
गर्मी के मौसम में यूं तो कई सारे फल और सब्जियां मिलती हैं, लेकिन इस मौसम में ज्यादातर लोगों को इंतजार फलों के राजा का रहता है। अब आप यह तो समझ ही गए होंगे कि हम किस फल की बात कर रहे हैं। जी, हां हम बात कर रहे हैं आम की, तो अपने स्वाद के लिए काफी पसंद किया जाता है। यही वजह है कि भारत में आम की कई सारी किस्में पाई जाती हैं। आम की इन किस्मों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर आमों को ये अलग-अलग नाम कब और कैसे मिले। शायद ही आपको इसके बारे में पता होगा। ऐसे में आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कैसे मिले फलों के राजा आम को यह नाम।
तोतापरी आम

यह भारत में पाई जाने वाली आम के सबसे लोकप्रिय किस्म में से एक है। जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, तोते की चोंच की तरह दिखने की वजह से ही इसका नाम तोतापरी रखा गया है। इसे इसके अनोखे आकार और स्वाद की वजह से पसंद किया जाता है।
चौंसा
यह भी भारत में पाई जाने वाली आम की एक खास किस्म है, जिसे बेहद स्वादिष्ट माना जाता है। आमतौर पर आम की यह किस्म गर्मी के अंत और बारिश की शुरुआत में खाने को मिलती है। वहीं, अगर बात करें इसके नाम की, तो इसका नाम बिहार के चौसा की वजह से रखा गया है। दरअसल, भारतीय शासक शेरशाह सूरी ने जब बिहार के चौसा में हुमायूं को हराया था, तो अपनी इस जीत के सम्मान और याद में उन्होंने अपने पसंदीदा आम का नाम “चौंसा” रखा था।
लंगड़ा
आम की सभी किस्मों में यह नाम सबसे अजीब है। हालांकि, आम के इस नाम के पीछे भी एक कहानी है, जिसका इतिहास लगभग 250-300 साल पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि बनारस के रहने वाले एक लंगड़े व्यक्ति ने सबसे पहले इसे उगाया था। उसने आम के बीज को घर के पीछे बोया था और जब इसमें आम उगे, तो बाजार में लोगों को इसका स्वाद काफी पसंद आया। इस व्यक्ति को उसके साथी लंगड़ा कहकर पुकारा करते थे, इसलिए इस आम की यह किस्म भी लंगड़ा कहलाई।
केसर आम
अपनी खास खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर केसर आम भी कई लोगों का पसंदीदा होता है। अगर बात करें इसके नाम की, तो केसर जैसी खुशबू की वजह से आम की यह किस्म केसर कहलाई। वहीं, कुछ खाद्य इतिहासकारों की मानें, तो साल 1934 में, जूनागढ़ के नवाब मुहम्मद महाबत खान ढ्ढढ्ढढ्ढ ने इसके नारंगी रंग के गूदे को देखकर इसे केसर कहा था, जिसके बाद यह आम इसी नाम से मशहूर हो गया।
दशहरी
दशहरी आम की एक ऐसी किस्म है, तो कई लोगों का बेहद पसंद होती है। यह आम बेहद रसीला और मीठा होता, जिसे आमतौर पर लोग चूसकर खाते हैं। इसके नाम की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। दरअसल, अब्दुल हमीद खान कंधारी को इसका नामकरण करने का श्रेय जाता है। उन्होंने लखनऊ के काकोरी के पास दशहरी गांव में आम के पौधे लगाए थे और इसी गांव के नाम पर यह आम दशहरी कहलाया।
सिंधरी
आम की इस किस्म के नामकरण की कहानी पाकिस्तान से जुड़ी हुई है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस आम को सबसे पहले साल 1930 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश शासन के दौरान मीरपुर खास में उगाया गया। यह सिंध प्रांत का एक महत्वपूर्ण शहर था और यहां उगने की वजह से इसका नाम सिंधरी रखा गया।
अल्फांसो
आम की यह किस्म नाम से भले ही विदेशी लगती है, लेकिन असल में यह एक भारतीय आम ही है। दरअसल, हापुस आम को ही अल्फांसो कहा जाता है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आखिर फिर इसे विदेशी नाम कैसे मिला? दरअसल, बात उस दौर की है, जब भारत में पुर्तगालियों का राज हुआ करता था। उस दौरान पुर्तगाल के सैन्य रणनीतिकार अफोंसो अल्बूकर्क ने गोवा में स्वादिष्ट आमों के कई बागान लगाए, जिनका स्वाद लोगों को भी काफी पसंद आने लगा था। ऐसे में अफोंसो की मौत के बाद श्रद्धांजलि के तौर पर आम को अल्फांसो नाम दिया गया।
मालदा
भारत में आम की कई किस्में पाई जाती हैं, जिनमें से एक मालदा भी है। इसका नाम मालदा इसलिए रखा गया, क्योंकि इसकी खेती पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में की जाती है और इसी जिले के नाम पर इस आम का नाम रखा गया है।
दुधिया मालदा
यह आम की एक खास किस्म है, जिसे पानी नहीं, बल्कि दूध से सींचा जाता थी। ऐसा कहा जाता है कि इस खास आम को लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन पाकिस्तान के इस्लामाबाद से लाए थे। उनके पास बहुत सारी गाय थीं, जिनके बचे हुए दूध से इसके पौधे की सिंचाई होती थी। जब इस पेड़ में फल आए, तो इसमें से दूध जैसा पदार्थ निकला, जिसकी वजह से इसे दूधिया मालदा कहा गया।
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