
फरक इतना कि वहां मिले, और यहां मिली। वहां चलते-फिरते और यहां बंद। उनका बस चलता तो वो भी बहुमत के साथ बह जाते और इनका बस चलता तो क्या आठ और क्या ग्यारह। रात भर खुल्ली रहे तो भी रंगत में लेस मात्र कमी नहीं। कुल जमा मिले-मिली की मिलीभगत चलती आई है। चल रही है.. और चलती रहणी है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
मिला-मिले और मिली का मिलिस्तान खासा लंबा-चौड़ा है। कोई बिछड़ता है कोई मिलता है। कोई खोता है कोई मिलता है। कोई मिलता भी है जुलता भी है। कौन मिला-कहां मिला-क्यूं मिला। इसको स्त्रीलिंग में कहें-लिखे तो कौन मिली-कहां मिली-क्यूं मिली-कैसे मिली। सुर में बहाएं तो निकलेगा-‘कोई मिल गया..। मिला-मिली का चक्र ता-जिन्दगी घूमता रहता है। यदि एक-एक को लेकर बैठ गए तो कैलेंडर बदल जाणे हैं। इस का मतलब यह नही कि दिन-महिने-साल गुजरने के डर से हम किसी मसले-मुद्दे पे चर्चा ही नही करे। आप, एक बात बताइए-किसी प्रोजेक्ट पर काम शुरू होता हैं तो समय लगता है कि नहीं? लगता है-यकीनन लगता है। यह बात दीगर है कि सरकारी और निजी संस्थाओं के कार्य-रफ्तार में दिन-रात का फरक होता है। प्राइवेट सेक्टर में जो कार्य तीन माह में मुकम्मिल हो जाता है-सरकारी सेक्टर में उसी काम पर तीन साल पक्के मानो। इसमें भी चारेक महिने ऊपर हो सकते हैं। कम होणे का तो सवाल ही नहीं। जाहिर है कि समय अवधि बढने पर लागत भी बढा दी जाती है। निजी क्षेत्र में किसी काम के पेटे दो करोड़ तो सरकारी क्षेत्र में दो की जगह पांच करोड़। ऐसा होने पर दोहरा घाटा। एक तो समय और दूसरा लागत-दोनों का जोरदार भचीड़। क्यूं कि ऐसा चलता आया है-इसलिए वैसा ही चल रहा है। किसी ने अंगुली टेढी नही की तो ऐसा ही चलता रहेगा। वैसे, अब अंगुली टेढी करने वालों की संख्या बढ रही है। पहले चार थे-अब छह हो गए। पर यह संख्या नाकाफी है। चार की जगह चार लाख और चार लाख से चार करोड़ हो जाए साथ ही निरंतरता बनी रहे, तब तो है मजा वरना चार दिन की चांदनी-फिर अंधेरी रात..।
टेढी अंगुली करने के तार शासन-प्रशासन के साथ-साथ समाज और समाजशास्त्र से जुड़े हुए। शासन-प्रशासन के रवैये के बारे में ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं। लगता है नौ दिन चले अढाई कोस.. वाली कहावत को सरकारी कारिंदों को सामने बिठाकर घड़ा गया। अब वह रफ्तार और कम हो गई। इस कहावत को किस ने, कब और किस प्रसंग पर घड़ा, इसका तो पता नही, मगर इतना जरूर कह सकते हैं कि इसका लोकार्पण आजादी के बाद हुआ। इससे पहले चाहे फिरंगियों का राज रहा हो या कि मुगलों अथवा राजों-महाराजों का। उस जमाने में आज का काम आज-अभी का काम अभी। आजाद भारत में ‘सब चलता है ऐसा चला कि ऑटो-रिक्शाओं ने उकेर दिया ‘अठे तो यान ही चाल सी..।
ऐसा नहीं कि चाल सुधारने के प्रयास ना हुए हों। समय-समय पर भाईसेणों ने अंगुली टेढी की मगर, निरंतरता और कर्तव्यों की अनदेखी के कारण वापस सीधी हो गई। हथाईबाज इससे पहले भी अधिकारों और कर्तव्यों पर चर्चा कर चुके हैं। परिणाम और उपदेश यह निकले कि हम जिस प्रकार अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हैं, उसी प्रकार कर्तव्यों के प्रति सजग रहे तो आम लोगों की नब्बे प्रतिशत समस्याएं चुटकी में खल्लास हो सकती है। पर हम ऐसा नहीं करते। अधिकारों को लेकर खूब हाय-तौबा मचाते हैं और जब बात कर्तव्य निभाने की आती है तो अगले-बगलें झांकने लग जाते हैं। ऐसा कत्तई नही होना चाहिए पर हो रहा है। हम लोग प्राण-प्रण से अपने कर्तव्यों को निभाने में जुट जाएं तो कहीं-‘ यहां ना थूकें..यहां कचरा ना डालें.. यहां वाहन खड़ा ना करें.. सरीखे जुमले पढने को नही मिलेंगे।
बात घूमा-फिरा के मिलेंगे पे आ गई। आ गई नही बल्कि ले आए। वो इसलिए कि बात का बिस्मिल्लाह ही मिलने से हुआ था, इति भी मिलने-मिलाने या मिलनी से हो तो ज्यादा बेहतर रहेगा।
हथाईबाजों ने गत दिनों ‘दो तो मिले शीर्षक से छपी हथाई में जोधपुर विकास प्राधिकरण के हाल-हूलिए पर चर्चा की थी। हूआ यूं कि संभागीय आयुक्त डॉ समित शर्मा जो जेडीए के अध्यक्ष भी हैं, ने वहां का औचक निरीक्षण किया तो एक अजब-अजीब तस्वीर दिखाई दी। वहां कार्यरत 310 में से सिर्फ 2 करमचारी दफ्तर में मिले बाकी साहबजादों में से कोई दस बजे पधारा, कोई साढे दस तो कोई ग्यारह बजे। डॉ शर्मा की कार्यशैली अलग है। वो बहुत कुछ करना चाहते हैं। कुछ किया भी है। वो जहां भी रहे सुधार किया। उन्हीं के निर्देश पर आबकारी विभाग के अफसरों ने कल-परसों दारू की दुकानों का निरीक्षण किया तो 19 पर रात को 8 बजे के बाद भी दारू बिक रही थी। निरीक्षण किया 43 का और खुली-अधखुली या चोर खड्डे से 19 दुकानों से दारू बेची जा रही थी।
शुकर है कि 19 दुकानों से ही चोर बिकरी होते मिली। दारू वालों का बस चले तो रात भर यह दौर चलाते रहे। ऐसा हुआ तो ग्राहकों के आने-जाने में भी कमी नही। रात 8 बजे के बाद किस दुकान के किस खड्डे से किस स्टाइल में दारू थमाई जाती है। पुलिस जानती है। आबकारी विभाग जानता है पर आंखें बंद। अब, जब कोई आंखें खोलने वाला आया है तो हम सब को उनका साथ देना चाहिए। हमें सब चलता है को रोकने की जरूरत है।