मारुति सुजुकी ने सोमवार को सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सियाम) द्वारा आयोजित एक प्रदर्शनी में अपनी वैगनआर हैचबैक को फ्लेक्स-फ्यूल कार के रूप में शोकेस किया। कार निर्माता ने कहा कि मास सेगमेंट वाहन का प्रोटोटाइप मॉडल बीएस-6 फेज-ढ्ढढ्ढ उत्सर्जन मानदंडों के अनुकूल होगा और कार्बन उत्सर्जन करने की कंपनी की कोशिशों का हिस्सा होगा। इथेनॉल टेक्नोलॉजी प्रदर्शनी में शोकेस की गई वैगनआर को मारुति सुजुकी द्वारा स्थानीय रूप से विकसित किया गया है। यह कार निर्माता का शुभंकर है क्योंकि इसका मकसद कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल इकोनॉमी मानदंडों के तहत ज्यादा किफायती और क्लीन इथेनॉल आधारित ईंधन में परिवर्तित करने के भारत के लक्ष्य में योगदान करना है।
अपग्रेड इंजन
इस कार्यक्रम में प्रदर्शित की गई वैगनआर फ्लेक्स-फ्यूल कार में एक अपग्रेड किए गए इंजन का इस्तेमाल किया गया है, जिसे इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल का इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन किया गया है। इंजन नई फ्यूल सिस्टम टेक्नोलॉजी (ईंधन प्रणाली प्रौद्योगिकियों) के साथ आता है जैसे कोल्ड स्टार्ट असिस्ट के लिए हीटेड फ्यूल रेल और इथेनॉल के प्रतिशत का पता लगाने के लिए इथेनॉल सेंसर। इससे इसे उच्च इथेनॉल मिश्रणों के अनुकूल बनने में मदद मिलेगी। मारुति ने इंजन के साथ-साथ कार के लंबी लाइफ को सुनिश्चित करने के लिए इंजन मैनेजमेंट सिस्टम, फ्यूल पंप और फ्यूल इंजेक्टर और अन्य मैकेनिकल कंपोनेंट्स को भी अपग्रेड किया है।
साल 2025 तक पेश
मारुति सुजुकी ने पुष्टि की है कि वह कॉम्पैक्ट सेगमेंट के लिए अपना पहला फ्लेक्स-ईंधन वाहन साल 2025 तक पेश करेगी। मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सीईओ हिसाशी टेकुची ने कहा, वैगन आर फ्लेक्स फ्यूल प्रोटोटाइप वाहन भारत सरकार के मेक इन इंडिया प्रयासों का समर्थन करता है। विशेष रूप से, हमारे शोध से पता चलता है कि ई85 ईंधन पर चलने वाले इथेनॉल ईंधन आधारित वैगन आर फ्लेक्स फ्यूल प्रोटोटाइप वाहन समान पावर परफॉर्मेंस सुनिश्चित करते हुए पारंपरिक गैसोलीन वैगन आर मॉडल की तुलना में टेलपाइप जीएचजी उत्सर्जन को 79 प्रतिशत तक कम करने में मदद करेगा।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के प्रदूषण को कम करने की कोशिश में स्वच्छ ईंधन पर जोर देने के बीच मारुति ने आने वाले दिनों में इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल के साथ फ्लेक्स-फ्यूल टेक्नोलॉजी का मूल्यांकन करने की योजना बनाई है। ष्ट्रस्नश्व मानदंडों के दूसरे चरण का मकसद वाहनों के सीओ2 उत्सर्जन को कम करके उनकी ईंधन खपत को कम करना है।
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