
कोई यह ना समझे कि हम किसी को वोट देने की अपील या आहवान कर रहे हैं। कर भी रहे हैं तो कौन क्या बिगाड़ लेगा। पसंदीदा नेते के लिए वोट डालने का आहवान करना हमारा अधिकार है। लोग मंचों से ऐसा कर सकते हैं तो हम हथाई से क्यूं नहीं। आगे चल कर ‘भायाजी के आगे का ‘भा हटाकर ‘मा डाल दें तो क्या हो जाएगा-मायाजी। ऐसा होने पर दोनों का उपयोग किया जा सकता है। नारी शक्ति पूजनीय और नारी शक्ति प्रथम तो वोट किस को दोगे-‘माया काकी को.. और नर शक्ति की बात करें तो नारा उछलेगा-‘वोट फॉर भायाजी..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
शुद्ध और सकारात्मक नजरिए से देखा जाए तो हथाईयां समाजवाद का सबसे बड़ी। सब से पुरातन। सब से मजबूत। सब से धांसू। सब से तगड़ी और सबसे धाकड़ केंद्र हैं। जानने वाले इस सच्चाई को बखूबी जानते हैं। पहचानने वाले इस हकीकत को भलीभांति पहचानते हैं। किसी को ताईद करनी हो। किसी को इस सच्चाई की पुष्टि करनी हो तो औचक भ्रमण कर सकता है। फ्लाइंग स्कवायड की तरह अचानक आकर देख ले। ऐसा आज कल से नही बल्कि अरसों-बरसों से हो रहा है।
हथाईयों पर आप को 72 कौम के लोग मिल जाएंगे। सवालिया नाथ इस पर सवाल खडे कर सकते हैं। कौमें 72 कब से हो गई। पोथियों में तो 36 जातों का वर्णन किया हुआ है। आप ने डबल कैसे कर दिया। इस प्रश्न के जवाब के रूप में दो धाराएं। हो तो तीन-चार भी सकती हैं, पर अपन दो के आगे विराम लगा देते हैं। जिस को जब जरूरत पड़ेगी, खड़ीपाई हटा के तीसरी-चौथी के लिए रास्ता खोल देगा। रास्ते पर भी सवाल। आज-कल ज्यादातर लोगों का ध्यान रास्ते खोलने की बजाय रास्ते रोकने और रास्तों में कांटे-भाटे बिछाने की ओर ज्यादा रहता है। इस में भी धाराएं। गली में सफाई नही हुई-रोक दो रास्ता। पानी नही आया-लगा दो जाम। बिजली नही आ रही है-उतर जाओ, सडक पे। दूसरी परिभाषा और ज्यादा घातक।
पड़ोसी का बच्चा उन्नति कर रहा है, उसे भटका दो। सहकर्मी आगे बढ रहा है उस पर गंदे आरोप लगवा दो। रिश्तेदार प्रगति कर रहा है उसकी राह रोक दो। रही बात 36 को 72 बनाने की तो वह भी सब के सामने आ जाएगी। देखो रे भाई-देश हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है कि नही। कर रहा है। महंगाई बढ रही है या घट रही है। बढ रही है। जनसंख्या बढ रही है या कम हो रही है। बढ रही है। राज्य में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की संख्या कम हो रही है या बढ रही है। बढ रही है।
इन के अलावा और भी कई क्षेत्र है जिन में बढोतरी हो रही है। ऐसे में 36 के 72 कर दिए तो कौन सा गुनाह किया। सही में पूछें तो हम तो क्या कोई भी सच्चा राष्ट्रवादी कौम-जाति-कुनबों की बढोतरी को उचित नहीं मानता। अंतरिक्ष पर पहली बार तिरंगा लहराने वाले राकेश शर्मा से तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूछा था-‘राकेश तुम्हें अंतरिक्ष से भारत कैसा लग रहा है। तो उन जवाब लाजवाब था। कहा-‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा..।
हम-आप भी उसी राह पर चलने वाले। भला हम जात-जमातवाद को बढावा कैसे दे सकते हैं, पण सच्चाई ये कि आज चहूं ओर जातिवाद का बोलबाला है। जहां जाओ वहां जातिवाद के दैत्य-दानव खड़े नजर आ जाएंगे। सियासत बानों जातिवाद की जुल्फों से ढकी-सनी हुई। पार्टियां कौम-बिरादरी के वोट देख कर उम्मीदवार खड़े करती है। जुबां पर जातिवाद से दूर रहने का जुमला और अंदरखाने कौम-जमात के वोटों का गणित-बीज गणित। नगर निगम के चुनाव इसकी सबसे हरी-भरी मिसाल। खांटी हथाईबाजों ने भतेरे चुनाव देखे। सरकारें बनाई-गिराई। लोकसभा से लेकर स्थानीय निकायों के लिए वोट डाले मगर ऐसे चुनाव कभी नही देखे, जो इस बार देखने पड़ रहे हैं।
राज्य सरकार ने इस बार जोधपुर, जयपुर और कोटा में दो-दो नगर निगम बना दिए। इसका नतीजा यह हुआ कि वार्डों का क्षेत्र छोटा हो गया और मतदाताओं की संख्या पांच हजार के अंदर-अंदर। इसके माने करीब ढाई-तीन हजार वोट पडऩे हैं। जो प्रत्याशी 15-17 सौ वोट ले जाएगा, उसकी जीत पक्की। इस जोड़-गणित को ध्यान में रख कर कई लोग मैदान में उतर गए। किसी का भाई मैदान में-किसी की भाभी। किसी का भाणिया ताल ठोक रहा है-किसी का भतीजा।
किसी के भूड़ोसा चुनाव लड़ रहे है- किसी के मासोसा। किसी का मामा तो किसी का चाचा-बड्डा चुनावी जंग में। लगभगर हर वार्ड की हर दूसरी-तीसरी गली के मामाजी चुनाव लड़ रहे है। लगभग हर वार्ड की पहली-चौथी गली की मामीजी चुनावी मैदान में। मतदाता बाइबंगा-वोट किसे दें। चाचे को देवें तो मामा- नाखुश और भांजें को दें तो भतीजा। हथाईबाज इस उधेड़बुन को सुलझाने के लिए परची फेंक कर फैसला करने वाले थे, तभी नारा लगा-‘वोट किस को दोगे-माया चाची को..। उधर से आवाज आई-‘वोट फॉर भायाजी..।