
शीर्षक को पूरा करें तो एक गीत के सुर निकलेंगे। गाना पूरा तो याद नहीं मगर इतना जरूर याद है कि ‘तो के आगे की लाइन जरूर भर जाएगी। वैसे भी हमें पूरा गाना तो गुनगुनाना नही है, ना लूर ले लेकर गाना है, अलबत्ता वो मकसद जरूर पूरा हो जाएगा जिसे हम मुकम्मिल करने की सोच रहे हैं। होना या ना होना बाद की बात। प्रयासों में कोई कमी नहीं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
गीत-गाना-सुर को जिस प्रकार ‘मथा जा रहा है, उसको लेकर कोई यह ना समझे कि अंत्याक्षरी खेली जा रही है, या खेलने का माहौल तैयार किया जा रहा है। हमारे बखत के लोगों को तो ‘मथा के बारे में ज्यादा कुछ बताने-जताने की जरूरत नहीं। नई नस्ल इसका ककहरा भी नहीं जानती होगी। गांवाई पृष्ठ भूमि के बच्चों की कह नही सकते। वन टूजा वन का रट्टा मार चुके छोरे-छोरियों के लिए यह शब्द और शब्दार्थ दोनों अजब-दोनो अजूबे। वो अंगरेजी में भले ही गिटर पिटर कर लें। वो भले ही अपने आप को हिन्दी मीडियम वाले बच्चों से सुपर समझ बैठे। इम्तहान में ‘मथा संबंधी सवाल आ जाए तो उनकी नजर हिन्दी माध्यम वाले बच्चों की ओर। इस उम्मीद के साथ कि वो तो इसके बारे में जानते ही होंगे। उन की उम्मीद एकदम सटीक इसलिए कि ज्यादतर बच्चे इसके बारे जानते भी हैं।
मथा बोले मथना। मथना बोले तो मथा। गांवां में हर घर में बिलोवणा होता है।
दूध की मलाई को मथ के घी निकाला जाता है। दही को मथ के मक्खन निकाला जाता है, छाछ बनाई जाती है। महिलाओं का आधा दिन इसी में निकल जाता है। घर में बनाई छाछ और घर में निकाले घी की तो हौड़ ही नहीं। प्योर छाछ-शुद्ध घी। गांव के साथ शहरों की बात करें तो लस्सी मथी जाती है। मट्ठा मथा जाता है। दाल मथी जाती है। हमें याद है-अम्मा झेरनी को हांडी में डाल कर दाल मथा करती थी। आगे चल कर मथामथी मंथन में बदल गए। राक्षस और देवताओं ने समुद्र मंथन किया था। एक हिसाब से समुद्र मथना ही हुआ। गीत-गाने-सुर का मंथन करें तो घूम-फिर कर बात मथना पे ही आणी है।
गाने-गीत-सुर-धुन पर स्कूलों में होने वाली बाल सभाओं की याद आ गई। उन दिनों स्कूलों में हर शनिवार को बाल सभा हुआ करती थी। आधा दिन पढाई फिर रेसीस और उसके बाद बाल सभा। पूरी स्कूल खेल के मैदान या टीन शैड के नीचे जुट जाती। बच्चे लाइन बनाकर क्लास रूम में निकलते और सभा स्थल पर पहुंच कर बिराज जाते। सामने टेबिल कुरसी पर हैड माटसाब और अतिथिगण। साइड में स्टूलों पर बिराजे दूसरे माट्साब और बहनजी। बीच में सारे बच्चे और बच्चों में अपनी प्रतिभा दिखाने का जज्बा। बालसभा में गीत-गाने-कविता-प्रेरणास्पद कहानियां-लतीफे मनोरंजक और प्रेरक घटनाओं का बखान। हमने भी ‘मेरा रंग दे बसंती चोला..मुट्ठी बांध के गुनगुनाया। भले ही गिटर पिटर स्कूलों में इसे एसेम्बली कहा जाता हो, मगर जो मजा बाल सभाओं में था, वो उनमें नहीं। रहेगा भी नही।
पर हथाईपंथी उन गीत-गानों की नही, उस की बात कर रहे हैं जिस की पिछली लाइन को हैडिंग बना के लटकाया गया है। अब सवाल ये कि पिछली लाइने इतनी धांसू है तो अगली कैसी होगी।
लाइन पूरी करने के लिए अगली-पिछली का हथलेवा जोडऩा जरूरी। दोनों का मिलाप होने पर लाइन बनेगी-‘जब रात है ऐसी मतवाली, तो सुबह का आलम क्या होगा..। इस का मतलब ये कि जब रात इतनी हंसीन है। जब रात इतनी मस्त है। जब रात इतनी धांसू है। जब रात इतनी धाकड़ है, तो सुबह कैसे होगी इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। अंदाजे पे दो धाराएं। सुबह सुहानी भी हो सकती है और कुहानी भी। जरूरी नही कि रात मस्त हो तो सुबह भी मस्त हो। ‘राइयों के भाव राते भी जा सकते हैं, पण अपण अदरवाइज क्यूं लेवें। यही मान के चलें ना कि रात मस्त तो सुबह भी मस्त। यही बात उन अंकल पर लागू कर के देखें तो सवाल उठने स्वाभाविक हैं।
हथाईबाजों को सवाल खड़े करने का शौक नही है। जहां सवाल उठाने हैं-उठाएंगे। डंके की चोट उठाएंगे। ताल ठोक के उठाएंगे। सवाल उठाने के लिए ही सवाल उठाए जाएं, ऐसा करना उनकी आदत मे शुमार नहीं। खास-खास सवालों के जवाब देना भी जरूरी। आज जब उनके पास कुरसी नही है, तिस में लाखों ले रहे हैं, कुरसी पे बिराजे थे उस समय तो करोड़ों बटोर लिए होंगे? बटोरे या ना बटोरे। लाखों बटोरे या हजारों। हजारों बटोरे या करोड़ों इसमें शक-संदेह हो सकता है, मगर सवाल तो उठ गए ना।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने दो-तीन दिन पहले बाड़मेर में एक सेवानिवृत आरएएस अधिकारी को गिरफ्तार किया। उनके पास से पांच लाख रूपए बरामद हुए। ये अंकलजी बीकानेर से अतिरिक्त आयुक्त उप निवेदशन के पद से रिटायर्ड हुए थे और गिरफ्तारी से पूर्व बेकडेट में पूर्व सैनिकों और पौंग-विस्थापितों को आवंटित जमीन की फाइलों निपटा रहे थे। एक दलाल के जरिए यह ‘ऊंदापादरा किया जा रहा था।
एसीबी ने उसे भी हिरासत में लिया है। रिटायर्ड आरएस के बाड़मेर, जयपुर और जोधपुर आवास से लाखों की नगदी और करोड़ों की संपत्ति के कागजात बरामद किए गए।
यही से रात और सुबह की चर्चा शुरू हुई। हथाईबाजों का कहना है कि वो सेवानिवृति के बाद भी एक फाइल निपटाने के पांच लाख ले रहा था, तो कुरसी पे था तब कित्ते लिए होंगे। जो सेवानिवृति के बाद भी भ्रष्टाचार कर रिया था उसने पद पे रहते हुए कितना गोलमाल किया होगा। एसीबी और कानून अपना काम करेंगे। आगे होगा सो होगा। अलबत्ता सुबह के आलम का तो पता चल ही गया।