तुम्हारे वाले कब लगवाएंगे

अब सवाल ये कि लेट क्यूं लगवाई। पहले लगवा लेते तो कम से कम दस-बारह करोड़ बंदे निपट जाते। खामखा देर कर दी। हो सकता है-उधर से भी सवाल उछल जाए-‘तुम्हारे वाले कब लगवा रहे हैं। पंचायती तो दुनिया भर की और सच्चाई से भागने में सबसे आगे। डूंगर बळती तो दिख रही है-पांव बळती नजर नही आ रही। हो सकता है इसमें तीसरा और चौथा पक्ष भी लाडे री बुआ बन जाए। ऐसा होणे के पक्के और पूरे आसार। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

सवाल अली का स्त्री संस्करण लाडे री बुआ और लाडे री बुआ का पुरूष संस्करण सवाल अली। दोनों एक-दूसरे से कम नहीं। ये बीस तो वो इक्कीस। वो इक्कीस तो ये बाईस। मजाल पडी जो कोई किसी से पीछे रह जाएं। बराबर रह जाएं तो भी गवारा नहीं। आगे निकलने की हौड़ में कोई किसी से पीछे नही। आप आगे रहो-आगे निकलो मगर प्रतिस्पर्धा साफ-सुथरी हो तो मजा आता है। कोई रोगंस्टी खा के आगे रहने में अपने आप को फन्ने खान साबित करें तो मजा नहीं आता। आज-कल लगभग सभी क्षेत्रों में ऐसा ही हो रहा है। इक्का-दुक्का क्षेत्र अवबाद हो सकते हैं, वरना ज्यादातर में हौड़ाहौड़ गोडा फोडो प्रतियोगिता चल रही है। सवाल वाजिब हो तो जवाब देना या मिलना भी वाजिब मगर यहां तो बेतुके सवालों की वॉल खडी करने की कोशिश की जा रही है।

सवालों का सिलसिला ता-जिंदगी चलता रहता है। जच्चा अगर जनाना अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में हो तभी से सवाल सुलगने शुरू हो जाते हैं। घर-परिवार वाले अटेंडेंट को फोन करके पूछते हैं-‘कई होयो..। ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुलता है तो अटेंडेंट की सवालियां नजरें उधर। जवाब के तौर पे लिछमी या गणेशजी मिलते हैं तो वही उत्तर सवाल पूछने वालों को दे दिया जाता है। उसके बाद पूरक प्रश्न शुरू होते है-बींदणी या बाई किकर है। टाबर किकर है। किण रे माथै गयौ। अरे भाई अभी तो नया मेहमान दुनिया में आया है और अभी से शकलें मिलाने बैठ गए मगर सवाल हैं कि रूकने का नाम नही लेते।

यह तो सफर का पहला पड़ाव। इस बीच सवाल ही सवाल। रामप्यारा होने के बाद दो-चारेक सवाल तो पक्के। डेथ कैसे हुई-कब हुई और लेकर कब जाएंगे सरीखे सवाल तो जरूरी। उसके बाद उठावणे से संबंधी जानकारी से जुड़े सवाल शुरू। कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनकी बुनियाद ही सवालों पर टिकी हुई है। तामीर सवालों पर। तामीर में प्लास्टर और टीपटाप सवालों की। सवालों की बिजली फिटिंग। पानी की फिटिंग में सवाल। फर्नीचर में सवाल। पार्किंग में सवाल। अंदर घुसते ही सवाल शुरू होते हैं और चलते ही रहते हैं। खल्लास होणे का नाम ‘इज नहीं। उनका वजूद ही सवालों से जुड़ा हुआ है।

शिक्षण संस्थाएं छोटी क्लास की हों या उच्च शिक्षा की बिन सवाल सब सून। जब तक संस्थान परिसर में रहना है, तब तक सवालों से जूझना पड़ेगा। इन से मिलती जुलती शक्लें थाणें और चौकियों की। वहां हड़काई के साथ सवाल पूछे जाते हैं। पांडु सवाल ऐसे पूंछते हैं मानों कोड़े टेक रहे हों। नांव कांई है रै थारौ..। बाप रो नांव..। कांई करे थूं। कठै रैवै रे..। कई दफे तो ऐसा लगता है मानों उन्हें बंद्तमिजी का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। कोर्ट-कचहरी तो सवालों से अटी-पड़ी नजर आती है। वहां सब-कुछ सवालों और जवाबों पे निर्भर है। सही जवाब मिल गए तो बरी और जवाब गलत हुए तो गए गत्ते से। यह भी कैसी विडंबना है कि अदालतों में सच बोलने के लिए धार्मिक ग्रंथों की सौगंध उठवाई जाती है-जब कि सत्य बोलना हमारा पहल कर्तव्य बनता है। इसके माने हम सच नही बोलते। बुलवाने के लिए धर्म का सहारा लेना पड़ता है तो उसका क्या, कई नामुराद इसके बावजूद भी झूठ बिखेरने से बाज नहीं आते।

सियासत तो झूठे-मनगढंत और बने-बनाए सवालों से छिलमछिल। वहां सवाल घड़े जाते हैं। थोपे जाते हैं। पैदा किए जाते हैं। खड़े किए जाते है। बनाए जाते हैं। चस्पा किए जाते हैं। उकेरे जाते हैं। बेसिर-पैर के सवाल खड़े करना सियासतअलियों की लत बनता जा रहा है। पहले सवाल था कि पीएम मोदी कोरोना का टीका क्यूं नही लगवाते। उन्हें तो सबसे पहले लगवाना चाहिए था। अब, जब उन्होंने नियम की पालना करते हुए टीका लगवा लिया तो भी सवाल। पहले क्यूं नहीं लगवाया। अब लगवाने से क्या फायदा। पहले लगवा लेते तो अब तक दस-बीस करोड़ लोग निपट गए होते। हो सकता है-दूसरे खेमे से सवाल खड़े हो जाएं-हमारे मुखिया ने तो लगवा लिया, तुम्हारे आका कब आगे आएंगे। आएंगे कि नही खुद तुम्हें पता नहीं। तुम हमारे पर तो नजर रख रहे हो, खुद वालों की खबर ही नहीं।
कुल जमा सियासत में जहां सुलगते सवालों की बौछार होनी चाहिए वहां बुझे और बीमार सवाल उछाले जा रहे हैं। ऐसे सवाल और सवाली सिर्फ वक्त जाया कर रहे हैं।