17 को बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट, जानें कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम

बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम

बद्रिनाथ धाम को जगत के पालनहार भगवान विष्णु का निवास स्थल माना जाता है। यह धाम उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के पर नर-नारायण नामक दो पर्वतों पर स्थापित है। धार्मिक मान्यता है कि महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने बद्रीनाथ धाम में की थी। हर साल बद्रीनाथ मंदिर में अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर में श्रीहरि के रूप बद्रीनारायण की पूजा-अर्चना होती है। हर साल शीतकाल में इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और अगले 6 महीने के बाद मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। इस बार बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 17 नवंबर को बंद होंगे। क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ मंदिर का नाम कैसे पड़ा? अगर नहीं पता, तो आइए जानते हैं इसकी वजह के बारे में। 17 को बंद होंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट, जानें कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम

ऐसे पड़ा बद्रीनाथ मंदिर का नाम

बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम

धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार ऐसा समय आया कि जब जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने जीवन में कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने हिमालय में जाकर तपस्या की। इस दौरान हिमालय में बर्फ गिरने लगी, जिससे विष्णु जी बर्फ से ढंक गए। इस स्थिति को धन की देवी मां लक्ष्मी से देखा नहीं गया, तो वह वृक्ष बनकर उसके नजदीक खड़ी हो गईं, जिसकी वजह से उनके ऊपर बर्फ पडऩे लगी। इसके बाद लक्ष्मी जी विष्णु जी को बारिश और बर्फ से बचाती रहीं। इसके पश्चात जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी हुई, तो उन्होंने देखा कि मां लक्ष्मी बर्फ से ढकी हुई हैं।

ऐसा देख उन्होंने कहा कि तुमने मेरे संग तपस्या की। इसी वजह से अब से इस धाम में मेरे संग तुम्हारी पूजा-अर्चना की जाएगी। साथ ही विष्णु जी ने कहा कि तुम्हारे बद्री यानी बदरी वृक्ष वजह से इस धाम को बद्रीनाथ के नाम से जाना जाएगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बद्रीनाथ धाम को कई नामों से जाना जाता है। स्कन्दपुराण में बद्री क्षेत्र को मुक्तिप्रदा कहा गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सतयुग के दौरान ही बद्रीनाथ धाम का नाम पड़ा। त्रेता युग में भगवान नारायण के द्वारा इस बद्रीनाथ धाम को योग सिद्ध कहा गया। वहीं, द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया है। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान के एक रूप बद्रीनारायण की प्रतिमा विराजमान है। यह मूर्ति 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित है।

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