संसद की नवगठित 24 स्थाई संसदीय समितियों में इस बार राजस्थान से कोई अध्यक्ष नहीं!

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गोपेन्द्र नाथ भट्ट

संसद द्वारा हाल ही अलग-अलग मंत्रालयों से जुड़ी 24 स्थाई समितियों का गठन और इन स्थायी समितियों के अध्यक्षों एवं सदस्यों के नामों का ऐलान कर दिया गया हैं। इस बार संसद की स्थाई संसदीय समिति में राजस्थान से कोई अध्यक्ष नहीं बनाया गया है,जबकि पिछलीं बार पाली के सांसद और पूर्व केन्द्रीय क़ानून और सहकारिता राज्य मंत्री पी पी चौधरी को विदेश मामलों की स्थाई समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। इस बार गठित 24 स्थायी संसदीय समितियों के गठन में गठबन्धन सरकार की मजबूरियों की झलक भी दिख रही हैं। प्रत्येक समिति में लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्यों को शामिल किया गया है।

कांग्रेस से जुड़े सांसद नेता चार समितियों की अध्यक्षता करेंगे तथा दो-दो समितियों के अध्यक्ष द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस के सांसद होंगे। इनके अलावा एक-एक संसदीय स्थायी समिति की अध्यक्षता समाजवादी पार्टी और जेडीयू तथा शिवसेना और एनसीपी के सांसद करेंगे । शेष समितियों के अध्यक्ष भाजपा अथवा भाजपानीत एनडीए के सांसद बनाये गये है। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गाँधी को रक्षा मंत्रालय से जुड़ी समिति का सदस्य बनाया गया है लेकिन आश्चर्य जनक ठंग से सात बार की सांसद और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का नाम किसी भी समिति में शामिल नहीं है।

इस बार कांग्रेस को जिन चार समितियों की अध्यक्षता मिली है इनमें विदेश मामलों की समिति भी शामिल है, जिसकी अध्यक्षता शशि थरूर करेंगे। कांग्रेस को कृषि, शिक्षा, महिला, युवा ओर खेल समिति की अध्यक्षता भी मिली है।शिक्षा के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह होंगे। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण समिति का अध्यक्ष बनाया गया हैं। 24 स्थाई समितियों में भाजपा के राधा मोहन दास अग्रवाल को गृह मामलों की समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है । इसी प्रकार रक्षा मामलों की समिति के अध्यक्ष भाजपा ही के राधा मोहन सिंह होंगे। राहुल गाँधी को इस समिति का सदस्य बनाया गया है। पिछली बार भी वे रक्षा समिति के सदस्य रह चुके है।

इन समितियों के अलावा शिवसेना नेता श्रीरंग अप्पा को ऊर्जा और एनसीपी नेता सुनील तटकरे पेट्रोलियम समिति का अध्यक्ष चुना गया हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को कोयला, खान और इस्पात मामलों की समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। कानून और कार्मिक मंत्रालय की समिति के अध्यक्ष बृजलाल होंगे। बीजेडी से बीजेपी में आए भर्तृहरि महताब को वित्त मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति का अध्यक्ष बनाया गया है।वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी को जल संसाधन मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति की अध्यक्षता मिली है। पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान वाणिज्य मंत्रालय और हरभजन सिंह शिक्षा मंत्रालय से जुड़े स्थाई समिति के सदस्य होंगे।

महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना और एनसीपी एक-एक समिति का नेतृत्व करेंगे।एनसीपी के एकमात्र लोकसभा सदस्य सुनील तटकरे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से जुड़ी समिति का नेतृत्व करेंगे। वहीं शिवसेना के श्रीरंग अप्पा बारणे ऊर्जा संबंधी संसदीय समिति का नेतृत्व करेंगे। जेडीयू के संजय झा परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी समिति की अध्यक्षता करेंगे। वहीं तेलुगू देशम पार्टी के मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी आवास और शहरी मामलों संबंधी समिति की अध्यक्षता करेंगे। डीएमके के तिरुचि शिवा और कनिमोझी उद्योग और उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण से जुड़ी संसदीय समितियों के अध्यक्ष होंगे। इसी प्रकार राम गोपाल यादव स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष बनाया गया हैं। फ़िल्मी एक्ट्रेस से नेता बनीं भाजपा की पहली बार सांसद बनी कंगना रनौत को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय पर बनी समिति का सदस्य बनाया गया है तथा अरुण गोविल विदेश मामलों की समिति के सदस्य बनाए गए हैं।

संसद की स्थायी समिति संसद के अंदर ही गठित की गई ऐसी समितियां होती हैं जो किसी खास विषय या मंत्रालय से जुड़े मामलों पर गहराई से अध्ययन करती हैं। इसके सदस्य विभिन्न दलों के सांसद होते हैं। ये समितियां संसद के मुख्य कार्यों को ज्यादा कुशलता से करने में मदद करती हैं। संसदीय समितियां सरकार द्वारा पेश किए गए विधेयकों का विस्तार से अध्ययन करती हैं और उनमें सुधार के लिए सुझाव देती हैं। कई बार किसी मुद्दे पर या विधेयकों पर पक्ष और विपक्ष में होने वाले गतिरोध को दूर करने के लिए भी संसद की स्थायी समिति की मदद ली जाती है। संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है अथवा अध्यक्ष या सभापति द्वारा नामित किया जाता है। समिति अध्यक्ष अथवा सभापति के निर्देशन में कार्य करती है और यह अपनी रिपोर्ट सदन अथवा अध्यक्ष या सभापति को प्रस्तुत करती है। संसदीय समितियों की उत्पत्ति ब्रिटिश संसद में हुई है थी और यह परंपरा तबसे ही चली आ रही हैं।

संसद का वर्षों कवरेज करने का अनुभव करने वाले मीडिया से जुड़े वरिष्ठ लोगों का कहना है कि संसद की स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल का होता है। जबकि तदर्थ समितियों का कार्यकाल कार्य सम्पन्न होते ही समाप्त हो जाता है। केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य स्थायी समितियों के सदस्य नहीं होते है और यदि समिति का कोई सदस्य मन्त्री बन जाता है तो समिति का सदस्य नहीं रह पाता। इसलिए उनका मानना है कि जिन सांसदों को समिति का अध्यक्ष अथवा सदस्य नहीं बनाया गया है उन्हें हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव के बाद संभावित मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन में शामिल किया जा सकता है। देखना है कि आने वाले दिनों में संसद की तस्वीर और कितनी बदलेगी और कौन कौन कहाँ बैठेंगें?