कब है बकरीद, और क्यों दी जाती है कुर्बानी? जानें

इस्लाम को मानने वालों में ईद का त्योहार बहुत खास है। साल में दो बार मनाई जाती है, पहली ईद को ईद-उल-फितर या बड़ी ईद कहा जाता है, जबकि दूसरी ईद को बकरीद या बकरा ईद या फिर ईद-उल-जुहा कहा जाता है। बकरीद के त्योहार को इस्लाम में कुर्बानी और त्याग के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है।

माना जाता है कि इस दिन हजऱत इब्राहिम अल्लाह के कहने पर अपने बेटे की भी कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। उस दिन से दुनिया भर के मुसलमान बकरीद के दिन अपने पाले हुए जानवर की कुर्बानी देते हैं।

बकरीद की संभावित तारीख

इस्लाम का हिजरी संवत् चांद पर आधारित है, इसलिए किसी भी तारीख का ऐलान चांद के हिसाब से ही होता है। इस साल बकरीद 20 या 21 जुलाई यानी मंगलवार या बुधवार के दिन पड़ेगी।

ये संभावित तारीख हैं क्योंकि सही तारीख का ऐलान ईद-उल-जुहा का चांद दिखने के बाद ही किया जाएगा। बकरीद दुनियाभर में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मनाते हैं। बकरीद में लोग सुबह नमाज अदा करते हैं।

ऐसे दी जाती है कुर्बानी

बकरीद को कुर्बानी का त्योहार कहा जाता है। इस दिन इस्लाम को मानने वाले अपने प्यारे जानवर की कुर्बानी करते हैं और कुर्बानी के गोश्त को रिश्तेदारों और जरूरतमंदों में बटा देते हैं।

इस दिन लोग बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी देते हैं। लेकिन बीमार, अपाहिज या कमजोर जानवर की कुर्बानी नहीं करते हैं। माना जाता है कि बकरीद पर उस जानवर की कुर्बानी देनी चाहिए, जिसे आपने अपने बच्चे की तरह पाला हो।

तीन हिस्से में बांटा जाता है कुर्बानी का गोश्त

बकरीद पर कुर्बान किए गए जानवर के गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। एक हिस्सा अपने के परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए और तीसरा हिस्सा गरीब और जरूरतमंद लोगों को दिया जाता है। बकरीद के दिन जमात और नमाज़ के बाद सारी दुनिया की सलामती की दुआ की जाती है।

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