त्रिदिवसीय कोकराझार लिटरेरी फेस्टिवल 23 सम्पन्न

कोकराझार। पिछले दिनों बीटीआर सरकार, कोकराझार-आसाम द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय कोकराझार लिटरेरी फेस्टिवल का दूसरा संस्करण “प्रेम और सद्भावना” थीम को समर्पित रहा । प्रकृति की गोंद में आई गौरांग नदी के किनारे स्थित वोडोफा कल्चरल काम्पलैक्स, कोकराझार में 6, 7 और 8 जनवरी, 23 को महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति एवं गांधीवादी विचारक प्रोफेसर डाॅ.रमेश चन्द्र भारद्वाज के मुख्य आतिथ्य एवं आयोजन समिति के चेयरमैन, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत बोड़ो साहित्यकार प्रोफेसर डाॅ.अनिल बोड़ो की अध्यक्षता में आयोजित इस महान साहित्य उत्सव का बीटीआर सरकार के सीईएम प्रमोद बोड़ो ने दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन किया।

समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर डॉ.के. श्रीनिवास राव,सचिव साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली , डाॅ. कुलाधर सैकिया,अध्यक्ष, असम साहित्य सभा तथा साहित्य अकादेमी नई दिल्ली से पुरस्कृत प्रख्यात साहित्यकार येशे दोरजी थोंग्ची तथा टोरेन बोड़ो, अध्यक्ष बोड़ो साहित्य सभा तथा प्रशान्त बोड़ो, सचिव, बोड़ो साहित्य सभा, मोनिका बनर्जी, सीओ इंटरनेशनल फाउंडेशन आदि भी सम्मानित अतिथि के रूप में विचार व्यक्त किये। प्रारम्भ में आयोजन समिति के चेयरमैन प्रोफेसर डाॅ.अनिल बोड़ो तथा बीटीआर सरकार के प्रमुख शासन सचिव अनुराग गोयल,आई.ए.एस.ने उपस्थित अतिथियों एवं लिटरेरी फेस्टिवल के प्रतिभागी रचनाकारों का स्वागत किया । बीटीआर सरकार के सीईएम माननीय प्रमोद बोड़ो ने इस अवसर पर देश-दुनिया से साहित्योत्सव में हिस्सेदारी निभाने आये अतिथि साहित्यकारों एवं कलाकारों को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि कोकराझार लिटरेरी फेस्टिवल साहित्य की उत्कृष्टता की खोज में शामिल होने और साहित्य के माध्यम से शांति को बढ़ावा देने का एक साझा मंच है। इस मंच पर देश और दुनिया के अमन पसंद साहित्यकारों तथा कलाकारों का स्वागत है। इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि सभी मानते हैं कि हम साहित्य महोत्सव के माध्यम से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं ।

पिछले वर्ष आयोजित ‘ कोकराझार अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव’ में देश और दुनिया से लगभग 111 भाषाओं के 169 कवियों ने भागीदारी निभाई थी । अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव के माध्यम से देश और दुनिया में प्रेम और शांति का संदेश पहुँचाने में हम सफल भी रहे हैं । उन्होंने कहा, मैं मानता हूं कि पूर्वोत्तर स्थित हमारे बोड़ोलैंड में विशेष कर हमारे इस शहर में बंदूक की गोलियां गूंजती थीं। …खून खराबे की आप कल्पना नहीं कर सकते ! इस तरह हिंसा ही हमारी पहचान बन गई थी। अभी जैसे जैसे समय बीतता और बदलता जा रहा है स्थियां भी बदली हैं और निरन्तर बदलती जा रही हैं । हमारे ही अपने भूले भटके लोग हिंसा का रास्ता छोड़कर प्रेम और शांति के मार्ग मुख्य धारा में लौट रहे हैं । आज यह सुखद स्थिति बनी हुई है कि हमारी युवा पीढ़ी हिंसा के मार्ग को छोड़कर कर साहित्य और कलाओं की ओर आकर्षित ही नहीं हो रही संजीदगी से सृजन भी कर रही है । उन्होंने अपने संबोधन में इस बात को रेखांकित करते हुआ कहा कि हमारा आज का बोड़ोलैंड पहले के बोड़ोलैंड से भिन्न है। प्रेम, शांति और सद्भावना से हमारा सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश भी निरन्तर बदलता जा रहा है। मैंने बीटीआर में कार्यग्रहण करते ही कोकराझार को शांति की नगरी के रूप विकसित करने का सपना देखा था,वह साकार होता जा रहा है । इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि पिछली बार बीटीआर सरकार की ओर से आयोजित त्रिदिवसीय ‘अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव’ को सफल बनाने के लिए अतिथि साहित्यकारों, संभागी कवियों ,कलाकारों और आमजन की प्रशंसनीय भूमिका रही है। मैं उन सभी के प्रति, विशेषकर साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत राजस्थानी और हिन्दी के एमिनेंट पोइट एंड राइटर मीठेश निर्मोही जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूं जिनसे हमें बराबर रूप से परामर्श और रचनात्मक सहयोग मिलता रहा है । मीठेश निर्मोही जी पिछली बार त्रिदिवसीय ‘कोकराझार अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव’ में चीफ गेस्ट थे, इस बार भी हमारे निमंत्रण पर अतिथि साहित्यकार के रूप में उपस्थित हुए हैं । आशा करता हूं कि भविष्य में भी आपका परामर्श और रचनात्मक सहयोग मिलता रहेगा ।

मुख्य अतिथि प्रोफेसर डाॅ. रमेश चन्द्र भारद्वाज ने उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि जब शांति होती है, तभी साहित्य एवं संस्कृति का संवर्धन का काम हो सकता है । राजनीति के संघर्ष में एक दूसरे को मारते रहेंगे न तो समाज बचेगा न ही साहित्य और संस्कृति ही बचेगी । यहां के साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों ने अपनी भाषा , साहित्य और संस्कृति को बचाने के लिये गांधी के विचारों को अपनाकर प्रेम और सद्भावना के रास्ते बोड़ोलैंड में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । जहां तक पूर्वोत्तर की महान संस्कृतियों की बात है यहां के लोगों ने हज़ारों वर्ष पुराने मौखिक साहित्य और महान संस्कृतियों को बचा कर रखा है आज उनके प्रलेखन की आवश्यकता है। इस लिटरेरी फेस्टिवल की चर्चा करते हुए प्रोफेसर डाॅ.रमेश चन्द्र भारद्वाज ने कहा कि एक छोटे से स्थान पर इतना बड़ा आयोजन करना बोड़ोलैंड, आसाम अथवा पूर्वोत्तर के लिए ही नहीं अपितु हमारे पूरे देश के लिए गौरव की बात है, जिसमें बड़ी संख्या में देश- विदेश के साहित्यकार एवं कलाकार भाग ले रहे हैं । मैं आशा करता हूं कि अगले तीन दिनों में ये रचनाकार अपनी रचनात्मक संवेदनशीलता से साहित्योत्सव को उत्कर्ष तक पहुँचाने में महती भूमिका निभायेंगे।

साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत बोड़ो कवि एवं असम सरकार में कैबिनेट मंत्री माननीय श्री यू .जी. ब्रह्म ने इस अवसर पर अपने आधार वक्तव्य में पूर्वोत्तर की नाना विध बोलियों, उनके मौखिक साहित्य और साहित्यकारों का जिक्र करते हुए कहा कि लिपि विहीन भाषाओं, उप भाषाओं तथा बोलियों के लिए देवनागरी सबसे अच्छा विकल्प हो सकती है। यह ऐसी लिपि है जो पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है । इसी विशिष्टता के रहते हमने भी इसे अपनाया है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत की जनजातीय तथा आदिवासी भाषाओं एवं बोलियों तथा उपलब्ध लोक साहित्य और संस्कृतियों को हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए । इसमें केन्द्र सरकार और प्रादेशिक सरकारों को इनके संवर्धन एवं संरक्षण के लिए योजनाबद्ध रूप से प्रभावी भूमिका निभाने की जरूरत है । कोकराझार लिटरेरी फेस्टिवल की थीम ‘शांति एवं सद्भावना ‘ के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एक समय था जब हमारी बोड़ोलैंड में चहुं ओर बंदूकों की गूंज सुनाई पड़ती थी। प्रसंगवश बोड़ो लैंड का जिक्र आते ही, कोई भी बात होती तो यहां की हिंसा से शुरू होती थी। इस तरह ‘हिंसा’ ही यहां की पहचान बन चुकी थी। इस मिथ को हमने तोड़ने का प्रयास किया है। हिंसा के दौर में कहीं कहीं कलम रुकी रही ,लेकिन हमारे साहित्यकारों ने हार नहीं मानी । हिंसा की भाषा के आगे वे झुके नहीं । मानवता की रक्षा के लिए अपनी संवेदनशीलता के साथ सृजन करते रहे। मैं इस अवसर यह भी कहना चाहूंगा कि बोड़ो साहित्य की समृद्ध परंपरा रही है । देश की अधिकांश भाषाओं की जोड़ का साहित्य हमारी भाषा में भी रचा जा रहा है । इस फेस्टिवल के माध्यम से देश – विदेश साहित्यकारों एवं साहित्य के परसपर संपर्क में आने से हमारे साहित्यकार और साहित्य और अधिक समृद्ध होगा ।..साहित्य महोत्सव से हमारी युवा पीढ़ी संस्कारित हो रही है तथा निरन्तर सृजनरत है ।आज उसके हाथों में बंदूक की ठौर कलम और कूंची हैं ।इसी तरह हमारे लोक कलाकार भी आगे आ रहे हैं । इससे बड़ी और क्या उपलब्धि हो सकती है। उन्होंने इस अवसर पर यह भी कहा कि साहित्य महोत्सव के अगले संस्करण को हम फिर से देश दुनिया से जोड़ने का प्रयास करेंगे और इसे फिर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जायेंगे।

उल्लेखनीय रहे कि त्रिदिवसीय ‘ कोकराझार लिटरेरी फेस्टिवल ‘के दूसरे संस्करण में 6,7 एवं 8 जनवरी के विभिन्न सत्रों में कविता के अतिरिक्त साहित्य की अन्य विधाओं – पुस्तक, कहानी, नाटक को भी शामिल किया गया । साहित्य महोत्सव के विभिन्न सत्रों में भारतीय तथा विदेशी भाषाओं के कवियों एवं कहानीकारों ने अपनी अपनी रचनात्मकता से साहित्योत्सव को उत्कर्ष तक पहुँचाने में कोई कोर कसर नहीं रखी। पिछली बार साहित्यकार मीठेश निर्मोही जी द्वारा दिये गये परामर्श पर इस बार पूर्वोत्तर के युवा रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कविता और कहानी पर अलग से सत्र आयोजित किए गये । पुस्तकों तथा भाषा, साहित्य एवं संस्कृति से संबंधित विविध विषयों पर भी चर्चा – परिचर्चाएं आयोजित हुईं । लघु नाटकों का मंचन और पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ । लिटरेरी फेस्टिवल में लगभग सवा सौ भाषाओं, उप भाषाओं तथा बोलियों के भारत, नेपाल, बांग्लादेश, म्यान्मार, भुटान तथा थाईलैंड तथा इंग्लैंड आदि देशों से लगभग 300 से अधिक रचनाकारों ने सहभागिता निभाई ।

ग्रंथों का लोकार्पण एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियां: इस अवसर पर प्रोफेसर डाॅ. इन्दिरा बोड़ो, अंजलि बसुमतारी तथा गोविन्दा बोड़ो एवं उनकी संपादकीय टीम द्वारा संपादित एवं बीटीआर सरकार द्वारा प्रकाशित ‘थुनलाई’ शीर्षक ग्रंथ एवं विभिन्न सत्रों में लेखकों की सद्य प्रकाशित कृतियों का लोकार्पण भी किया गया ।इतना ही नहीं साहित्य महोत्सव के इस दूसरे संस्करण में लोक रंजन के लिये उत्तर-पूर्व की विभिन्न आदिवासी संस्कृतियों से जुड़े लोक कलाकारों, गायकों, वादकों ने अपने – अपने हुनर को प्रदर्शित किया तथा अभिभूत कर देने वाली संगीतात्मक ही नहीं अपितु नृत्यतयात्मक प्रस्तुतियां दीं ।

समापन समारोह: आठ जनवरी 23 को असम विधान सभा के माननीय अध्यक्ष एजेटी विश्वजीत दैमारी जी के मुख्य आतिथ्य, आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल बोड़ो की अध्यक्षता एवं असम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर अमर ज्योति चौधरी विशिष्ट आतिथ्य तथा आमंत्रित अतिथि माननीय सर्वश्री प्रमोद बोड़ो, सीईएम बीटीआर सरकार, माननीय श्री यू.जी. ब्रह्म ,कैबिनेट मंत्री, आसाम सरकार, प्रोफेसर अब्दुल अलीम ,मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ तथा मीठेश निर्मोही, साहित्य अकादेमी,नई दिल्ली से पुरस्कृत साहित्यकार के वक्तव्यों के साथ साहित्य महोत्सव समापन हुआ।

बीटीआर के सीईएम प्रमोद बोड़ो ने तथा अपने वक्तव्य में कहा कि मैं लिटरेरी फेस्टिवल के सफलता के लिए आयोजकों को ईमानदारी और प्रशंसा भाव से धन्यवाद देता हूं ।साहित्य महोत्सव में भागीदारी निभाने वाले साहित्यिक दिग्गजों के प्रति मेरा आभार जिन्होंने अपनी उपस्थित,ज्ञान और रचनाशीलता से इस आयोजन को समृद्ध और सफल बनाया। इस अवसर पर आमंत्रित अतिथि प्रख्यात साहित्यकार श्री मीठेश निर्मोही ने भी इस अनूठे,सार्थक और ऐतिहासिक आयोजन की सफलता के लिये बीटीआर सरकार के सीईएम श्री प्रमोद बोड़ो, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से पुरस्कृत बोड़ो कवि और असम सरकार में कैबिनेट मंत्री श्री यू.जी. ब्रह्म ,आयोजन समिति के चेयरमैन प्रोफेसर डाॅ.अनिल बोड़ो तथा उनकी टीम को संभागी साहित्यकारों की ओर से बधाई और साधुवाद देते हुए अगले संस्करण में उतर आधुनिकता से जुड़े साहित्य-विमर्शों तथा फिल्म पटकथा एवं संवाद लेखन तथा लघुफिल्मों के निर्माण से सम्बंधित सत्र जोड़ने का सुझाव दिया जिसे आयोजक समिति के चेयरमैन द्वारा मान लिया गया ।

प्रेम और सद्भावना की प्रासंगिकता:  जहां तक “प्रेम और सद्भावना ” की प्रासंगिकता का सवाल है, आज भूमंडलीकरण की प्रचंड आंधी, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद तथा युद्धोन्माद ने जिस तरह से दुनिया भर को झकझोर दिया है। हमारे समाज में प्रेम ,दया, सहिष्णुता, त्याग तथा शांति जैसी सद्भावनाएं तिरोहित होती जा रही हैं । समूचे विश्व में धर्म, साम्प्रदायिक वैमनस्य, जाति, भाषा और रंग भेद के कारण तनाव और नफ़रत का बोल बाला है। सामाजिक सद्भाव एक पारंपरिक विचार है, जो एक आदर्श समाज की कल्पना करता है । समाज में सुशील और संस्कारी मनुष्य बनने के लिए जीवन में प्रेम और सद्भाव की महती भूमिका रहती है। सद्भाव सामाजिक व्यवहार की एक ऐसी स्थिति है – जहां व्यक्ति अन्य व्यक्तियों , प्राणियों यहां तक की प्रकृति और पशुओं के साथ स्वयं की या धार्मिक, नस्ल संबंधी संतुष्टि को नियंत्रित करने के लिए साझेदारी करता है वहीँ इस तरह सद्भाव अनेकता में एकता का संचार करता है। युद्ध, आतंक, गरीबी से परे एक सद्भावनापूर्ण और सतत शांति की स्थापना करता है ।

इस अर्थ में साहित्य महोत्सव में सहभागी रहे देश – दुनिया के संवेदनशील रचनाकारों की रचनाशीलता साहित्य महोत्सव की सफलता के केन्द्र में रही । इस महान साहित्य महोत्सव के बहाने शांति, अहिंसा और प्रेम के पुजारी महात्मा बुद्ध, महावीर ,ईसा मसीह, मार्टिन लूथर किंग , महात्मा गांधी, ,मीरा तथा कबीर बार – बार याद आते रहे । मुझे विश्वास है कि प्रेम और सद्भावना को समर्पित यह अनूठा और ऐतिहासिक आयोजन महात्मा गांधी, महात्मा बुद्ध, मीरा तथा कबीर की भांति विश्व की साहित्यिक बिरादरी में लंबे समय तक याद किया जाता रहेगा ।

साहित्यकार मीठेश निर्मोही ने इस अवसर पर कहा कि भारत में उत्तर-पूर्व के दूर दराज के अंचल बोड़ोलैंड में आयोजित कोकराझार साहित्य महोत्सव 23 में मुझे एक बार फिर से आमंत्रित कर साहित्य महोत्सव के पहले दिन देश- विदेश के सुप्रतिष्ठ कवियों के काव्य पाठ सत्र की अध्यक्षता तथा दूसरे दिन के सत्र में भारतीय भाषाओं के कवियों के साथ काव्य पाठ करने का अवसर प्रदान करने तथा समापन समारोह में आमंत्रित अतिथि के रूप में विशेष सम्मान देने के लिए मैं आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं ।

यह उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष
बीटीआर के चीफ  प्रमोद बोड़ो तथा साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत कवि और असम सरकार में कैबिनेट मंत्री यू जी ब्रह्म के सद्प्रयासों से ‘प्रेम और शांति के लिए कविता’ थीम पर कोकराझार में आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में मीठेश निर्मोही की सहभागिता रही थी । बोड़ो साहित्य दिवस के अवसर पर देश – दुनिया से 111 भाषाओं,उप भाषाओं तथा बोलियों के 169 कवियों ने अपनी रचनाशीलता से इस साहित्य महोत्सव को अनूठा, ऐतिहासिक और अविस्मरणीय बनाया ।जहां तक जानकारी है कि इससे पहले विश्व के किसी भूभाग में इतनी भाषाओं के कवियों का ऐसा विराट काव्य महोत्सव कहीं आयोजित नहीं हुआ ।