दो बात की एक बात

शीर्षक की तर्ज किस कहावत पर आधारित है, इस संबंध में गांगत गाणे की जरूरत नहीं। जहां तक हमारा अंदाज है, इस बारे में अधिकांश लोग जानते होंगे। होंगे नहीं, यकीनन जानते हैं। जो जानते है, वो जानते हैं। उन्हें जताने-बताने की जरूरत ही कहां और जो नहीं जानते हैं, उन्हें जानने की जिज्ञासा हो तो जो लोग जानते हैं वो उनकी मदद ले सकते हैं और जो जानना ही ना चाहें तो अपन को क्या गरज पड़ी कि उन्हें ट्यूशन दें। शहर की एक हथाईपर आज उसी के चर्चे ही रहे थे।


जानना-पहचानना-जांचना-परखना एक ही कुनबे के सदस्य लगते हैं। वाकई में ऐसा हो तब वो ठीक, वरना तरन्नुम तो है। आलू-भालू-कालू-चालू में ना कोई तार ना कोई तम्य मगर तरन्नुम तो मिलती है। कहां आलू और कहां चालू मगर-तुक्का तो सटीक। जो लोग कविता लिखते हैं, वो लिखते है। शानदार लिखते हैं। जो लोग काव्यपाठ करते हैं, वो करते हैं। जानदार तरीके से करते हैं।

भतेरे लोग पीछे का अक्षर मिला के तुकबंदी करने से बाज नहीं आते। छोटा था पिल्ला कहलाया… बड़ा हुआ कुत्ता कहलाया… इसे भले ही कोई तुकबंदी कह दे मगर है तो कविता। भाईसेण कहते भी हैं कि कविता की पंक्तियों में से सच्चाई टपकनी चाहिए। कविता का एक-एक शब्द अंदर तक उतरना चाहिए। तो बताइए पिल्ले और कुत्ते वाली कविता में कौन सा झूठ है। पिल्ला बड़ा होने के बाद बकरा तो कहलाएगा नहीं, या कि कुत्ता छोटा होने पर मीमिया तो कहा नहीं जाएगा। ज्यादा से ज्यादा कुकरिया कह दो, इसके आगे काळी भींत है। मगर कोई उस कविता से निकलती सच्चाई को नकार नहीं सकता।


जो कवि कविता लिखता है उसके नीचे वो अपना नाम लिखता है। ऐसा आर्टिकल्स-लेख-समसामयिक फीचर्स और विभिन्न विषयों पर लिखे शोधपत्रों में भी होता है। कहानी लिखने वाले कहानीकार अपना नाम लिखते है। उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार अपना नाम लिखते है। गीतकार-संगीतकार और संवादकारों के नाम भी उकेरे जाते रहे हैं मगर कहावतों के बारे में ऐसा नहीं होता। चाचा शैक्सपीयर बड़े स्याणे थे, जिनने नाम का महिमामंडन ना करने वाले जुझले के नीचे अपना नाम दे मारा।

उनने कहा था-”नाम में क्या रखा है और उसके नीचे खुद का नाम लिख दिया। पाठकों और उनके प्रशंसकों ने उनके इस कथित उपदेश को चाहे जिस नजर से देखा हो, हथाईपंथियों को हमेशा उसमें दोगलापन दिखाई दिया। उनने चाचा शैक्सपियर की उस राय को हर कोण से देखा। ऊपर से देखा। नीचे से देखा। वाम-दक्ष से देखा। अंदर से टटोला। बाहर से टटोला। कहीं भी समानता नजर नहीं आई। हमें तो उनका यह टोटका हाथी दांत सरीखा नजर आया। चाचा एक तरफ तो कहते हैं कि नाम में क्या रखा है और दूसरी तरफ उसके नीचे खुद का नाम लिख देते हैं यह अपने आप में विरोधाभास है। अगर वो नामकरण के विरोधी रहे होते तो जुमले के नीचे खुद का नाम नहीं बिछाते। बिछाया, इसका मतलब कि आप गुरूजी बैंगण खावै, औरन को उपदेश सुणावैं।


हथाईबाजों का कहना है कि जब वहां डबलगेम हो सकता है तो यहां एकलगिरी क्यूं नहीं हो सकती। जिसने जो कहावत घड़ी उसके नीचे महावत का नाम। वरना पता ही नहीं चलता कि कौनसी कहावत किसने कब और किस प्रसंग पे घड़ी। कब-क्यूं और कहां को छोड़ दे तो कम से कम इस बात का पता तो रहना चाहिए कि कौनसी कहावत का शिल्पी कौन है। आपणी राजस्थानी में कहते है ”मन-मन भावै, मूंड हिलावे। किती शानदार कहावत है। कित्ती जानदार कहावत है पण घड़ी किस नेे इसकी खबर किसी को नहीं। इसकी प्रकार तर्जिया कहावत की बात करें तो मूल कहावत को चौड़े लाना जरूरी। मूल कहावत है ”सौ बात की एक बात हमने अठान्वे कुतर दिए। लोग सौ की दो सौ बाते बनाते हैं। कई लोग उनसे भी दस कदम आगे। बातें बनाना उनकी फितरत में। बातें बनाना उनकी आदत में शुमार। कई तो बिना बात की बातें बनाने में माहिर ऐसे मौसम में भी हथाईपंथियों ने सौ को दो में ढाल दिया। कहावत ढलान पर आने के बाद दो बात की एक बात में बदल गई।


पहली बात पेटरोल डीजल के दाम की। हम आप पिछले लंबे समय से लगभग रोजाना पंद्रह-बीस-तीस-पचास पैसे की मीठी भार झेल रहे हैं। कांग्रेस सरकार के उत्तरार्ध में जो पेटरोल चालीस रूपए लीटर था, आज नब्बे रूपए के करीब पहुंच गया। जिस भाजपा के पेट में पैंतीस-चालीस रूपए लीटर पर ही मरोड़े चलते थे, आज उसी भाजपा के कार्यकर्ता बगल में हाथ-मुंह पे अंगुली रखके खड़े है। कंपनिया आए दिन चाराने-आठाने बढ़ा रही है।

हमारा कहना यह कि रोज-रोज चंूटिए भरने से अच्छा है कि सौ रूपए लीटर करकुरा के नक्की करो, इस वादे व शपथ पत्र के साथ कि आने वाले पांच साल में दाम नहीं बढ़ेंगे। दूसरी बात उठी कि भ्रष्ट नकारा और नाकाबिल अफसरों को घर भेजा जाएगा। इस पर ”काल करे सो आज कर, आज करे सो अब का ठरया। जल्दी करो। ऐसे अफसरो के साथ-साथ करमचारियों को भी घर भेजो ताकि शासन-प्रशासन में सफाई अभियान की घमक सुनाई दे। हथाईबाजों ने अपनी दो बातें सब के सामने रख दी। बेपते की बातें करने से अच्छा है ठावी बात की जाए। आप के पास कोई ठोस बात हो तो दो बात की एक बात की जगह संख्या बढ़ाई भी जा सकती है।