
पर्युषण पर्वाधिराज का पंचम दिवस, अणुव्रत चेतना दिवस
‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्राÓ में आचार्यश्री ने त्रिपृष्ठ के भव के प्रसंगों का किया वर्णन
विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। अध्यात्म और साधना ओतप्रोत पर्युषण पर्वाधिराज निरंतर प्रवर्धमान है। भगवान महावीर के प्रतिनिधि, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में छापर की धरा पर भव्य और आध्यात्मिक रूप में मनाया जा रहा है। रविवार को पर्युषण पर्वाधिराज का पांचवा दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया गया। आचार्यश्री कालू महाश्रमण समवसरण में प्रात: नौ बजे से प्रारम्भ होने वाले मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ।

वर्तमान अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण पर्वाधिराज के अवसर पर भगवान महावीर की अध्यात्म यात्राÓ के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान महावीर की आत्मा 18वें भव में पोतनपुर के प्रजापति राजा के पुत्र त्रिपृष्ठ के रूप में आए। विद्या में परांगत होने पर उन्होंने अपने पिता के राज कार्यों में सहयोग करने लगे। दूसरी ओर तीन खण्डों का अधिपति प्रति वासुदेव एक दिन जिज्ञासावश एक ज्योतिषि से अपनी मृत्यु के संदर्भ में प्रश्न करता है तो ज्योतिषि संकेत करते हुए कहा कि जो तुम्हारे दूत चण्डवेग को अपमानित करने वाला और शेर को मारने वाला ही आपका हंता होगा। प्रति वासुदेव का दूत चण्डवेग एक बार विभिन्न राज्यों की यात्रा करते हुए पोतनपुर के राजा प्रजापति के दरबार में पहुंचता है, उस दौरान वहां संगीत का कोई कार्यक्रम चल रहा होता है, उसके वहां पहुंचने से उसमें व्यवधान उत्पन्न होता है तो त्रिपृष्ठ द्वारा उसे अपमानित किया जाता है। चण्डवेग द्वारा अपने अपमान की बात अश्वग्रीव को बताना, अश्वग्रीव के सामने शेर के आतंक की बात आने, उसके द्वारा अपने अधीन राजाओं की बारी लगाने, पोतनपुर के राजा की बारी आने पर अपने भाई के साथ त्रिपृष्ठ का जाना और बिना किसी शस्त्र के अपने हाथों से शेर के जबड़े को फाड़कर मार डालने के घटना प्रसंगों को आचार्यश्री ने रोचक ढंग से वर्णित किया।
प्रति वासुदेव को इस बात की जानकारी मिलती है तो उसे वह ज्योतिषिय भविष्यवाणी के दोनों लक्षण मिल जाते हैं और वह अब त्रिपृष्ठ के मारने की योजना बनाता है। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘अणुव्रत चेतना दिवस के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि व्रत के अणु जुड़े तो अणुव्रत, महा जुड़े तो महाव्रत और बारह जुड़े तो बारहव्रत हो जाता है। श्रावक जो बारहव्रत का पालन करने का प्रयास करते हैं, वे यदि सुमंगल साधना की दिशा में आगे बढ़ें तो गृहस्थ जीवन में भी मानों एक प्रकार से साधुता की बात हो जाएगी। हमारे परम पूज्य आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया। इसके लिए अणुव्रत विश्व भारती सोसयटी, अणुव्रत न्यास तथा देश के विभिन्न हिस्सों में अणुव्रत समितियां अणुव्रत के प्रचार-प्रसार का कार्य करती हैं। अणुव्रत के नियम जन-जन का करने वाला है और इसे कोई भी स्वीकार कर सकता है। वह जैन हो अथवा अजैन, किसी भी जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय से हो इन छोटे-छोटे संकल्पों को स्वीकार कर अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति तो मानों अणुव्रत का निचोड़ है। आचार्यश्री ने आगे कहा कि अणुव्रती तो नास्तिक ही नहीं, बल्कि कई जीव यथा गाय आदि भी अणुव्रती बनें तो बन सकते हैं। गायों में वर्तमान में लम्पी वायरस की बात चल रही है। गायें इसमें भी समता-शांति रखने का प्रयास करे। हमारी उनके प्रति अनुमोदना है। अणुव्रत का अच्छा कार्य चलता रहे। आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का आंशिक संगान भी किया। आचार्यश्री ने अणुव्रत के उद्घोष ‘संयम: खलु जीवनम्Ó का उद्घोष भी कराया।
इससे पूर्व मुनि मननकुमारजी ने उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ के जीवनवृत्त का वर्णन किया। साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने वर्णित दस धर्मों में संयम धर्म को विवेचित किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने संयम धर्म के संदर्भ में ‘भारत के लोगों जागो तुमÓ गीत का सुमधुर संगान किया। साध्वी अखिलयशाजी और साध्वी मृदुप्रभाजी ने ‘अणुव्रत चेतना दिवसÓ के संदर्भ में गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने ‘अणुव्रत चेतना दिवसÓ पर श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया।कार्यक्रम में श्रीमती ललिता मोदी ने 11 की, श्री संतोष सेखाणी ने अठाई, श्रीमती खुशबू भूरा ने 13 की तथा श्री गणेशमल ललवाणी ने आचार्यश्री से 24 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। पर्युषण पर्वाधिराज के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण आदिनाथ चैनल तथा अमृतवाणी के यूट्यूब चैनल तेरापंथ पर किया जाता है। इस माध्यम से दूर बैठे श्रद्धालुजन पूर्ण लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
यह भी पढ़े : बुधवार को घर-घर विराजेंगे विघ्नहर्ता