टीके का टीका

आखिर वही होना शुरू हो गया, जिसका ‘खटका पहले ही जता दिया था। टीका तो अपने आप में टीका है, फिर उस का टीका कैसे हो सकता है। इसी का नाम तो टीका है। शुकर है कि भ्रूण काल शुरू होने से पहले ही टीकापंथी पकड़ में आ गई। अभी तो कई टीके और है। उनके लिए भी सजग और सतर्क रहने की जरूरत है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

बताने-जताने और समझाने की जरूरत नहीं। सब को पता है कि आज आखा देश टीकामय बना हुआ है। देश क्या, पूरी दुनिया में टीके की लहर चल रही है। सबसे बड़ा अभियान अपने यहां चल रहा है लिहाजा विश्व की नजर भारत पर। वैसे भी दुनिया की नजर हम पर ही रहती है। पाकिस्तान और चीन तो ऐसे देश हैं जो चौबीसों कलाक हम पर ही नजर गढ़ाए बैठे रहते हैं। हम क्या खा रहे है। चुपड़ी खा रहे हैं या लूखी खा रहे हैं। दो साक और दाल खा रहे हैं, या चटनी-प्याज। सादा चावल खा रहे हैं या तेहरी।

हम तो उनकी थाली-पे नजर डालना ही पसंद नही करते फिर तुम क्यूं हमारी रोटिएं गिन रहे हो। पण उन नियतभुगंतों को कौन समझाए। कोई समझाने की कोशिश करे तो भी वो ढीट समझने वाले नही। हमने हमारे नक्शे पे लिखवा दिया-‘बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। जिन को रोणा है, रोते रहें। हमें किसी की परवाह नहीं। हम क्यूं हमारे मकसद से भटके। हमें आगे बढना है.. बढ रहे हैं। कोई बाधा आए तो उन्हें दूर करना भी आता है। किसी के रोकने-टोकने से कुछ होणा-जाणा नहीं।

पहले बात ‘खटके की। खटके की अपनी भरी-पूरी कायनात है। इसका प्रयोग-उपयोग कई जगहों पर अपनी-अपनी सहूलियतों के हिसाब से किया जाता है। खटाक बोले तो स्वीच। स्वीच- बोले तो खटका। स्वीच का चलन तो अब हुआ है वरना हमारे टेम में खटके ही थे। खटका ऑन तो बिजली चालू-खटका ऑफ तो बिजली बंद। तुम्हारे स्वीच हमारे खटके। बात एक ही है। परंपरागत लोग आज भी खटके की भाषा ज्यादा समझते हैं। खटके के तार वृतांतों से जुड़े हुए। आप खुद इसके लपेटे में आ चुके हैं, पर गौर नहीं किया। कई लोग अपने दफ्तर की गाथा सुनाते हैं। सफर-यात्रा का वृतांत सुनाते है। आम भाषा में इसे ‘खटके कहा जाता है।

अपन कहते भी हैं-‘कॉलेज के खटके ही अलग हैं। खटके का कनेक्शन खटपट से जुड़ा हुआ। दा ‘जी नींद में हो और कोई खटपट करे तो सीधी यही आवाज आएगी-‘ओ खटका कुण कर रियो है। चिटकनी का रिश्ता खटके से जुड़ा हुआ। दरवाजे का खटका अंदर से बंद-बाहर से बंद तो अंदर से कोई बाहर ना जा सके.. बाहर से कोई अंदर ना आ सके..। अपने यहां ‘खटके को शंका-आशंका और अंदेशें भी जोड़ा जाता है। लोग कहते भी है कि उन्हें इस बात का ‘खटका पहले से ही हो गया कि वैसा होणा है। जब उन्हें हो सकता हैं तो हमें क्यूं नहीं। हमें भी ‘खटका हुआ तभी तो जाहिर किया। देखो.. उस की शुरूआत भी हो गई। टीके का टीका कढना शुरू हो गया।

जैसे ‘खटके का खजाना-वैसे टीके का। अपने यहां हर शुभ कार्य में टीका लगाने की परंपरा है। रक्षाबंधन और भाईदूज पे बहन अपने भाई की ललाट पर टीका काढ़ के रक्षा सूत्र बांधती है। पूजा-मुहूर्त के दौरान मराज वहां उपस्थित जनों को मोली बांध कर टीका करते हैं। शादी से पहले टीके की रस्म अदा की जाती है। कई लोग टीके को फर्जीवाड़े से जोड़ते हैं। कहते हैं-‘फलां ने फलां को इत्ते हजार का टीका निकाल दिया।

आयुर्विज्ञान में टीके की अपनी पोटली। गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व टीके लगने शुरू होते हैं जो बच्चों के पांच-साल-दस साल के होने तक ठुकते रहे हैं। चेचक का टीका। खसरे का टीका। मजल्स का टीका। फलाणे का टीका। ढीमके का टीका। इस उमर में यह टीका। उस उमर में वो। इन दिनों देश-दुनिया में टीके की धूम मची हुई है। कोरोना को हराने के लिए पहले जो जंतर हुए वो तो चल ही रहे हैं, अब टीकाकरण का पहला दौर चल रहा है। उसके बाद दूसरा-तीसरा-चौथा। एक-एक करके सभी नागरिकों के टीके लगणे हैं।

हथाईबाजों को पहले खटका हो गया था कि टीके के टीके लगणे तय है। इस आशंका में नकली टीके, कालाबाजारी के टीके और टीकों की बंदरबांट शामिल थी। नकली-कालाबाजारी का ‘खटका फिलहाल तो सुनाई नही दिया अलबत्ता बंदरबांट का ककहरा जरूर शुरू हो गया। हम ने देखा कि वैक्सीन की पहली खेप जहां भी गई, टीका लगा के-माला पहना के-पूजा करके-सांखिया मांड के-परसाद चढा के उसका स्वागत किया गया। भगवानजी से सब-सब अच्छा होने की प्रार्थना की गई।

हो भी अच्छा-अच्छा रहा है मगर बंदरबांट की आहट ने बैचेन कर दिया। जोधपुर में कुछ लोगों ने ‘म्हारी-म्हारी छाळिया नैं.. का राग शुरू कर दिया। एक ने अपने नाबालिग भाई को टीका लगा दिया। एक ने अपने पुत्तर को। एक ने अपने रिश्तेदार को..। यह बात दीगर है कि बात चावी हो गई। अरे भाई टीके सब के लगणे हैं। जब जिसका नंबर आएगा-लग जाएगा। लाइन तोड़के बीच में घुसने-घुसाने की जरूरत क्या है। टीके का टीका काढऩा उचित नहीं है।