
हर साल 11 अप्रैल को वल्र्ड पार्किंसंस डे-2025 मनाया जाता है। पार्किंसंस डिजीज एक प्रोग्रेसिव न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है, जो मुख्य रूप से नर्वस सिस्टम को टारगेट कर और नर्व के जरिए नियंत्रित शरीर के हिस्सों को प्रभावित करता है। यह समस्या बुजुर्गावस्था में ज्यादातर देखने को मिलती है। भूलने की बीमारी, डिमेंशिया, समझने और सोचने में कठिनाई पार्किंसंस डिजीज के कुछ कोग्नेटिव प्रभाव हैं। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए ही वल्र्ड पार्किंसंस डे मनाया जाता है। एक डॉक्टर ने बताया कि आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हम अक्सर बड़ी-बड़ी बीमारियों का नाम सुनते हैं, लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं जो धीरे-धीरे शरीर पर असर डालती हैं। समय के साथ गंभीर रूप ले लेती हैं। ऐसी ही एक बीमारी है पार्किंसन रोग। यह कोई नई बीमारी नहीं है, बल्कि इसे सबसे पहले अंग्रेज न्यूरोलॉजिस्ट सर जेम्स पार्किंसन ने पहचाना था।
बढ़ रहे हैं पार्किंसन के मामले

यह बीमारी सीधे हमारे दिमाग पर असर डालता है और धीरे-धीरे शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने में दिक्कतें पैदा करता है। उन्होंने बताया कि आज के समय में पार्किंसन के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। इसकी दो मुख्य वजह हैं। एक, अब इस बीमारी की पहचान पहले से बेहतर हो रही है। दूसरी, भारत में बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है और ये बीमारी ज्यादातर उम्रदराज लोगों को होती है।
सावधानी जरूरी है
हालांकि इस रोग का अब तक कोई पूरा इलाज नहीं है, लेकिन दवाइयों और कुछ विशेष इलाजों के जरिए इसके लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है और मरीज सामान्य जिंदगी जी सकता है।
पार्किंसन रोग के कारण
इस बीमारी का मुख्य कारण द?िमाग में डोपामिन नाम के केमिकल की कमी होना है। डोपामिन ऐसा केमिकल है जो शरीर की गतिविधियों को कंट्रोल करता है। जब इसकी मात्रा कम होने लगती है, तब शरीर पर इसका असर दिखाई देने लगता है।
दो तरह की होती है पार्किंसन बीमारी
जेनेटिक: यह 40 साल की उम्र से पहले होता है और इसे यंग ऑनसेट पार्किंसन कहा जाता है। इसमें कुछ खास जीन की भूमिका होती है और यह कुल मामलों का लगभग 10 प्रतिशत होता है।
इडियोपैथिक: यह अधिकतर बुजुर्गों में पाया जाता है। हर एक लाख लोगों में से करीब 15 से 43 लोग इससे प्रभावित होते हैं।
पार्किंसन बीमारी के लक्षण
कंपन: हाथ या पैर में लगातार कंपन रहना, जो अक्सर शरीर के एक ही हिस्से में शुरू होता है।
सुस्त चाल: चलने-फिरने या कोई भी काम करने में सुस्ती आना।
संतुलन की समस्या: चलते वक्त संतुलन बनाए रखने में दिक्कत होना।
नॉन-मोटर लक्षण
कॉग्नेटिव इम्पेयरमेंट
मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर
पागलपन
नींद संबंधी विकार
दर्द
सेंसरी डिस्टर्बेंस
पार्किंसन बीमारी का इलाज और देखभाल
हालांकि पार्किंसन का अब तक पूरा इलाज संभव नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को दवाओं और इलाज से काफी हद तक कम किया जा सकता है। डॉक्?टर ने बताया कि लेवोडोपा नाम की दवा दी जाती है, जो शरीर में डोपामिन की कमी को पूरा करने में मदद करती है। वहीं कुछ अन्य दवाएं भी दी जाती हैं जो डोपामिन को बेहतर तरीके से काम करने में मदद करती हैं। इलाज पूरी तरह से न्यूरोलॉजिस्ट की देखरेख में होना चाहिए।
जब दवा असर न करे, तब क्या करें?
डीप ब्रेन स्टिमुलेशन : इसमें दिमाग में एक छोटा डिवाइस लगाया जाता है, जो दिल के पेसमेकर की तरह काम करता है और डोपामिन के प्रभाव को एक्?टि?व करता है।
लीवोडोपा इन्फ्यूजन थेरेपी: इस तकनीक में दवा सीधे छोटी आंत में दी जाती है ताकि उसका असर बेहतर हो।
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