
महामारी के दौरान भारतीय कूटनीति का व्यापक कैनवास” पर यह बातचीत आयोजित कराने के लिए मैं विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) और इसके महानिदेशक, डॉ. टी.सी.ए. राघवन का धन्यवाद करता हूं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आज देश के विभिन्न हिस्सों से प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के पैनलिस्ट हमारे साथ शामिल हैं।
महामारी और इससे उत्पन्न लॉक-डाउन ने हमें वैश्वीकरण के कुछ आधारभूत प्रेरकों को करीब से समझने के लिए मजबूर किया है
2. मेरे लिए आज आईसीडब्ल्यू पर बोलने का अवसर प्राप्त होना बहुत सौभाग्य की बात है। एक राष्ट्र अपनी संस्थाओं द्वारा जाना जाता है। संस्थाएँ हमारी आकांक्षाओं और हमारी वास्तविकताओं को भी दर्शाती करती हैं। हमारे देश और क्षेत्र की प्रमुख विचार संस्थाओं में से आईसीडब्ल्यूए एक ऐसी संस्था है जिस पर हम सभी वास्तव में गर्व कर सकते हैं। इसकी जड़ें आजादी से पहले के वर्षों में मिलती हैं। भारत की वैश्विक मामलों में भूमिका होगी, यह विचार यूएस समय केवल आकांक्षा सी ही रही होगी। हम तब भी एक कॉलोनी ही थे। भारत की स्वतंत्रता, विभाजन का दंश, और उदीयमान राष्ट्रीयता के संघर्ष भविष्य के गर्भ में थे। तब से भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। हमारा सफर एक कठिन सफर रहा है और आगे कई अन्य चुनौतियां सामने हैं। हालाँकि, ऐसा बहुत कुछ है जिस पर गर्व किया जा सकता है। हमारा देश एक ऐसा देश हैं, जिनका समुत्थान, उपलब्धि और निरंतर प्रयास का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। हम एक आकांक्षी देश बने रहें। हम एक ऐसा देश बने हुए हैं जो एक अंतर लाना चाहता है। हम एक ऐसा देश बने हुए हैं, जो अपने सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने से पीछे नहीं हटेगा।
3. हम अत्यधिक कठिन समय में मिले हैं। 2020 एक चुनौतीपूर्ण वर्ष रहा है। हम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या से गुजर रहे हैं। वर्तमान स्थिति एक स्वास्थ्य परिघटना के रूप में शुरू हुई, जो 1918 के स्पेनिश इन्फ्लुएंजा महामारी के बराबर या उससे अधिक गंभीर थी। यह बढ़कर आर्थिक व्यवधान, एक भू-राजनैतिक आघात और इतनी बड़ी सामाजिक चुनौती बन गई, जिसे हममें से किसी ने भी कभी कोई अनुभव नहीं किया है। 800,000 से अधिक लोगों की जान गई है। अनगिनत लोगों का रोजगार चला गया है।
4. आप सभी चीन के साथ हमारी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर होने वाले घटनाक्रमों से भी अवगत हैं। यह हाल के वर्षों में हमारे सामने आने वाली सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है जिसमें 40 से अधिक वर्षों के बाद इस सीमा पर मौतें हुई हैं। हम इस पर चीन के साथ सैन्य और राजनयिक दोनों माध्यमों से बातचीत कर रहे हैं, और सभी मुद्दों का बातचीत के माध्यम से हल निकालने के लिए दृढ़ कटिबद्ध हैं। हम बातचीत के दौरान इस पर वापस आ सकते हैं।
5. कोविड-19 ने हमारे सामने असाधारण चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। इस स्थिति की जटिलताओं और कठिनाइयों से हमारे राष्ट्रीय जीवन का हर पहलू प्रभावित हुआ है। भारतीय कूटनीति और हमारी विदेश नीतियां भी कोई अपवाद नहीं हैं।
6. हम इन अत्यंत मुश्किल कठिनाइयों से कैसे निपटते हैं- और क्या हम उनमें से कुछ कठिनाईयों को अवसरों में बदलने में सक्षम हैं- इससे एक राष्ट्र के रूप में हमारे भविष्य की दिशा प्रभावित होगी।
7. महामारी और इससे उत्पन्न लॉक-डाउन ने हमें वैश्वीकरण के कुछ आधारभूत प्रेरकों को करीब से समझने के लिए मजबूर किया है। इसने हमें उन अन्य प्रभावों के बारे में सोचने के बारे में भी सोचने को मजबूर किया गया है जो वर्तमान वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था को आकार देते हैं या जिन पर यह टिके हैं। इसने हमारे विचारों को केंद्रित किया है।
8. प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल ही में वर्चुअल एनएएम और जी -20 शिखर सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ हमारे संबंध के प्रति एप्रोच पर हमारे विचार व्यक्त किए गए थे। प्रधान मंत्री ने बताया कि महामारी ने मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की कमियों और सीमाओं को उजागर किया है। अभी तक वैश्विकरण को एक संकीर्ण आर्थिक एजेंडे से परिभाषित किया गया है। हमने आपस में सहयोग किया था जिसका उद्देश्य पूरी मानव जाति के सामूहिक हितों को आगे बढ़ाने के बजाय अपने-अपने हितों की प्रतिस्पर्धा को संतुलित करना है। प्रधान मंत्री ने वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक जन-केंद्रित एप्रोच का आह्वान किया।
9. भारत लंबे समय से एक व्यक्ति केंद्रित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को आकार देने में एक रचनात्मक भूमिका निभाता रहा है। हमने अपने विकास अनुभवों को ग्लोबल साउथ में भागीदार देशों के साथ साझा किया है। हमने अपने तत्काल पड़ोस से परे जाकर, इंडोनेशिया, यमन, इराक और मोजाम्बिक जैसे भौगोलिक रूप से विविध देशों में मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्य किए हैं। हमने अनेक मित्रो तथा सहभागियों की इस आपदा के वक्त सहायता की है। हमने आगे ले जाने वाले तथा रचनात्मक एजेंडा वाले अंतरराष्ट्रीय संगठनों, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और डिजास्टर रेसिलिएंट इनफ्रास्ट्रक्चर को उभरने को प्रेरित किया है।
10. वैश्विक दृष्टिकोण और परियोजना को आकार देने के हमारे प्रयास, हमारी योजनाएं महामारी में भी जारी रहे हैं। जी20 और नॉन एलाइन्ड मूवमेंट वचुअल समिट्स के अतिरिक्त, प्रधान मंत्री ने दक्षिण एशियाई नेताओं की एक वर्चुअल बैठक बुलाने में भी एक प्रारंभिक पहल की है। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के साथ अपनी पहली द्विपक्षीय वर्चुअल शिखर बैठक की है। इसके बाद भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन हुआ। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र ईसीओएसओसी के एक उच्च-स्तरीय भाग को संबोधित किया, ग्लोबल वैक्सीन शिखर सम्मेलन को वर्चुअल तौर पर संबोधित किया और मॉरीशस के प्रधान मंत्री के साथ संयुक्त रूप से मॉरीशस में नए सुप्रीम कोर्ट भवन का डिजिटल उद्घाटन किया। इन सबके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री ने फोन और वीडियो पर विभिन्न देशों के अपने समकक्षों के साथ 64 वार्तालाप किए है।
11. भारत की सलाह, अनुभव और परिप्रेक्ष्य, और प्रधान मंत्री के व्यक्तिगत नेतृत्व को द्विपक्षीय, प्लुरिलेटरल और बहुपक्षीय मंचों पर सराहना और प्रशंसा मिली है।
12. विदेश मंत्री ने महामारी के दौरान अपने लगभग 80 समकक्षों से बात की है। उन्होंने ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी मिनिस्ट्रीयल्स और अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ब्राजील और दक्षिण कोरिया के अपने समकक्षों के साथ एक संयुक्त बैठक में डिजिटल रूप से भाग लिया।
13. मैंने अपने सहयोगियों और अन्य विदेशी कार्यालयों में अपने समकक्षों से निरंतर बात तथा विचार-विमर्श किया है और यह जारी है।
14. इसलिए यह कहना उचित होगा कि हम डिजिटल कूटनीति में सबसे आगे हैं। हम कूटनीतिक गति पैदा करने और उसे बनाए रखने के अपने प्रयासों में चुस्त और परिवर्तनशील रहे हैं।
15. भारत वैश्विक हितों वाला देश है। हमारी अर्थव्यवस्था, और इसलिए हमारा भौतिक कल्याण, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ा हुआ है। हम दुनिया को एक अंतर्संबद्ध बाज़ार वाली एक सीमारहित अर्थव्यवस्था के रूप में देखते हैं।
16. रुचियों और स्टेक का यह वैश्विक प्रसार हमें कई मोर्चों पर कमजोर बनाता है। विरोधाभासी रूप से, इससे हम अवसर भी देख पाते हैं। अनुभव से कहें तो, संकट काल के बाद विकास की समयावधि देखी जाती है। महामंदी और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद धर्मनिरपेक्ष और स्थिर आर्थिक विकास की अवधि आई थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के युग में सभी चार प्रमुख महामंदी के बाद भी यही रूझान देखा गया था। हमने प्रमुख स्वास्थ्य संकटों के बाद चिकित्सा विज्ञान और जन-स्वास्थ्य में परिवर्तनकारी परिवर्तन देखे हैं।
17. इस संकट से भी अवसर पैदा होंगे और हम उनसे लाभ पाने की स्थिति में रहना चाहेंगे। प्रधान मंत्री के शब्दों में, हमारी प्राथमिकताओं में से एक भारत को “वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का तंत्रिका केंद्र” बनाना है। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के उनके विजन के अनुरूप भी है। विदेश मंत्रालय भारत को एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र और एक नवाचार गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने में अन्य संबंधित मंत्रालयों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श में राजनयिक मिशनों और पोस्ट का हमारा नेटवर्क, विभिन्न देशों में हमारे व्यवसायों के लिए निर्यात और निवेश के अवसरों की पहचान कर रहा है। हम ऐसी वैश्विक व्यावसायिक संस्थाओं तक पहुंच बना रहे हैं और उनके संपर्क में हैं जो अपने विनिर्माण स्थानों में विविधता लाना चाहते हैं।
18. एक प्रारंभिक आकलन से यह इंगित होता है कि अल्पावधि में हम उन क्षेत्रों में अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ा सकते हैं जहां हम पारंपरिक रूप से मजबूत रहे हैं जैसे कपड़ा और अपरेल्स, फार्मास्युटिकल, रत्न और आभूषण, रसायन, आदि। स्थानीय और वैश्विक मांग, दोनों पूरा करने के लिए हम इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ा सकते हैं। मध्यम और दीर्घावधि में, हमें इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, इंजीनियरिंग, डिजाइन आउटसोर्सिंग आदि जैसे क्षेत्रों में मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाना होगा। आखिरकार, हमारा उद्देश्य उच्च मूल्य वर्धित गतिविधियाँ होना चाहिए। हमें उद्योगों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों और बौद्धिक संपदा के विकास पर भी काम करने की आवश्यकता है।
19. ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें इस महामारी में भी वृद्धि हुई है। डिजिटल स्पेस एक ऐसा क्षेत्र है। आपने वैश्विक प्रौद्योगिकी की बड़ी कंपनियों द्वारा भारत में बड़ा निवेश देखा होगा – गूगल द्वारा 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर, फेसबुक द्वारा 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर, और मुबाडाला, यूएई सॉवरेन वैल्थ फण्ड द्वारा 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर। इस क्षेत्र में हमारी मजबूत साख है। इस सरकार द्वारा शुरू की गई जेएएम ट्रिनिटी – जन धन, आधार और मोबाइल- ने एक फिनटेक क्रांति के लिए मंच तैयार किया है। प्रधान मंत्री ने पूर्व में फिनटेक कंपनियों और वित्तीय संस्थानों को जोड़ने के लिए एक वैश्विक डिजिटल मंच, एपीआईएक्स शुरू लॉन्च किया था। हम डिजिटल भुगतान प्रणाली को इंटरऑपरेबल बनाने पर कई देशों के साथ काम कर रहे हैं। हमारी भुगतान प्रणालियां, जैसे कि रुपे कार्ड को सिंगापुर, भूटान, यूएई और बहरीन में पहले ही शुरू किया जा चुका है।
20. ऐसे मंचों पर आत्मानिर्भर भारत अभियान के महत्व को बताना महत्वपूर्ण होगा। मैंने पूर्व में इस अभियान और आत्मानिर्भरता पर अपने विचार व्यक्त किए हैं और मैं इस अवसर पर इसकी कुछ प्रमुख विशेषताओं को दोहराना चाहूंगा। आत्मनिर्भरता के लिए स्वकेंद्रित व्यवस्था की आवश्यकता नहीं है। इसका मूल उद्देश्य वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में प्रमुख भागीदार के रूप में भारत की स्थिति सुनिश्चित करना है। घर पर क्षमता निर्माण के जरिए, हम वैश्विक बाजारों में बाधाओं को कम करने में भी योगदान दे सकते हैं। उन उत्पादों और वस्तुओं की पहचान करना महत्वपूर्ण है जिनमें भारत के पास घरेलू उत्पादन का विस्तार करने और वैश्विक उपलब्धता बढ़ाने की क्षमता या सामर्थ्य है। एक ऐसे भारत, जो अपनी आर्थिक क्षमताओं का निर्माण कर रहा है, और एक ऐसे भारत के बीच कोई विरोधाभास नहीं है, जो वैश्विक व्यवसाय, व्यापार और नवाचार में एक बड़ी भूमिका निभाना चाहता है
देवियो और सज्जनों
21. भारत ने हमेशा इसे राष्ट्रों के एक बड़े समुदाय का एक भाग माना है। हमें एहसास है कि “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना में, हमारा कल्याण आंतरिक रूप से सामूहिक कल्याण के साथ जुड़ा हुआ है। हम “निष्काम कर्म” (निष्काम कर्म) के सिद्धांत में भी विश्वास करते हैं, और यह कि अपनी भलाई के लिए अच्छे कर्म की जरूरत होती है।
22. कोविड-19 महामारी के दौरान हमने इन शिक्षाओं को व्यवहार में लाया है। इस संकट के दौरान भारत “विश्व की फार्मेसी” की भूमिका के रूप में सामने आया है। हमारे यहां एक विश्वस्तरीय दवा उद्योग है जो एक ब्रांड पहचान के साथ सभी भौगोलिक परिस्थितियों और बाजारों में महत्वपूर्ण दवाओं का उत्पादन करता है। इस महामारी ने भारत में बनाई जाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एससीक्यू) और पेरासिटामोल जैसी दवाओं की मांग मांग बढ़ा दी है।
23. फार्मा सेक्टर की निजी और सरकारी विभिन्न शाखाओं के समन्वित प्रयास के कारण, भारत पर्याप्त घरेलु दवाई के भंडार सुनिश्चित करने के बाद, दुनिया भर में मित्र राष्ट्रों और उपभोक्ताओं को इन दवाओं की बड़ी मात्रा आपूर्ति करने में सक्षम हुआ। लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई कठिन तार्किक चुनौतियों के सामने, 150 से अधिक देशों को भारतीय दवाओं और चिकित्सा की आपूर्ति की गई।
24. मिशन सागर, ऑपरेशन संजीवनी, कई देशों में कोविड सहायता के लिए मेडिकल रैपिड रिस्पांस टीमों को भेजना, स्वास्थ्य पेशेवरों का आपस में सम्पर्क और स्वास्थ्य सुविधाओं की पूल तैयार करना केवल स्वतंत्र और अलग तथ्य नहीं हैं, ये बल्कि हमारी मूलभूत मान्यताओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे वैश्विक सहयोग के हमारे प्रयासों के केंद्र में लोगों को लाने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुरूप, भारत इस महामारी के बीच वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में सकारात्मक योगदान देने के लिए अपने रास्ते पर आगे बढ़ा। हमने इन बेहद कठिन परिस्थितियों में वैश्विक मंच पर जिम्मेदार अभिनेता के रूप में एक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया। इसने भारत का अंतर्राष्ट्रीय कद को ऊंचा कर दिया है और जो हमें महामारी के बाद की दुनिया में एक बेहतर स्थिति में खड़ा करेगा।
25. नोवेल कोरोनवायरस महामारी का प्रकोप एक प्रमुख भौगोलिक राजनीतिक संकट के रूप में आया है, और इसका वैश्विक राजनीति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। हमें शक्तिशाली और कमजोर शक्तियों के संतुलन में परिवर्तन, नई बहुपक्षीय वार्ताओं का उद्भव और इन वार्ताओं के हितधारकों की सापेक्ष शक्ति में परिवर्तन; और दुनिया भर में ऊर्जा, संसाधनों और क्षमता का व्यापक फैलाव देखने को मिल सकता है।
26. इस नए वैश्विक वातावरण में भारत की पसंद, चुनौतियां और अवसर भी प्रभावित होंगे।
27. हालांकि कुछ चीजें परिवर्तित नहीं होंगी। पड़ौसी पहले हमारी नीति का मौलिक तत्व बना रहेगा। हमने दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों को दी गई प्राथमिकता उच्चतम स्तर पर प्रदर्शन किया है। इस बात का साक्ष्य यह भी है कि वर्तमान संकट के दौरान कोवडि -19 पर प्रधानमंत्री ने पहली क्षेत्रीय/वैश्विक वार्ता दक्षिण एशिया के नेताओं के साथ की थी। मैं बताना चाहूंगा कि महामारी के बाद मैने अपनी पहली यात्रा हमारे पड़ोसी और करीबी दोस्त बांग्लादेश की थी।
28. हमारी विदेश नीति का एक अन्य महत्वपूर्ण स्तंभ एक्ट ईस्ट है जिसके जरिए हमने आसियान देशों के साथ संबंधों को बढ़ाने के लिए नए सिरे से जोर दिया है। इन देशों के साथ कई चैनलों के माध्यम से हमारी बातचीत जारी है। हाल में हुई भारत और आसियान के बुद्धिजीवियों की बैठक में विदेश मंत्री, डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि, “आसियान वैश्विक अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण मार्गों में से एक है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हम न केवल एक-दूसरे के नजदीक हैं, बल्कि साथ मिलकर एशिया और दुनिया को आकार देने में सहायता भी करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि इस मोड़ पर, हम एक साथ रहें।
29. हमने प्रधानमंत्री के ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रिजन ‘ या सागर दृष्टिकोण के तहत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी साझेदारी को मजबूत किया है।
30. पिछले पांच वर्षों में, थिंक वेस्ट – खाड़ी और पश्चिम एशियाई देशों तक हमारी पहुंच- हमारी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया है। महामारी के दौरान खाड़ी और पश्चिम एशिया के सहयोगियों ने आपसी लाभ, और आपसी विश्वास बढ़ाने के लिए हमारे साथ उदारतापूर्वक सहयोग किया है। अफ्रीकी देशों के साथ अफ्रीका के साथ हमारा जुड़ाव इतना पहले कभी नहीं बढ़ा जिसके दौरान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधान मंत्री ने इन देशों की 30 से अधिक यात्राएं की हैं । पिछले एक दशक में भारत की दो-तिहाई से अधिक लाइनस ऑफ क्रेडिट अफ्रीकी देशों को दी गई हैं।
31. हमने अपने पड़ोस और आस-पास के क्षेत्रों के नेट सुरक्षा प्रदाता की भूमिका भी अदा कर रहे हैं। कोविड -19 संकट ने मुश्किल समय में हमारे मित्रों और साझेदारों का सहयोग करने की हमारी इच्छा और क्षमताओं को प्रदर्शित किया है, खासकर तक जब कई देश इस महामारी से निपटने में विवश हैं।
32. हमारे प्रमुख द्विपक्षीय सहयोगियों के साथ हमारी प्रतिबद्धता और सहयोग जारी है। मैंने पहले भी भारत-यूरोपीय संघ के आभासी शिखर सम्मेलन का उल्लेख किया है। मैंने महामारी के दौरान अपने राजनयिक माध्यम कार्रवाई की गति के बारे में बताया है। इसमें दुनिया भर में हमारे प्रमुख सहयोगियों के साथ विभिन्न स्तरों पर कई बैठकें शामिल हैं। मैं इस तरह की बातचीत की सूची के बारे नहीं कहुंगा लेकिन एक अवलोकन हमारे महत्वपूर्ण राजनयिक लेखो-जोखो का एक व्यापक विचार व्यक्त करेगा।
33. हम अपने आस-पड़ोस में बहुत सारे अवसर देखते हैं। यहां चुनौतियां भी हैं। हम इन्हें हल करने के लिए समुचित रूप से काम करेंगे। हालांकि, यह ध्यान रहे कि हमारी क्षमता और संसाधन बढ़ रहे हैं और हम हमेशा आवश्यक कार्यनीति और युक्तियों को अपनाने के लिए तैयार रहेंगे।
34. मैंने पहले ही जी -20, असंयुक्त आंदोलन और संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में प्रधानमंत्री की भागीदारी का उल्लेख किया है। मैंने ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी की बैठकों में ईएएम की भागीदारी के बारे में बताया है। हम बहुपक्षीय संबंधों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और बहुपक्षीय और संघीय प्रणालियों के साथ हमारें संबंध बढ़ रह हैं।
35. इस अवसर पर मैं संयुक्त राष्ट्र ईसीओएसओसी की उच्च स्तरीय सत्र में प्रधानमंत्री के भाषण का जिक्र करना चाहूंगा उन्होंने कहा, कि “भारत का दृढ़ विश्वास है कि स्थायी शांति और समृद्धि प्राप्त करने का मार्ग बहुपक्षवाद के जरिए से है। पृथ्वी ग्रह के बच्चों के रूप में, हमें अपनी समान चुनौतियों का सामना करने और अपने सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हाथ मिलाना चाहिए। हालांकि, बहुपक्षवाद को आधुनिक दुनिया की वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करने की आवश्यकता है। केवल संशोधित बहुपक्षवाद, पुर्नगठित संयुक्त राष्ट्र के साथ, मानवता की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सकता है। ”
36. आने वाले वर्षों के लिए हमारे पास एक चुनौतीपूर्ण और व्यस्त एजेंडा है। हमारी 75 वीं वर्षगांठ पर, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य और जी-20 की अध्यक्षता करेगा। अगले दो वर्षों में, हम ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता करेंगे। यह सब हमारी बढ़ी हुई वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रतीक है और हमें अपनी धारणाओं, अपनी अपेक्षाओं और अपनी प्राथमिकताओं के बारे में बताने का अवसर प्रदान करता है- न केवल अपने लिए बल्कि हमारे साझे विश्व के लिए।
37. हमने विकास साझेदारी के जरिए अपने मित्र देशों में बड़ी मात्रा में संसाधन पहुचाएं हैं। यह हमारी सद्भावना और हमारी क्षमताओं तथा “सबका साथ, सबका विकास” के सिद्धांत में हमारी आस्था का एक व्यावहारिक उदहारण है। विकास साझेदारी का कार्य प्रगति पर है और हम इस बात पर गहन विचार कर रहे हैं कि हम अपने मित्रों की उनकी प्राथमिकताओं और पसंदीदा रोडमैप के अनुसार जरूरतों को कैसे पूरा कर सकते हैं। हमारा ध्यान व्यवहार्य परियोजनाओं के क्रियान्वयन और स्थानीय समुदायों की क्षमताओं को मजबूत करने पर रहेगा।
38. हिंसा और असुरक्षा का माहौल उत्पन्न करने के लिए कट्टरपंथी विचारधाराओं के साथ आतंकवाद एक बढ़ता हुआ और अवरोधक खतरा बना हुआ है। लंबे समय तक सीमा पार आतंकवाद को झेल रहे एक देश के रूप में, हमने आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के खिलाफ दृढतापूर्वक कार्रवाई की है। एक ओर जहां इस संबंध में हमारे प्रयासों को व्यापक वैश्विक समर्थन मिला है, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि दुनिया आतंकवाद के प्रति एक समान और स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाए। संयुक्त राष्ट्र सूची जैसे वैश्विक तंत्र के राजनीतिकरण से बचने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वैश्विक समुदाय अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक करार को अंतिम रूप दे।
39. हमें गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों जैसे जैव-खतरों और सुरक्षित एवं विश्वसनीय साइबर सामग्री की आवश्यकताओं से भी निपटना होगा।
40. संकट की घड़ी में हमें हमारे राजनयिक मिशन और विदेशों में हमारे अधिकारियों की महवपूर्ण भूमिका को याद रखना चाहिए अर्थात विदेशी भारतीयों के प्रति प्रथम जवाबदेह। एक मंत्रालय के रूप में हम समयबद्ध, प्रभावी और कुशल सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, और विदेशों में हमारे नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी हैं।
41. इस संदर्भ में, मैं वंदे भारत मिशन पर आपका ध्यान आकर्षित करके अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा। महामारी के दौरान 1.2 मिलियन से अधिक भारतीय भूमि, समुद्र और हवाई यातायात के माध्यम से भारत लौटे हैं। यह सरकार द्वारा विभिन्न हितधारकों, एकाधिक चरणों, परिवहन नेटवर्क और कई गंतव्यों और मूल स्थानों को शामिल करने वाला काफी बड़ा कार्य है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं कि इस कवायद में कोई भी न छूटे।
42. यदि मुझे आपको एक निष्कर्ष विचार देकर जाना हो, तो यह गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से एक उद्धरण होगा। उन्होंने खतरे से बचने की नहीं बल्कि खतरे का निडरता से सामना करने की प्रार्थना की। ये शब्द आज बेहद प्रासंगिक हैं। यह साधारण समय नहीं हैं। हमने इस समय में रहने का विकल्प नहीं चुना था। लेकिन अब जब हम इसमें हैं, हम स्वयं को इसके अनुकूल ढालने और आगे बढने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करेंगे।