
हम पड़ोसी से भले ही कितना प्यार करें। कितनी ही मोहब्बत करें। पड़ोसी के प्रति अपना फर्ज अदा करे, मगर बदले में हमें जो मिल रहा है। पड़ोसी हमारे प्यार का चुकारा किस प्रकार कर रहा है, उसे आखी दुनिया देख रही है। हम भी देख रहे हैं कि खरबूजे को देखकर खरबूजा कैसे रंगे बदल रहा है। पहले एक था फिर दो हुए अब तीसरे को भी हवा लग रही है। इन सबके बावजूद हमारी सेहत पर कोई फरक नहीं पडऩे वाला।
कारण ये कि भारत हमेशा शांति का समर्थक रहा है। भारत हमेशा अहिंसावादी रहा है। भारत का दुनिया के प्रति रवैया सहयोगात्मक रहा है। भारत अपने फर्ज निभाना बखूबी जानता है। दुनिया को भारत पे भरोसा है। कोरोनाकाल में हमने जिस सहयोग का प्रदर्शन किया। अपने पड़ोसियों को पहले मदद और अब वैक्सीन भेजी-उससे हम पर विश्वास और पुख्ता हुआ। तभी तो कहते हैं-‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा..। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
ऊपर के पेरेग्राफ को केंद्र में रख कर खासकर दो बिन्दुओं पर चर्चा की जाए तो ठीक रहेगा। हम चाहें तो पेरेग्राफ की एक-एक लाइन पर चर्चा कर सकते हैं। हरेक शब्द और अक्षर पर चर्चा की जा सकती है, लेकिन उस का कोई फायदा नही। फायदे के माने ये नहीं कि हम को आठाने-बाराने का नफा हो जाएगा या कि रूपए-सवा रूपए का घाटा हो जाएगा। आज कल लोग हर बात में नफा-नुकसान देखते हैं। किससे क्या मिलेगा अथवा क्या मिलने वाला है या कि क्या मिल गया, इस पर सब की गिद्ध नजर। मगर हम ऐसे नहीं।
जिससे मौहब्बत की, उससे की। दिल से की। सीना ठोक के की। बेपनाह की। यह अगले की जिम्मेदारी है कि वो हमारे प्यार को कितना सहेज कर रखता है। वो हमारी मोहब्बत को कितनी तवज्जोह देता है। नही देगा तो घाटा उसी को। हम ने तो प्यार बांटा है.. बांट रहे हैं.. और बांटते रहेंगे..। इसमें अगर धोखे मिले तो वह भी मंजूर। कोई बे-वफाई करे तो वह उसके करम। हमने तो अपने करम बांधे नहीं, वो जो करेगा उसका हिसाब खुदी हो जाणा है। अपन को कुछ करने की जरूरत नहीं। शंभो सब देखता है।
इसे कहते हैं शब्दों की कारीगरी। हथाईगिरों ने कितनी सफाई से अपनी बात कह दी। कहा था ना कि दो मुद्दों पर खास चर्चा करनी है, बातों-बातों में एक पर हो भी गई और पता सिर्फ उन्हीं को चला जो रिश्तों की गहराई को समझते हैं। हमारे लिए यही काफी है। हमें उनको प्यार का पाठ नहीं पढाना जो इसका मोल ना समझे। हमने प्यार दिया। खूब दिया। छक के दिया। बेइन्तहां दिया। बदले में हमें क्या मिला-धोखा। फरेब। जाहिलपना। कमीनापन। अशांति। घुसपैठ। मक्कारी। मौकापरस्ती। विश्वासघात। इन सब को हमामदस्ते में डालकर कूटें फिर छाणे, उसमें से जो निकलेगा उसे पाकिस्तान कहते हैं।
खुशकिस्मती है कि उसे हम जैसा पड़ोसी मिला। हमारी बदनसीबी है कि हमें उस जैसा नापाक पड़ोसी मिला है। बड़े सयाने कहते है-‘मित्र बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं। किराएदार हों तो बात अलग। पड़ोसियों से सात पीढियां निभनी है। यह आदर्श वाक्य उनके लिए जो निभाना जानता हो वरना नापाक के लिए कमीनापन सर्वोपरि। उसने हमारे साथ क्या किया और क्या कर रहा है वह आखी दुनिया ने देखा। पूरा विश्व देख रहा है। उसने भारत को तोडऩे के भतेरे प्रयास किए मगर वो नही जानता कि ये भारत है जो ना टूटा है ना टूटेगा। उसने भारत में अस्थिरता फैलाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। भारत में धमाके करवाए।
संसद पर हमला करवाया। मुंबई कांड उसी की देन। कभी घुसपैठ तो कभी अवैघ हथियारों का जखीरा भेजा। नकली करेंसी भेजी। कभी युद्ध-कभी छद्म युद्ध। हर बार पिटा मगर कुत्ते की दुम टेढी की टेढी। पहले तो एक था अब चीन भी चालबाजी पे उतर आया। हमने उसे भी पुचकारा। उसे भी प्यार दिया। हिंडोले झुलाए। झप्पिएं दी मगर उसने भी जात दिखा दी। अब नेपाल को देखो। वो भी खरबूजों को देख कर रंग बदलने लग गया। शुकर है कि जल्दी अक्ल आ गई। वो भूल गया कि पाक-चीन जैसे जाहिल किसी के नही होते और भारत जैसा अपना और कोई हो ही नही सकता।
एक बात और, हम चाहे कितने ही प्रेमी क्यूं ना हो। हम चाहे कितने ही सहयोगी क्यूं ना हो। हम चाहे कितने ही महान क्यूं ना हो। कितने ही ज्ञानी-ध्यानी-विज्ञानी क्यूं ना हो। कई क्षेत्रों में हम-चालबाज चीन और (ना) पाक का मुकाबला नहीं कर सकते। धोखेबाजी। विश्वासघात। भितरघात। कमीनेपन। ओछेपन। घटियापन और फर्जीवाड़े में उनका कोई मुकाबला नहीं। इससे ज्यादा शुद्ध फर्जीवाड़ा और क्या हो सकता हैं कि जिनने कभी गधागाडी नही चलाई वो हवाईजहाज उड़ा रहे थे। हमारे यहां खुदरा मुन्नाभाई और वहां थोक के भाव। (ना) पाक सरकार ने अपनी एयरलाइन (पीआईए) से 150 पायलटों के लाइसेंस रद्द कर दिए। वहां हुए एक भयानक विमान हादसे के बाद सरकार ने 860 पायलटों की जांच की तो उनमें से 262 पायलट मुन्नाभाई मिले। इन फरजियों ने लाइसेंस प्राप्त करने के लिए अन्य योग्य व्यक्तियों का इस्तेमाल किया। हवाईजहाज उनने उड़ाई-लाइसेंस इन के नाम बन गया। परीक्षा उनने दी-पास ये हो गए। आखिर भांडा फूट गया। जैसा फरजी पाकिस्तान वैसे फरजी उसके पायलट। ये तो चावल भर है। हो सकता है वहां के डॉक्टर्स-इंजीनियर्स-वकील-सीए-प्रोफेसर्स और अन्य पेशेवर भी शुद्ध और थोक के भाव फरजी मिल जाएं।