समय धन के समान महत्त्वपूर्ण, व्यर्थ गंवाने से बचने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाश्रमण

विदर्भ क्षेत्र की ग्रामीण जनता राष्ट्रसंत के दर्शन व प्रवचन से हो रही लाभान्वित

मातमल (बुलढाणा) । महाराष्ट्र की धरा पर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में विदर्भ के ग्रामीण इलाकों को पावन बना रहे हैं। पहाड़ी भागों पर सुदूर क्षेत्रों में बसी ग्रामीण जनता ऐसे महामानव के दर्शन व मंगल प्रवचन का श्रवण कर अपना जीवन धन्य बना रही है। इस भयंकर गर्मी में भी महातपस्वी आचार्यश्री का श्रमयुक्त विहार निरंतर जारी है।

बुधवार को प्रातःकाल सूर्योदय के कुछ समय पश्चात शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ बिबी गांव में स्थित साहकार विद्या मंदिर से मंगल प्रस्थान किया। संकरा रास्ता, उतार-चढ़ाव से युक्त मार्ग लोगों को सावधानी से चलने को सचेत कर रहा था। इस मार्ग में आने वाले अनेक गांवों की ग्रामीण जनता को आचार्यश्री के दर्शन व आशीष से लाभान्वित होने का अवसर मिला। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए लगभग साढे ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री मातमल गांव में स्थित श्री किशनलालजी आदि भाइयों के निवास स्थान में पधारे। ग्रामीण जनता ने पूज्यप्रवर का भावभीना स्वागत किया।

11.5 कि.मी. का विहार कर मातमल गांव में पधारे महातपस्वी महाश्रमण

निवास स्थान के परिसर में ही आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव ये चार चीजें बताई गई है। किसी भी कार्य को करने के लिए अथवा होने के लिए क्षेत्र अर्थात् स्थान और काल अर्थात् समय का होना अतिआवश्यक होता है। कार्य को करने के लिए स्थान और समय दोनों चाहिए।

आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाश्रमण

स्थान है समय नहीं तो भी कार्य नहीं हो सकता और समय है और स्थान नहीं तो भी कार्य नहीं हो सकता। जिस प्रकार पढ़ाई करनी है तो उसके लिए विद्यालय, शिक्षण संस्थाएं अथवा कोई अन्य स्थान निर्धारित किया जाता है। फिर उसके लिए समय भी निर्धारित किया जाता है। उस निर्धारित समय पर पहुचंने से पढ़ाई का कार्य पूरा होता है। व्याख्यान देना होता है तो उसके लिए भी स्थान का भी निर्धारण होता है और समय भी निर्धारित किया जाता है। इसी प्रकार भोजन बनाने के लिए भी स्थान और समय का निर्धारण होता है। कोई भी कार्य हो, उसके लिए समय और स्थान अतिआवश्यक चीजें हैं।

आकाश अनंत है, उसी प्रकार क्षेत्र भी अनंत है और काल भी अनंत है। पता नहीं कितने काल समाप्त हो गए और आगे भी कितने काल आने वाले होंगे। काल अर्थात् समय जो प्रतिदिन प्रत्येक प्राणी को फ्री में प्राप्त होता है। इसके यहां राजा-रंक की बात नहीं होती, समय सबको एक दिन में एक जैसा ही प्राप्त होता है। समय इस संदर्भ में निष्पक्ष होता है। इसी प्रकार मृत्यु भी निष्पक्ष होती है। उसके यहां भी अमीर-गरीब का कोई महत्त्व नहीं होता।

काल की गति कभी नहीं रूकती। इसलिए आदमी को समय के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। समय के साथ विकास करने का प्रयास करना चाहिए। चौबीस घंटे का फ्री में मिलने वाला समय बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो एकबार बीत जाने पर वापस नहीं मिलता। समय को धन के समान बताया गया है। इसलिए आदमी को समय का भी सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। विवेकपूर्ण ढंग से और योजनाबद्ध तरीके से समय सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री निवास स्थान प्रदान करने वाले श्री किशनलालजी के परिवार को विशेष आशीर्वाद प्रदान किया।

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