिंघवी कालू-निवासी द्वारा वितरित की गयीं। प्रश्नोत्तरी के विजेताओं को नगराज ललवानी परिवार द्वारा पुरस्कृत किया गया। जय-जाप की प्रभावना मोतीलाल, धुलचंद, कमल सुराणा परिवार द्वारा वितरित की गयीं। रीता ललवानी ने साध्वी वृंद से तेले तप के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
प्रवचन प्रश्नों के उत्तर विनीता पींचा, खुशबू पींचा, चंचलदेवी बेताला एवं मुदित पींचा ने दिए। आगंतुकों के भोजन का लाभ निर्मलचंद चौरड़िया परिवार ने लिया। इस मौके पर नेमीचंद चौरड़िया, प्रकाशचंद बोहरा, धनराज सुराणा, चंपालाल जांगिड़ आदि मौजूद थे।
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