
जयपुर। राजस्थान का बजट विधानसभा से पास होने से पहले ही गड़बड़ा गया है। केंद्र की ओर से पेश कि किए गए बजट अनुमान और राजस्थान के बजट अनुमानों में भारी असमानता देखने को मिल रही है। इसके चलते राजस्थान को केंद्र से मिलने वाली राशि में भारी कमी देखने को मिलेगी। केंद्र ने अपने बजट में राजस्थान को केंद्रीय करों में हिस्सा राशि 75156.94 करोड़ रुपए आवंटित की है जबकि राजस्थान के बजट में यह राशि 7958711 करोड़ रुपए रखी गई है। यानी सिर्फ इस एक आंकड़े में ही करीब साढ़े 4 हजार करोड़ का अंतर है।
इसके चलते अब बजट अनुमान विधानसभा में पेश किए उनमें अब भारी कटौतियां करनी पड़ेंगी। इसका असर सीधे योजनाओं पर पड़ेगा। सरकार की आय में जो इतना बड़ा फर्क आ रहा है उसकी कटौती किसी एक योजना या विभाग से तो नहीं की जा सकती। लगभग हर बड़ी योजना में इस कटौती का असर आ सकता है। यूनियन ग्रांट के अनुमान भी गड़बड़ाए- वित्त विभाग के अफसरों ने पिछले वित्त वर्ष के बजट अनुमानों में केंद्र से 33981 करोड़ की ग्रांट का प्रावधान रखा था। जबकि वित्त वर्ष की समाप्ति तक केंद्र से महज 22447 करोड़ रुपए की ही ग्रांट प्राप्त हुई।
बड़ी बात यह है कि बजट तैयार करने से पहले वित्त विभाग के अफसर दिल्ली भी गए थे और वहां वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सहित संबंधित मंत्रालयों में गए थे। इसके बावजूद बजट अनुमानों में इतना भारी अंतर सरकार की वित्तीय व्यवस्था पर भारी सवाल खड़े करता है।
राजस्थान में इसलिए रह जाती हैं योजनाएं अधूरी
राजस्थान में बजट घोषणाएं इसलिए कागजों में सिमट कर रह जाती है क्योंकि उन घोषणाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसा ही नहीं होता। पिछले बजट में एक हजार करोड़ रुपए से बड़ी घोषणाओं की स्थिति देखें तो ज्यादातर योजनाओं में 50 प्रतिशत तक ही बजट खर्च किया गया। ये तो वे योजनाएं हैं जिन्हें चलाने के लिए केंद्र से भारी भरकम सहायता राज्य सरकार को मिलती है। इनके अलावा राज्य सरकार की ओर से संचालित योजनाओं की हालत का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है।
मेडिकल कॉलेज
पिछले बजट में एक हजार करोड़ रुपए से बड़ी घोषणाओं की स्थिति देखें तो मेडिकल कॉलेजों के ह्यूमन रिर्सोसेज पर मात्र 50% बजट खर्च हुआ।
अमृत योजना
केंद्र सरकार की अमृत योजना में कुल बजट का 53 % खर्च हुआ। इसमें भी राज्यांश मात्र 27 % ही दिया गया।
मिड डे मील
मिड डे मील के लिए पिछले बजट में 1749 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया जिसमें मात्र 666 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इसमें से भी आधी राशि राज्य सरकार की थी।
मनरेगा
मनरेगा की स्थिति तो सबसे खराब रही। मनरेगा में मात्र 39 प्रतिशत बजट खर्च किया गया। इस योजना में पिछले बजट में कुल 5650 करोड़ रुपए का प्रावधान था। जिसमें से मार्च अंत तक मात्र 1518 करोड़ रुपए खर्च किए गए। समग्र शिक्षा अभियान में 70% राशि ही खर्च हुई।
फाइनेंस कमीशन ग्रांट
इनके अलावा स्टेट फाइनेंस कमीशन और सेंट्रेल फाइनेंस कमीशन की ग्रांट तक नहीं बांटी गई। सेंट्रल फाइनेंस कमीशन की ग्रांट का 2487 करोड़ रुपए का प्रावधान था। इसमें केंद्र सरकार से 1005 करोड़ रुपए मिले लेकिन वित्त विभाग के अफसरों ने इस राशि को भी डायवर्ट कर दिया। इस राशि में से मात्र 826 करोड़ रुपए ही संबंधित मद पर खर्च किए गए।
कर्मचारियों के भुगतान लंबित
इनके अलावा सामाजिक सुरक्षा पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, आरजीएचएस, राइट टू एज्यकेशन, अन्नपूर्णा योजना जैसी बड़ी स्कीमों में भी लंबे समय तक भुगतान रोके गए। कर्मचारियों का लीवएंडकैशमेंट का पैसा तो अब तक बकाया चल रहा है। पेंशन संबंधित भुगतानों में देरी हो रही है। यहां तक की स्टेट फाइनेंस कमीशन की ग्रांट रिलीज करवाने के लिए राजस्थान में सरपंच संघ ने पंचायतों पर धरने देकर तालाबंदी तक की।
विधानसभा में भी अफसरों को लेकर सरकार पर तंज
इस बार सरकार का बजट तैयार करने वाले अफसर वही थे जिन्होंने पिछली सरकार का बजट तैयार किया। इसे लेकर कांग्रेस बार-बार विधानसभा में बीजेपी पर तंज भी कसती रही है। कांग्रेस विधायक अमीन कागजी ने तो यहां तक कहा कि बजट उन्हीं आधिकारियों ने बनाया जो आज तक हमारा बजट बनाते आए। उन्होंने हमारी बड़ी-बड़ी चीजों को छोटे-छोटे में बदल दिया।