एक गांव ऐसा भी, जहां खंभों पर तारो का नहीं पानी के पाइपों का जाल

बिजली के खंभों पर तारों का जाल तो आपने खूब देखे होंगे लेकिन एक गांव ऐसा भी है जहां, खंभों पर तारों का नहीं बल्कि पानी के पाइपों का जाल फैला हुआ है। एक खंभे से दूसरे खंभे के बीच एक नहीं कई-कई पानी के पाइप लटके हैं। सामान्यत: आम लोगों के लिए यह चौंकाने वाला है। साथ ही लापरवाह सरकारी सिस्टम की पोल खोलने के लिए भी काफी है, जोकि स्वतंत्रता के 74 साल बाद भी इस गांव के लोगों को पानी मयस्सर नहीं करा सके हैं।

बीते 15 अगस्त को देश 74 वां स्वतंत्रता दिवस मनाकर चुका है। मगर, स्वतंत्रता के सात दशकों के बाद भी सैंया ब्लॉक के वीरई गांव के लोग पानी जैसी मूलभूत समस्या से जूझ रहे हैं। हुकमरान आजादी के इतने सालों के बाद भी यहां के लोगों को पानी उपलब्ध नहीं करा सके हैं। दशकों से जल अभाव का दंश झेल रहे इस गांव के लोग आज भी पानी के लिए जूझ रहे हैं। भूमिगत पानी खारा होने के कारण गांव में पानी का अभाव है। पीना तो दूर दैनिक उपयोग के लिए भी यह पानी ठीक नहीं है।

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ऐसे में अधिकांश ग्रामीणों ने अपने ही स्तर से समस्या का समाधान खोज निकाला। सरकार के भरोसे बैठने की बजाय खुद ही अपने घरों तक मीठा पानी ले आए। अधिकांश ग्रामीणों ने भूमिगत पानी खारा होने पर गांव से लगभग तीन-चार किमी दूर नहर पास मीठा पानी खोज निकाला। यहां ट्यूबवेल लगा लिए। इससे वह खेतों को तो पानी देते ही हैं, यहीं से पाइप अपने घरों तक डाल लिए हैं। नहर किनारे का पानी मीठा है। लोगों ने चार-पांच का समूह बनाकर अपने-अपने घरों तक पानी के पाइप डाल लिए हैं। अंडरग्राउंड करने की बजाय यह पाइप बिजली के खंभों के माध्यम से घरों तक लाए गए हैं। एक-एक खंबे पर 8-10 पानी के पाइप लटकते दिखाई देते हैं। गलियों के ऊपर सिर उठाकर देखने पर बिजली के तारों का नहीं, इन पाइपों का जाल दिखाई देता है। बताया जा रहा है कि गांव में खारे पानी की समस्या दशकों पुरानी है। अब तक कोई समाधान नहीं हो सका है।

काफी दूर से पानी लाने को मजबूर

गांव में लगभग 800 घर हैं। इनमें से कुछ लोग गांव से लगभग तीन-चार किमी दूर नहर किनारे लगे हैंडपंपों से पानी भरकर लाते हैं। कोई सिर पर कोई बाइक पर बाल्टी रखकर पानी लाने को मजबूर हैं। नहर किनारे पानी के लिए सुबह-सुबह महिला और बच्चों की लाइन लगती है। ग्रामीणों के अनुसार, गांव के 50 फीसद से अधिक घरों में बिजली के खंबों के माध्यम से आ रहे पाइपों से ही पानी की आपूर्ति होती है। एक पाइप से 4-5 घरों में जलापूर्ति होती है। यह पाइप इन घरों के लोगों ने मिलकर डाला होता है, इसलिए इसकी मरम्मत का खर्चा और ट्यूबवेल की बिजली का बिल ये सब मिलकर उठाते हैं।

बिजली के खंभे पर क्यों लटकाए पाइप

ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने नहर किनारे से लेकर गांव तक जो पाइप डाले हैं, वह काफी नरम हैं। जमीन में खोदाई करके यदि इन्हें दबाएंगे तो वह मिट्टी में दब जाएंगे। इससे पाइप ब्लॉक होकर फट जाता है। जमीन में पाइप डालने से लीकेज भी ज्यादा होती हैं। इसकी वजह से उन्होंने बिजली के खंभों का सहारा लिया। ग्रामीणों का कहना है कि लगभग दस साल से यह व्यवस्था बनाई है। उनका कहना है कि बिजली के खंभों पर अब खुले तार नहीं हैं। बिजली की केबल डली हुई हैं। इसकी वजह से करंट की संभावना नहीं है।

टीटीएसपी में भी खारा पानी

ग्राम प्रधान चंद्रभान का कहना है कि गांव में पानी की समस्या के समाधान के लिए सरकारी हैंडपंप और टीटीएसपी (टैंक टाइप स्टैंड पोस्ट) लगवाए गए। इनमें से अधिकांश का खारा पानी ही है। इसलिए यह उपयोग में नहीं आ पा रहे। उनका कहना है कि वह पानी की टंकी के लिए लंबे समय से प्रयास कर रहे हैं लेकिन इस योजना को अब तक हरी झंडी नहीं मिली है।

यहां भी पानी की समस्या

वीरई गांव में ही नहीं आसपास के कई गांवों में खारे पानी की समस्या है। नगला पुरोहित, नगला केसरी, बांके पुरा आदि गांव के लोग भी खारे पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इन गांवों के भी कुछ लोगों ने नहर किनारे ट्यूबवेल लगाकर गांव तक पाइपों के माध्यम से पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर रखी है।

गांव का भूमिगत पानी खारा है। सालों सरकार का इंतजार किया लेकिन जब मीठा पानी नहीं मिल सका तो हमने नहर किनारे ट्यूबवेल लगा लिए। यहीं से पाइपों के माध्यम से अपने घर तक पानी ला रहे हैं।