
अच्छा-भला कुल लग रहा था। अंदरखाने क्या हो रहा था, किसे पता। बाहरी बिणाव-सिणगार तो ठीक ही था, अब अंदर की बातें भी बाहर आ गई। पहले हम भी वही समझते थे, जिस से हथाई का बिस्मिल्लाह किया गया। याने कि अच्छा-भला कुल लग रहा था। सब कुछ ठीकठाक दिख रिया था, अब सवाल ठाठे मारने लग गए कि जब पति ऐसा निकला तो कुल कैसा होगा। जवाब में सुरसुरी छूटती है कि कुल होगा जैसा होगा, पति तो परिवारियोड़ा निकला। ज्यों-ज्यों खुदाई होगी, पता चलता जाएगा कि भाईजी ने और कौन-कौन से गुल खिलाए। कहां-कहां खिलाए और कब-कब खिलाए। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
ऊपर के एक ही पेरेग्राफ मे पूरी हथाई का रहस्य छुपा हुआ है। ज्यों-ज्यों पत्ते खुलते जाएंगे, रहस्य फास होता रहेगा। सस्पेंस का मतलब यह नही कि पाठकों-दर्शकों-श्रोताओं का ऊपर का सांस ऊपर और नीचे का सांस नीचे। रहस्य और रोमांच भरी फिलमों और लम्हों में ऐसा ही होता है। दर्शकों के मन में कोतुहल रहता हैं कि अब क्या होगा.. आगे क्या होगा..। हथाई के पहले पेरेग्राफ में ऐसा तो है मगर वैसा कुछ नहीं जो किसी की समझ में ना आए। समझने वाले लिफाफा देख कर मजमून भांप जाते हैं। जिन की समझ में नही आया, उसके लिए हम हैं ना और जो लोग जान के अनजान बनें रहें, उन का कोई इलाज नहीं। कोरोना की काट करने वाली वैक्सिन देर-सवेर आ जाणी है मगर जाणगेलों का दिमाग खोल दे वैसी-वैक्सिन का बनना नामुमकिन लग रहा है। भारत सहित अन्य ज्ञानी-विज्ञानी देश चाहें तो इस में खप सकते हैं। सकारात्मक नतीजे की संभावना कम ही नजर आती है।
लोग सोच रहे होंगे कि ये कहां आ गए हम..। बात पेरेग्राफ की चल रही थी और लुकाछुपी खेलते-खेलते यहां तक आ गए। पेरेग्राफ में ऐसी बातें छुपी हुई हैं जिन पर से परदा उठाना जरूरी है खास तौर पे पति पर से। यूं देखा जाए तो पति पर ना तो कोई राज का परदा पडा नजर आता है ना रहस्य और रोमांच का। पति बिचारा वो जीव है जो क्या करता है और क्या-क्या करता हैं, उसके बारे में बताने की जरूरत नहीं। वो तो बिचारा पहले से ही दबा-कुचला और अधमरा है। आगे बढने से पहले यह साफ करना जरूरी कि पतियों की यह जमात स्थायी हैं। कुछेक को अपवाद के रूप में लिया जा सकता है वरना नाइनटी नाइन परसेंट पति परमानेंट बाकी के आज है-कल नहीं। स्थायी पति कौन है और अस्थायी कौन, इस पर भी ज्यादा पत्रवाचन करने की जरूरत नहीं।
जो मानखा शादीसुदा वो पति। जो बंदा बाल बच्चेदार वो पति। जो भाईजी घर-गिरस्थी वाले वो पति। पति बनना आसान नही है। पहले इसके लायक बनना पड़ता है। लड़की वाले पचास सवाल पूछते हैं। लड़का क्या करता है। कित्ता कमाता है। कित्ता पढा-लिखा है। खान-पान कैसा है। कहां काम करता है। कई सवाल तो रूबरू कई का जवाब पीछे से ढूंढे जाते हैं। आस-पड़ोस से पूछाताछी। मीत-मित्रों से इंक्वायरी। रिश्तेदारों से अंदर के भेद। उसके बाद टीपणा दिखाई। ज्यों-ज्यों बाधाएं पार होती रहती हैं-पति बनने का मार्ग प्रशस्त होता रहता है। जैसे ही सात फेरे हुए-चूनिया पति के साथ-साथ कई रिश्तो वाला बन जाता है। उसकी पत्नी के आगे-पीछे भी कई तमगे लग जाते हैं। चुन्नी मासी तो चुन्नीलाल मौसा। चुन्नी मामी। तो चुन्नीलाल मामोसा। चुन्नी बुआ तो चुन्नीलाल भुड़ोसा। चुन्नीलाल काकोसा तो चुन्नी काकीसा। सास-ससुर की बींदणी और भाई-बहन की भावज। उधर चुन्नीलाल कुंवर साब के साथ-साथ जीजू भी।
यह तो है भारतीय संस्कृति-सभ्यता, समाज और परंपरा वाले पति की बात। अपने यहां दीगर पति भी पाए जाते हैं। ये जमात अस्थायी। आज है-कल नही। ये जमात टेंपरेरी। पता नही कब पासा पलट जाए। राष्ट्रपति को ही ले ल्यो। वैसे तो यह दायित्व पांच साल का मगर आगा-पीछा भी हो सके है। हो सकता है पद पहले ही जाता रहे। हो सकता है एक चांस और मिल जाए। अमूमन पांच साल तो मान के चलो। करोड़पति कब रोड़पति बन जाए कह नही सकते। समय का खेल निराला है। समय ने रोडपति को करोड़पति और करोड़पति को रोड़पति बना दिया। लखपति रातों रात खकपति बन गए। राजनीति ने पंचपति। सरपंच पति। प्रधानपति। पार्षद पति। विधायक पति। सांसदपति और जिला परमुख पति घड़ दिए। दलपति और सेनापति की तो बात ही न्यारी। पर हथाईबाज जिस पति की बात कर रहे हैं, उसके साथ ‘कुलÓ लगते ही समझने वाले समझ गए कि बात कुलपति की चल रही है।
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्व विद्यालय, अजमेर के कुलपति गत दिनों घूसखोरी में गिरफ्तार कर लिए गए। साब जी अपने-चंगुओं के जरिए निजी महाविद्यालय के संचालकों से सेवा शुल्क लिया करते थे। तुम मुझे घूस दो-मैं तुम्हारा काम करूंगा। सेवा के चक्कर में वीसीसाब की साख का कुंडा हो गया। विश्वविद्यालय का मुखिया अगर ऐसी हरकतें करें तो कितनी हलकी बात है। तुम्हारे पास अच्छा पढाने वाले। तुम्हारे पर अच्छा पढने वाले। तुम यूनिवरसिटी के प्रधान और तुम ही ऐसी हरकतें करने लग जाओ तो पीछे का कुल क्या करेगा। कुल क्या सीखेगा। ऐसे को कुल पति नहीं घूसपति कहना चाहिए।