कोविड़ महामारी के बाद स्कूलों में लड़कियों की वापसी पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है

जयपुर। कोविड़ महामारी के कारण पिछले वर्ष में सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया है, देशभर के अध्ययनों में पाया गया है कि इस समय के दौरान लड़कियों के लिए शिक्षा की पहुंच और भी कठिन हो गई है। इसी संदर्भ में 12 जनवरी 2021 को लड़कियों की शिक्षा के लिए ‘बैरियर्स एंड इनबलर्स टु गल्र्स सेकेंडरी एजुकेशन’’ विषय पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन का किया गया। इस वेबिनार का आयोजन इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, जयपुर, डवलपमेंट साॅल्युशन इंक, नई दिल्ली और आईपीई ग्लोबल द्वारा किया गया था।

इस वेबिनार की मुख्य स्पीकर्स हैदारबाद के एमवी फाउंडेशन की फाउंडर सैकेट्ररी, प्रो शांता सिन्हा थीं। उन्होंने वेबिनार को संबोधित करते हुये कहा कि, ‘‘भले ही भारत में लड़कियां अपने शैक्षिक मानकों में सुधार करने में सक्षम रही हों, लेकिन यह उनके लिए एक कठिन प्रक्रिया रही है। लड़कों की तुलना में स्कूलों में लड़कियों की वृद्धि दर, लिंग भेदभाव और पुरूष-प्रधान मानदंड उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लड़कियों के लिए एक बड़ी बाधा रहे हैं।’’ इस दौरान तकरीबन 100 प्रतिभागियों ने एनका उद्बोधन सुना।

उन्होनंे आगे बताया कि हालांकि, अच्छी बात यह है कि लड़कियां अपनी खुद की एजेंसी विकसित कर रही है और लड़कियां जो चाहती हैं, उसे हासिल करने के लिए हमारी कल्पना से परे भी जा रही है। माता-पिता भी अब अपनी लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति में रुचि ले रहे हैं और उनकी शादी के बारे में ज्यादा सवाल नहीं कर रहे हैं और यह उनकी दृष्टिकोण में बहुत बड़ा बदलाव है।

वेबिनार के अन्य स्पीकर्स में सेंटर फाॅर बजट एंड पाॅलीसी स्टडीज, बेंगलुरु की डायरेक्टर, डॉ ज्योत्सना झा, ओक्सफैम इंडिया, लीड इन्क्यूलिटी कैम्पेन, कर्नाटक की एंजेला तनेजा, डवलपमेंट साॅल्युशन इंक, नई दिल्ली की वसुधा चक्रवर्ती और आईपीई ग्लोबल लिमिटेड के श्री आशीष मुखर्जी कार्यक्रम में उपस्थित थे। इस पैनल के सदस्यों ने कोविड़-19 के प्रभाव से उपेक्षित समुदायों से जुड़ी लड़कियों की शिक्षा पर विस्तारपूर्वक अपने-अपने विचार साझा किये।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुये ओक्सफैम इंडिया, लीड इनइक्वेलिटी कैम्पेन, कर्नाटक की एंजेला तनेजा ने बताया कि, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और उत्तर प्रदेश में ओएक्सफैम द्वारा मई से जून 2020 के बीच किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि न केवल बच्चों को डिजिटल रूप से शिक्षा प्राप्त करने में मुद्दों का सामना करना पड़ता है, अपितु शिक्षकों को भी डिजिटल माध्यमों से शिक्षा पहुंचाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लगभग 84 प्रतिशत शिक्षकों ने डिजिटल रूप से मुद्दों का सामना करने वाले आधे शिक्षकों के साथ डिजिटल रूप से शिक्षा देने में चुनौतियों का सामना किया है।

इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, जयपुर और डेवलपमेंट सॉल्यूशंस, नई दिल्ली द्वारा राजस्थान में कोविड़ 19 के पश्चात् लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा में बैरियर्स और एनबलर्स को समझने के लिए किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्तियां एक लड़की के लिए अपनी शिक्षा को पूरा करने के लिए सक्षम हो सकती हैं। छात्रवृत्ति के स्पष्ट लाभ में कमजोर परिवारों को लंबी अवधि के लिए अध्ययन करने के लिए समर्थन और आसान चयन मानदंड विशेष रूप से गरीब घरों के लिए बड़ी संख्या में लड़कियों को सक्षम बनाता है।

आईपीई ग्लोबल लिमिटेड के सीनियर एसोसिएट डायरेक्टर, श्री आशीष मुखर्जी ने बताया कि, “छात्रवृत्ति लड़कियों को स्कूल वापस लाने का सबसे सीधा और सबसे तेज तरीका है। यह आवश्यक है कि विभिन्न राज्य सरकारें, विशेषकर वंचित समूहों की लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति संवितरण में सुधार करें और जिससे स्कूल खुलने पर वे फिर से स्कूल आ सकें।’’

वेबिनार में बाल विवाह को रोकने और स्कूलों में लड़कियों को वापस लाने, छात्रवृत्ति के संवितरण में सुधार और विशेष रूप से शिक्षा में लैंगिक समानता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ग्राम पंचायतों जैसे स्थानीय सामुदायिक समूहों की अधिक भूमिका व भागीदारी के साथ कार्यक्रम का समापन किया।