मनुष्य जन्म का कर्म प्रभु के लिए और प्रभु को समर्पित : गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी

गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी
गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी

जयपुर (राजस्थान)। प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका गुरु मां विज्ञाश्री माताजी ससंघ सान्निध्य में बूंदी का गोठड़ा में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान की आराधना अत्यंत हर्षोल्लास पूर्वक चल रही है। भक्त भक्ति के साथ अनेक आयोजनों का आनंद लें रहे हैं । माताजी के मुखारविंद से शांतिधारा करने का पावन अवसर बाबूलाल जी खटोड़ सपरिवार ने प्राप्त किया। शतार इन्द्र निहालचंद जी मधु खटोड़ एवं आनत इन्द्र नरेंद्र जी प्रेमलता लाम्बाबास प्रभु की भक्ति कर हर्षोल्लासित हो रहे थे।

पूज्य माताजी ने सभी को प्रभु भक्ति का अवसर न गंवाने का संदेश देते हुए कहा कि – मनुष्य जन्म का कर्म प्रभु के लिए और प्रभु को समर्पित करके होना चाहिए । क्या है यह कर्म – यह कर्म भक्ति है जो हमें मनुष्य जन्म पाकर निश्चित रूप से करना चाहिए । भक्ति का इतना सामर्थ्य होता है कि वह हमारा अगला जन्म सुधार देती है यहाँ तक कि हमें संसार में आवागमन से सदैव के लिए मुक्ति भी दिला देती है । भक्ति हमें प्रभु के श्री कमलचरणों तक पहुँचा देती है जहाँ से फिर हमें संसार में लौटकर आना ही नहीं पड़ता । इसलिए जीव को अपना मानव जीवन प्रभु भक्ति के लिए उपयोग करना चाहिए । मानव जीवन की सबसे बड़ी सफलता यही है कि उसे प्रभु भक्ति में लगाया जाए । पर हम प्रभु भक्ति के अलावा जीवन में सब कुछ कर लेते हैं । भक्ति को हम बुढ़ापे के लिए छोड़ देते हैं ।

पूरा जीवन अध्ययन, व्यवसाय, परिवार पोषण, दुनियादारी में निकल जाता है । बुढ़ापे में हमारा शरीर और हमारी स्मृति हमारा साथ नहीं देती और हम भक्ति करने में असमर्थ होते हैं । इस तरह पूर्व जन्म के संचित पुण्यों से मिला मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है और हमें आने वाले जन्मों में चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ता है । प्रभु भक्ति और प्रभु प्राप्ति सिर्फ मानव योनि में ही संभव है, अन्य योनियों में नहीं ।सायंकाल हाथी पर बैठकर स्व घर से महाआरती लाने का पुण्यार्जन राजकुमार जी लाम्बाबास सपरिवार ने किया।सभी ने झूम झूम कर महोत्सव का आनंद लिया। तत्पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भक्ति और धर्म का फल जनसमूह ने समझा ।