श्रीराम और भरत के मिलाप का साक्षी है चित्रकूट का मंदिर

चित्रकूट का मंदिर
चित्रकूट का मंदिर

शिला पर आज भी मौजूद हैं पैरों के निशान

ऋषि वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना की गई थी। उनके द्वारा रचित रामायण के उत्तरकाण्ड में भरत मिलाप का प्रसंग मिलता है। भरत मिलाप प्रसंग को पढ़ने या सुनने के बाद व्यक्ति का मन भाव-विभोर हो उठता है। चित्रकूट में हुए इस मिलन स्थान का आज भी उतना ही महत्व माना जाता है, जितना कि उस दौरान था जब श्रीराम और भरत जी का मिलाप हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान पर एक मंदिर भी स्थापित है, जिसको भरत मिलाप मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको इस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।

क्यों खास है ये मंदिर

मध्यप्रदेश के चित्रकूट में भगवान कामतानाथ परिक्रमा मार्ग पर भरत मिलाप मंदिर है। रामायण में वर्णित एक कथा के मुताबिक जब भगवान श्रीराम अयोध्या गए, तो उनको मनाने के लिए भरत जी चित्रकूट पहुंचे। जहां पर उन्होंने श्रीराम से वापिस अयोध्या चलने का आग्रह किया, लेकिन श्रीराम ने अपने वचन को पूरा करने के लिए स्नेह के साथ भरत को वापिस अयोध्या भेज दिया था।
चित्रकूट में श्रीराम और भरत जी के मिलन का दृश्य इतना भावपूर्ण था कि आसपास के लोगों के साथ प्रकृति भी भावुक हो गई और पत्थर तक पिघल गए। भाई मिलन का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में कुछ इस प्रकार किया है।

द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना। पुरजन पेमु न जाइ बखाना॥

बीच बास करि जमुनहिं आए। निरखि नीरु लोचन जल छाए॥4॥

भगवान श्री राम जी के लिए भरत का प्रेम

आज भी चित्रकूट में भगवान श्रीराम और भरत जी के पैरों के निशान एक शिला पर देखने को मिलते हैं। राम-भरत मिलाप मंदिर के अलावा लक्ष्मण-शत्रुघन मिलन और कौशल्या-सीता मिलन मंदिर भी स्थापित है। फिर जब अंत में भरत जी भगवान राम को अयोध्या वापस चलने पर मनाने में असफल रहे, तो वह श्रीराम की चरण पादुका को अपने साथ अयोध्या ले गए। इन पादुका को उन्होंने सिंहासन पर रखकर अयोध्या का राजकाज चलाया था।