चूल्हे में सिकती रोटी का जवाब नहीं, स्वाद के साथ हैल्दी भी

चूल्हे की रोटी
चूल्हे की रोटी

मिट्टी के चूल्हे में चटकती लकडिय़ों पर सिंकती रोटियों की सुगंध के साथ दादी मां की कहानियों का रोमांच आज भी मेरी यादों में कैद है। इतने वर्षों बाद भी चूल्हे में पकी रोटियों पर लगी राख और धुएं की सौंधी खुशबू का आज तक कोई जोड़ नहीं। वो रोटियां सिर्फ भोजन नहीं, पूरा का पूरा अनुभव का पिटारा हैं, परंपरा से जुड़ाव हैं और उन पकती रोटियों के साथ साझा हुआ दुलार हैं, जो इन्हें विशिष्टतम बनाता है। ये यादें सिर्फ हम भारतीयों के दिल-दिमाग में नहीं, बल्कि विदेश जा बसे भारतीय मूल के लोगों हन के भी जेमें ताजा हैं और कई हजार किलोमीटर लंबी दूरी के बीच रोटी पुल भी बनती जा रही है। तभी तो सामान्य भोजन की थाली का हिस्सा रहने वाली रोटी को बड़े-बड़े इंटरनेशनल रेस्टोरेंट के मेन्यू में शामिल किया जा रहा है। चूल्हे रोटी

जैसा देश वैसा भेष

चूल्हे की रोटी
चूल्हे की रोटी

भारतीय घरों की रसोई से शुरू हुई रोटी की यात्रा बाद में ढाबा संस्कृति का केंद्र बन गई, जहां लोगों को यात्रा के दौरान देसी-घरेलू स्वाद वाला भोजन मिलता था। जैसे-जैसे भारत में रेस्टोरेंट कल्चर लोकप्रिय हुआ, तंदूरी रोटी और नान मेन्यू में मुख्य रूप से शामिल होती गईं। जब भारतीयों ने विदेश में जड़ें जमाईं, रोटी दुनियाभर में फैल गई। आज अंतरराष्ट्रीय रसोई से लेकर सुपरमार्केट और फ्यूजन व्यंजनों में रैप के स्वस्थ विकल्प के रूप में रोटी मौजूद है। बात अगर रोटी की शुरुआत की, तो रोटी का प्रथम निर्माण करने वाला ऐसा कोई मुख्य बिंदु तय करना असंभव है। जैसी संस्कृति के लोग आगे बढ़ते गए, वैसा ही रोटी का अंदाज होता गया।

रोटी एक, नाम अनेक

चूल्हे की रोटी
चूल्हे की रोटी

अपने देश में ही तमाम तरह की रोटियां महकती हैं। महाराष्ट्र में मसालेदार मल्टीग्रेन रोटी थालीपीठ है, तो कर्नाटक में चावल के आटे से बनने वाली अक्की रोटी है। राजस्थान व गुजरात में बाजरा की रोटी और पंजाब की मक्के की रोटी का स्वाद बेजोड़ है, तो उत्तर भारत की रूमाली रोटी, तवा रोटी देशभर में स्वाद की विविधता की पहचान हैं। इन जगहों के लोग जब जबरन या काम की तलाश में प्रवास पर निकले तो अपने अंदाज में व उस स्थान पर उपलब्ध सुविधाओं के हिसाब से रोटी बनाने लगे। चार कोस पर बदले पानी से बढक़र चार कोस पर नाम बदल रही रोटी अब सहज भोजन का विकल्प बनती जा रही है।

विदेशों में क्या-क्या कहलाई रोटी

सामान्यत: गेहूं के आटे और पानी की मदद से गूंथे आटे से बनने वाली रोटी जब मलेशिया पहुंची तो कनाई रोटी बन गई, गुयाना पहुंचकर शैगी रोटी, श्रीलंका में कोट्टू रोटी, केन्या में चपाती बनकर लोगों की स्वादग्रंथियों को तृप्त करती आ रही है। मल्टीटास्किंग के दौर में स्वाद और सेहत की जुगलबंदी का आसान तरीका बनती रोटी न सिर्फ सामान्य थाली में है बल्कि इतालवी सैलेड पेंजानेला, फ्रेंच टोस्ट, स्पैनिश डिश कीसडिला, टैकोज और पित्जा के बेस में भी खूब पसंद की जा रही है। आलम तो यह है कि विदेश के सुपरमार्केट में इसके फ्रोजन वर्जन धड़ल्ले से बिक रहे हैं तो भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है।

जारी हैं प्रयोग

पिछले कुछ सालों में, रोटी बनाने के मेरे तरीके में काफी बदलाव आया है, क्योंकि मैंने अपनी तकनीक को और बेहतर बनाने पर काम किया है। ऐसा नहीं है कि गोवा में रेस्टोरेंट है, तो यहां खाने में रोटी की कोई जगह नहीं। सामान्य तवा रोटी से लेकर रोटी बेस वाले पित्जा, टैकोज आदि की यहां भी मांग है। जिसके मूल में है ठीक ढंग से तैयार की गई रोटी। इसके लिए मैंने मूल बातों पर ध्यान केंद्रित किया है। समय के साथ मुझे सही तरीके से आटा गूंथने, उसे कुछ देर ढंककर रखने और बेलने की सही प्रक्रिया का महत्व समझ आया है। मैंने अलग-अलग आटे के साथ भी प्रयोग किया और कभी-कभी बनावट और स्वाद को बढ़ाने के लिए घी या दही जैसी सामग्री भी डाली है और इसके साथ ही तवे की सही आंच और कितनी देर तक रोटी को तवे पर और फिर सीधी आंच पर पकाना है, इन जैसी सामान्य किंतु अति महत्वपूर्ण बातों पर पूरा ध्यान दिया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मेरी बनाई हर रोटी पूरा स्वाद परोसे।

जिस तेजी से भारत सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय रेस्टोरेंट की पहुंच-संख्या बढ़ रही है। अब भारतीय रोटी में निश्चित रूप से नवाचार और परंपरा दोनों शामिल हो रहे हैं। जाहिर है सेहत के प्रति सजग हो रहे लोगों के लिए यह स्वाद और स्वास्थ्य का मिश्रित विकल्प है। साथ ही इसको बनाने के तरीकों में नित नवाचार इसे आज की पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। हां, अगर आपको गोट- मटोल गर्मागर्म भाप भरी रोटी की खुशबू बचपन की यादों में ले जाए, तो वह भूख तो कोई नहीं मिटा सकता!

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