पहले रहते यूं तो कफ्र्यू लगता क्यूं

आखिर वही हुआ, जिसकी आशंका पहले ही जता दी गई थी। प्यार से कहा था। भाइबीरे से समझाया था। चेताया था। जगाया था। सावचेत किया था। सावधान किया था। सतर्क किया था, मगर हमने लापरवाह सिंहपना नही छोड़ा। इतना कुछ सहने-भुगतने के बावजूद बेपरवाहचंद बने रहे। नतीजा सामने है। कहने वाले जो कहते है इसे हमने शीर्षक बना के लटका दिया। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


मूल कहावत है-‘पहले रहते यूं, तो तबले जाते क्यूं। इस कहावत को किसने, कब और किस प्रसंग पे घड़ा इसका तो पता नही मगर शक होता है कि वो बंदा तबलावादक या तबला प्रेमी रहा होगा। आगे बढने से पहले साफ कर दें कि हम ना तो शक्की हैं ना वहमी। हम उन बड़े-सयानों के पद चिन्हों पे चलने वाले जिननेे शक को इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन बताया है। शक वो कीड़ा है, जो किसी के जीवन में घुस जाए तो खोखला कर देता है। वो कहते है-‘सुनी-सुनाई बात पे विश्वास मती करो, ना शक को पास फटकने दो।

कई बार दीदें देखी बात भी झूठी निकल जाती है और हम दूसरों की लगाई-बुझाई पे विश्वास कर बैठते है। हम को कहें कि हर आम और खास को-‘कुछ तो लोग कहेंगे.. लोगों का काम है कहना.. छोड़ो बेकार की बातों में.. कहीं बीत ना जाए रैना.. सरीखी पंक्तियो को जीवनचर्या में घोल देना चाहिए। इसके साथ-‘किस-किस को याद करें, किस-किस को रोएं.. आराम बड़ी चीज है.. मुंह ढक के सोएं.. भी जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाए तो क्या कहने। पण मानखा जमात ठहरी कानों की कच्ची। उसे अपनों से ज्यादा गैरों में यकीन करना ज्यादा सुहाता है। हथाईबाज उनमे नहीं। वो उन बंदों के पाळे में भी जिनने कहा था-‘वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नही है।


अब सवाल ये कि हकीम लुकमान कौन थे। उनका दवाखाना कहां था। दवाखाना दो टेम खुलता था यह एक टेम। खुल ने उनका समय क्या था। वो कौन सी दवा देते थे। खुद की बनाई दवा देते थे या बाजार की। अंगरेजी दवा देते या यूनानी अथवा आयुर्वेदिक। हकीम साब के पास कोई डिगरी थी या नीम हकीमपंथी करते थे। वो खानदानी हकीम थे या खुदी ने ये धंधा शुरू किया था। सवाल भतेरे-जवाब किसी के पास नहीं। मिलने भी नही है। कोई टोटे ठोक दे तो बात कुछ और है, वरना जैसे सवाल-वैसे जवाब।

लुकमान नाम के कोई हकीम थे भी या नहीं, अलबत्ता यो कहावत के हीरो जरूर बना दिए गए। कहावत भी सोलह आना टंच। लिहाजा हथाईबाजों ने भी उसे अच्छी तरह ठोक बजा के देख लिया और जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्स बना लिया कुछ भी कर लो मगर शक के कीड़े को कुलबुलाने मत दो वरना खुद तो जलेंगे ही-दूसरों तक भी आंच पहुंचेगी। दूसरे कोई गैर नही अपने ही होंगे। इतना कुछ कहने-समझने के बाद भी कोई नही समझे तो भांडे फूटे उनके। यह भी इतना कहा। इतना समझाया। नही माने तो वही हुआ जिसकी आहट पहले ही सुनाई पड़ गई थी।


जहां तक अपना खयाल है, समझने वाले समझ गए होंगे कि इशारा किस की तरफ है। कई बंदों को तो इशारे की भी तरफ हैं। कई बंदों को तो इशारे की भी जरूरत नहीं। वो तबले जाने का कारण जान गए तो यह भी जान गए होंगे कि कफ्र्यू क्यंू लगा। नहीं जाने तो हम हैं ना। उन्हें अच्छी तरह समझा देंगे कि तबले-ढोलक-पेटी क्यूं गए और कफ्र्यू क्यूं लगा। कफ्र्यू शौक-मौज के लिए नही लगाया जाता।

अफसर-मंतरी बैठे-बैठे सोचलें कि यार कफ्र्यू लगाए बड़े दिन हो गए.. चलो पांच-सात दिन के लिए लोगों को घरों मे कैद किए देते हैं। हो जाओ बेटा नजरबंद। ज्यादा से ज्यादा मकान की बालकॉनी में बैठकर सन्नाटानाक सड़कें या धींगा-मस्ती करते चौपायों को देखते रहो या फिर पांडु पुलिस की गाडिय़ों को। बालकॉनी मे बैठे-बैठे ऊब जाओ तो छत पे चले जाओ। मौका मिले तो गली की चांतरी पे आकर बैठ जाओ। पुलिस की जीप आती दिखे तो घर के अंदर। कोरोनाकाल से पहले देश-प्रदेश-जिले-शहर में जित्ती बार कफ्र्यू लगा दंगों-बलवों के कारण लगा। हिंसा-आगजनी रोकने के लिए लगा मगर इस बार एक अदृश्य विषाणु ने पूरी दुनिया को हिला के रख दिया। पहले घंटे-घंटिएं बजाई फिर दिवाली से पहले दिवाली मनाई। जनता कफ्र्यू लगाया। ढाई-तीन माह का लॉकडाउन रूपी कफ्र्यू कहा।

लॉकडाउन के दौरान आखा मुल्क ठहर गया। काम-धंधे बंद हो गए। शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई। शहर सन्नाटे की आगोश में सिमट गए। लोग घरों में कैद रह कर उकता गए। कई के यहां फाके पडऩे की नौबत आ गई। ताले खुले तो लोग बेकाबू हो गए। लंबे समय बाद खुली फिजां में सांस ली। बाजार-मंदियों में फिर से भीड़भाड़। चौक-चौबारे फिर से आबाद। भाईसेण सरकारी गाइड लाइन भूल गए।

जोश में ऐसे होश खोए कि नियम-कानून-कायदों की चिंदिया बिखेर दी। हथाईबाजों ने बाजारों में उमड़ी-उमड़ती भीड़ को देख कर आशंका जता दी थी कि तबले जाणे हैं। इसके लिए भतेरा समझाया। नियमों की पालना की अपील की। भाईबीरे से समझाया। चेताया। सावधान किया पर दिवाने-मस्ताने नही माने। नतीजा सामने है। राज्य के आठ जिलों में नाईट कफ्र्यू। जो करना है दिन को कर लो रात को घरों में कैद। इसमें भी गनीमत। फिर भी नही सुधरे तो दिन हैं और घर हैं, वाली स्थिति भी वापस आ सकती है। भगवान से प्रार्थना करो कि वो दिन वापस ना आए। धीरे-धीरे रातबंदी से भी छुटकारा मिल जाए। वो रात जल्दी आए।