
नई दिल्ली। अमेरिका का तीसरा युद्धक बेड़ा अब्राहम लिंकन भूमध्य सागर की ओर चल पड़ा है। रक्षा मंत्री आस्टिन लॉयड के निर्देश पर पेंटागन ने परमाणु पनडुब्बी को भी भेज दिया है। भारतीय सामरिक विशेषज्ञों को भी लग रहा है कि अमेरिका के हडक़ाने से मिडिल ईस्ट में हालात काबू में नहीं आ रहे हैं। पूर्व राजनयिक एसके शर्मा कहते हैं कि दुनिया में बढ़े प्राक्सीवॉर के खेल ने खतरनाक रूप ले लिया है। पूर्व विदेश सचिव शशांक भी पश्चिम एशिया में जो खेल अमेरिका ने शुरू किया था, उसे कई खिलाडियों ने सीख लिया है।
भारतीय विशेषज्ञों को यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि बांग्लादेश में चल रहे घटनाक्रम भी इसी प्राक्सीवॉर का हिस्सा है। इसने भारत की परेशानी को भी बड़े पैमाने पर बढ़ा रखा है। भारतीय विदेश सेवा के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं कि ईरान के पास कहीं से भी इस्राइल से लडऩे की क्षमता नहीं है। इस्राइल फायर पॉवर के मामले में ईरान पर बहुत भारी है, लेकिन ईरान और इस्राइल के बीच में कोई सीधा युद्ध नहीं होने वाला है। ईरान ने भी प्राक्सी वॉर का सहारा ले रखा है। फिलिस्तीन के संगठन हमास ने इस्राइल पर हमला किया था।
इसके जवाब में इस्राइल हमास पर सैन्य हमले कर रहा है। दूसरी तरफ लेबनान से हिज्बुल्लाह ने इस्राइल के सैन्य ठिकानों और अन्य को निशाना बनाना शुरू किया है। तीसरी तरफ यमन से हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में हमला करके बाधित कर रखा है। इन सबके बीच में हमास के पालिटिकल विंग के प्रमुख इस्माइल हानिए की हत्या हो गई है। इससे ईरान, हिजबुल्लाह, हमास, हूती बुरी तरह से भडक़े हैं।
गड़बड़ाई भू-राजनैतिक स्थिति में सब मिलकर एक साथ कर सकते हैं हमला
अंतरराष्ट्रीय सैन्य डिप्लोमेसी और स्ट्रेटजिक अफेयर्स पर निगाह रखने वाले भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल का कहना है कि धीरे-धीरे तनाव और युद्ध दोनों प्राक्सीवॉर के दौर से बाहर आ रहे हैं। पूर्व सैन्य अधिकारी को अंदेशा है कि जल्द ही पहले हिजबुल्लाह हमले का फ्रंट खोल सकता है। इसके बाद हमास के लड़ाके और यमन के विद्रोही तथा ईरान एक साथ इस्राइल के कई शहर को निशाना बना सकते हैं। बताते हैं ईरान की आर्थिक हालत किसी युद्ध को झेलने की नहीं है। उसके पास बहुत मारक हथियार भी नहीं हैं, लेकिन चारो तरफ से एक साथ हमला होने पर इस्राइल की मुसीबत बढ़ सकती है। पूर्व सैन्य अधिकारी का कहना है कि ईरान के वॉर रूम में इस तरह की जरूर कोई योजना बना रहा होगा।
पूर्व विदेश सचिव शशांक भी कहते हैं कि अब ईरान प्राक्सी से तालमेल बनाने में उस्ताद हो चुका है। शशांक के मुताबिक ईरान की इस क्षमता को इस्राइल और अमेरिका अच्छी तरह समझते हैं। दूसरे जितना ईरान और इस्राइल का तनाव बढ़ेगा, उतना ही अमेरिका उलझेगा। इसका रूस को यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में लाभ मिलेगा। रूस और ईरान काफी करीब हैं। चीन ने रूस और ईरान के साथ अपनी करीबी दिखाई है। रूस ने उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते के कई दरवाजे खोल दिए हैं। इससे पूरी दुनिया की भू-राजनैतिक स्थिति बड़े विचित्र दौर से गुजर रही है। सामरिक मामलों के एक और जानकार का कहना है कि मौजूदा दौर को न तो शीत युद्ध का दौर कह सकते हैं और दो ध्रुवीय। यहां तो बहुध्रवीय स्थिति बन रही है। कई मोर्चे पर तनाव बढ़ रहा है।
अमेरिका के यूएसएस अब्राहम लिंकन को भेजने का मतलब समझिए
यूएसएस अब्राहम लिंकन अमेरिकी नौसेना का तीसरा बेड़ा है। इस उसके अत्याधुनिक फाइटरजेट(एफ-18 सुपर हार्नेट, एफ-35 लाइडेनिंग), हेलीकाप्टर, और युद्धक साजो-सामान तैनात हैं। 2400 के करीब वायु सैनिक, 3000 हजार के करीब सैनिक कमांडो, ड्रोन, इलेक्ट्रानिक युद्ध के साजो-सामान, उन्नत निगरानी प्रणाली इसे काफी ताकतवर बनाती है। अब्राहम लिंकन महासागर में अमेरिका का एक बड़ा और चलता फिरता युद्धक बेड़ा है। इसमें पूरे बेड़े को दुश्मन की आंख और उसके वार से बचाने के लिए सभी साजो सामान तैनात हैं।
इसे भेजने का सीधा अर्थ है कि अमेरिका ने इस्राइल की रक्षा और उसके दुश्मनों के वॉर से बचाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता दिखा दी है। इसके अलावा अमेरिका की परमाणु पनडुब्बी भी भू मध्य सागर के रास्ते में है। यूएसएस जार्जिया,यूएसएस थियोडोर रूसवेल्ट भी किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं। भारतीय रणनीतिकार के अनुसार अमेरिका सीधे संदेश दे रहा है कि किसी भी युद्ध की स्थिति से ईरान को बचना चाहिए और वह इस्राइल के साथ खड़ा है। ईरान गुस्ताखी करेगा तो अमेरिका का सैन्य बेड़ा इसका माकूल जवाब देने के लिए तैयार है।
क्या ईरान अपने गुस्से को काबू में रख लेगा?
वरिष्ठ पत्रकार रंजीत कुमार कहते हैं कि इस्माइल हानिए की हत्या से पहले तक तो संभाव था। ईरान इस्राइल पर सैन्य हमला करने की धमकी भर देता रहता और समय के साथ शांति वार्ता, इस्राइल हमास का युद्ध विराम समझौता आदि आकार ले लेता, लेकिन अब मुश्किल लग रहा है। हानिए की हत्या के बाद ईरान के सामने न केवल अपनी संप्रभुता बल्कि अपनी स्थिति को भी बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है। दूसरे ईरान अकेले नहीं है। उसे भी कुछ देश समर्थन दे रहे हैं। इसलिए धीरे-धीरे संभावना एक क्षेत्रीय युद्ध के भडक़ने की ही है। यह स्थिति कभी भी आ सकती है।
भारत रख रहा है हालात पर सीधी नजर
पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि अभी तो भारत बांग्लादेश में बदलते घटनाक्रम पर विशेष ध्यान दे रहा है, लेकिन मध्य पूर्व एशिया हमारे लिए बहुत महत्वपूर्म है। इस्राइल, ईरान समेत कई देशों में हमारे लोग भी हैं और भारतीय हित भी है। फिलहाल तेल अवीव, तेहरान, बेरुत,ओम्मान और एरबिल के आसमान में तनाव की आशंका को देखते हुए हवाई उड़ानों को रोक दिया गया है। माना जा रहा है कि ईरान और उसका साथ देने वालों ने सैन्य कार्रवाई शुरू की तो इस्राइल भी चुप नहीं बैठेगा। इस स्थिति में तनाव काफी बढ़ सकता है। इसके चपेट में दुनिया के और भी क्षेत्र आ सकते हैं। इसके असर से दुनिया में एक बड़ी आर्थिक मंदी, भूख और गरीबी का खतरा मंडरा सकता है।
कैसे रुक सकता है कोई बड़े युद्ध का खतरा?
देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सचिवालय में काम कर चुके देश के पूर्व नौकरशाह का कहना है कि अमेरिका, रूस और चीन के आपसी हित टकरा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पहले नहीं टकराते थे, लेकिन पिछले दशक से टकराव की नीति भी बहुत बदल गई है। पिछले कुछ दशक से प्राक्सीवॉर जिस तरह से नए रूपों में उभरा है, उसके कारण स्थिति विस्फोटक हो रही है। इसके कारण देशों में अस्थिरता बढ़ती है। अस्थिरता ही तनाव को बढ़ाती है। निर्णायक स्थिति बनने में दिक्कतें आती है। अब ईरान जैसे देश अपनी संप्रभुता को लेकर चिंतित हैं। इसके कारण तनाव भी अनियंत्रित स्थिति की तरफ बढ़ रहा है।