जहां तेंदुए से भी खौफ नहीं खाते इंसान वह है राजस्थान का यह खास गांव

तेंदुए
तेंदुए

सोचिए, अगर आप अपने घर की छत पर सुबह-सुबह आंखें मलते हुए बाहर निकलें और सामने एक तेंदुआ बैठा हो, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? डर, घबराहट या शायद भाग जाना… लेकिन राजस्थान के पाली जिले में लोग न तो डरते हैं, न ही चौंकते हैं, बल्कि तेंदुए को ‘पुराना पड़ोसी’ मानकर मुस्कुरा देते हैं। जी हां, ये कोई कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है। एक ऐसा इलाका, जहां इंसानों और तेंदुओं के बीच कोई जंग नहीं, बल्कि आपसी समझदारी और भरोसे का अनोखा रिश्ता है। यहां के लोग तेंदुओं को दुश्मन नहीं, बल्कि गांव का रक्षक मानते हैं। इस रिश्ते में डर की जगह है आस्था की और खतरे की जगह सह-अस्तित्व की। जहां तेंदुए से भी खौफ नहीं खाते इंसान वह है राजस्थान का यह खास गांव

तेंदुओं से नहीं डरते गांव के लोग

तेंदुए
तेंदुए

राजस्थान के पाली जिले में स्थित कुछ गांव, जैसे- बेरा, फालना, दांतीवाड़ा और जवाई—अपनी खास वजहों से चर्चा में रहते हैं। इन इलाकों में तेंदुए खुले में घूमते हैं, पहाड़ी गुफाओं में रहते हैं, और कई बार तो घरों की छतों पर भी दिखाई दे जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि यहां के लोग न तो डरते हैं और न ही इन पर हमला करते हैं। बल्कि, तेंदुए यहां के लोगों की जिंदगी का एक हिस्सा बन चुके हैं।

यहां तेंदुए भी हैं ‘पड़ोसी’

इन गांवों में रहने वाले रबारी समुदाय के लोग तेंदुओं को खतरा नहीं, बल्कि एक साथी मानते हैं। उनकी नजर में ये तेंदुए गांव की रक्षा करने वाले प्राणी हैं। यही नहीं, उनका ये भी मानना है कि तेंदुए बुरी शक्तियों से गांव को बचाते हैं। इस विश्वास का असर इतना गहरा है कि अगर तेंदुआ किसी की बकरी उठा ले जाए, तो भी लोग उसे एक ‘कुदरती देन’ मानते हैं और नाराज नहीं होते।

तेंदुओं का गढ़

पाली जिले का जवाई इलाका तो खासतौर पर लेपड्र्स का गढ़ माना जाता है। यहां की पहाड़ी गुफाएं और शांत वातावरण इन जंगली बिल्लियों के लिए एक आदर्श निवास स्थान बनाते हैं। माना जाता है कि सिर्फ जवाई इलाके में ही 60 से ज्यादा तेंदुए रहते हैं। उनकी मौजूदगी से भेडि़ए और लकड़बग्घे जैसे शिकारी प्राणी नियंत्रण में रहते हैं, जो गांव के पशुधन के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।

परंपरा और प्रकृति का मेल

रबारी समुदाय, जिनकी पहचान उनकी लाल पगडिय़ों से होती है, एक घुमंतू जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इन इलाकों में वे पीढिय़ों से बस चुके हैं। तेंदुओं के साथ उनका रिश्ता डर और संघर्ष का नहीं, बल्कि समझदारी और सम्मान का है। यहां जिंदगी जीने का एक अलग ही उसूल है- खतरों के साथ तालमेल बैठाकर जीना।

वन्य पर्यटन का नया केंद्र

जवाई और बेरा जैसे गांव अब जंगल सफारी के शौकीनों के लिए एक आकर्षक स्थल बन चुके हैं। अरावली की पहाडिय़ों के बीच बसे इन इलाकों में आप खुले में घूमते तेंदुओं को देख सकते हैं। यहां की सफारी खास इसलिए भी है क्योंकि यहां जानवरों को देखने का अनुभव जंगल की बजाय इंसानों के करीब और उनके बीच होता है।

सह-अस्तित्व की मिसाल

आज जब इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव की खबरें आम हो गई हैं, ऐसे में पाली जिले का यह मॉडल एक सीख देता है। यह दिखाता है कि अगर इंसान चाहे तो जंगली जानवरों के साथ भी तालमेल बनाकर शांति से रहा जा सकता है। रबारी समुदाय का तेंदुओं के साथ यह अनोखा रिश्ता सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि पर्यावरण के साथ संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा भी है।

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