अभय दान से बढ़कर कोई दान नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाश्रमण

कच्चे पगडंडियों व संकरे ग्रामीण मार्ग पर गतिमान ज्योतिचरण

सारंबा से 11 कि.मी. का विहारकर ढोरवि तथा 5 कि.मी. का सान्ध्यकालीन विहारकर मलकापुर पांग्रा में हुआ रात्रिकालीन प्रवास

ढोरवी बुलढाणा। मई का महीना, तपता सूर्य, तवे के समान धधकती धरती, निरंतर बढ़ता तापमान, आम जन-जीवन बेहाल। ऐसे प्रतिकूल परिस्थिति में भी जनोद्धार के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी की परिव्राजकता अखण्ड रूप में जारी है। इतना ही नहीं, महातपस्वी जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रायः प्रतिदिन प्रातः और सान्ध्यकालीन समय में भी विहार कर रहे हैं। महातपस्वी की ऐसी कठोर श्रम साधना श्रद्धालुओं को और अधिक श्रद्धानत बना रही है।

जहां लोग सूर्य के आसमान में चढ़ते ही घरों से निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं, वहीं शांतिदूत आचार्यश्री समता भाव से गतिमान रहते हैं। इतना ही नहीं, श्रद्धालुओं को दर्शन देना, आशीष देना, विहार के उपरान्त व्याख्यान आदि देने के क्रम में कोई परिवर्तन भी दिखाई नहीं देता। ऐसे महामानव, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में सारंबा गांव से गतिमान हुए। मार्ग में अनेक स्थानों पर खड़े श्रद्धालुओं ग्रामीणों पर आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री कच्चे और संकरे रास्ते गंतव्य की ओर गतिमान थे। राजमार्ग को छोड़ संकरे ग्रामीण मार्ग पर गतिमान आचार्यश्री लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर ढोरवि गांव में स्थित जिला पंचायत मराठी प्राथमिक शाला में पधारे।

आचार्यश्री महाश्रमण
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प्राथमिकशाला में ही आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित ग्रामीण जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आगमों में पुनर्जन्म की बात बताई गई है। प्रश्न हो सकता है कि आत्मा का पुनर्जन्म क्यों होता है? आदमी तो मोक्ष जाने की बात भी करता है तो जन्म-मरण से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है। जन्म-मरण से मुक्त होना है तो पहले जन्म-मृत्यु होने के कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिए। यदि कारण को नष्ट कर दिया जाए तो फिर आदमी इससे मुक्त हो सकता है। इसका कारण बताया गया- क्रोध, मान, माया और लोभ रूपी चार कषाय।

ये कषाय जन्म-मरण की प्रक्रिया को सिंचन देने वाले होते हैं। यदि इस सिंचन को ही रोक दिया जाए तो फिर जन्म-मरण की परंपरा को नष्ट किया जा सकता है। जैन दर्शन में पुनर्जन्म की बात बताई गई है। आदमी को अपने कर्म का फल भोगना होता है। आदमी जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल प्राप्त होता है।

कर्मयुक्त आत्मा ही जन्म-मरण के चक्र में फंसी रहती है। इसलिए आदमी को जितना संभव हो सके उसे कषायों से मुक्त रहने और पाप कार्यों से बचने का प्रयास करे। संवर-निर्जरा की साधना से अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास हो। कषायों को जितना क्षीण कर सकें, जितना पतला हो सके, उसे करने का प्रयास करना चाहिए। मन में शांति हो। लोभ, लालच, लालसा कम हो। अहंकार का भाव भी कम हो। चारों कषायों से बचते हुए जन्म-मरण सेे मुक्त होने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी सान्ध्यकालीन विहार के लिए गतिमान हुए। पीठ की ओर स्थित सूर्य की किरणें धीरे-धीरे कम होती जा रहीं थी। लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मलकापुर पांग्रा में स्थित अरुणभाऊ मखमले महाविद्यालय में पधारे।

इस महाविद्यालय में आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ। इससे पूर्व कल रविवार को प्रातः देवगांव मही में गुरुदेव पधारे एवं जैन भवन आदि में मंगलपाठ प्रदान कर श्रद्धालुओं को आशीष प्रदान किया। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में धर्म देशना देते हुए गुरुदेव ने कहा – हमारे भीतर भय की वृति होती है। कोई व्यक्ति अंधकार से, कुछ अपनी बीमारी से व कुछ दूसरे की बीमारी से, कुछ चूहे, बिल्ली जैसे जानवरों से भी डर जाते हैं। दूसरे को भय मुक्त कर देना सबसे बड़ा दान है।

दानों में सबसे बड़ा दान अभयदान को कहा गया है। एक कथानक का दृष्टांत देते हुए गुरुदेव ने आगे कहा कि व्यक्ति ना खुद डरे, न किसी को डराए। स्वयं भी भय मुक्त रहे और दूसरों को भी अभय का दान दे। जब भीतर में भय होता है तो व्यक्ति हिंसा भी कर सकता है। इसलिए समस्त प्राणियों के प्रति अभय का भाव रखना चाहिए।इस अवसर पर साध्वीप्रमुखा विश्रुत विभा जी ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। तत्पश्चात अपनी जन्मभूमि पर मुनि चिन्मय कुमार जी ने भावाभिव्यक्ति दी। स्वागत के क्रम में क्षेत्रीय विधायक श्री राजेंद्र सिंघने, तेरापंथ सभा देवलगांव मही की ओर से श्री राजेंद्र आंचलिया, श्री आशुतोष गुप्ता, श्री अशोक कोटेचा, स्कूल की ओर से श्री अजीतदादा बेगानी ने गुरुदेव का अभिनंदन किया।

विशेष रूप से उपस्थित मुंबई हाईकोर्ट के जज श्री कमलकिशोर तातेड ने विचारों की अभिव्यक्ति दी। सामूहिक प्रस्तुति करते हुए तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ कन्या मंडल, गांव की बहन बेटियां, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने गीत आदि का संगान किया। मध्यान्ह में आचार्य श्री ने डीआरबी इंटरनेशनल स्कूल से प्रस्थान किया। लगभग 5.5 किमी विहार कर सारंब गांव में रात्रि प्रवास हेतु पधारे। रात्रि में व्याख्यान का क्रम भी रहा जिसमें गुरुदेव ने गांववासियों को प्रतिबोधित किया।

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