
पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए वन्यजीवों का संरक्षण बेहद जरूरी
जयपुर। सेंटर फ़ॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज एनवायरमेंट प्रोटक्शन एंड क्लाइमेट चेंज की ओर से मंगलवार को जेएलएन मार्ग स्थित राजस्थान वानिकी एवं वन्यजीव प्रशिक्षण संस्थान (आरएफडब्ल्यूटीआई) में शहरी परिदृश्य में वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। आरएफडब्ल्यूटीआई की अध्यक्ष एवं आरएफडब्ल्यूटीआई की निदेशक शैलजा देवल ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान में विकास के लिए वृक्षों एवं जंगलों का कटाव भारी मात्रा में हो रहा है, जिससे वन्य जीवों का संरक्षण चुनौतीपूर्ण बन गया है। इससे ग्लोबल वार्मिंग एवं जैव विविधता पर दुष्प्रभाव भी पर्यावरण में देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि हमें आने वाली पीढ़ी के लिए वन्य जीवों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहे।
गैर कानूनी तरीके से हो रही है तस्करी

कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए डीसीएफ संग्राम सिंह कटियार ने बताया कि वर्तमान में दुर्लभ वन्यजीवों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गैर कानूनी तरीके से तस्करी की जाती है। तस्करी को रोकने के लिए उन्होंने उचित उपाय बताते हुए दिशा-निर्देश दिए। डीएफओ रमेश मालपानी ने रेस्क्यूर टीम के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। रेस्क्यूर की सहायता से सैकड़ों वन्यजीवों को बचाया गया रेस्क्यूरहै, जो वन्यजीव संरक्षण की दिशा में हमारे लिए गर्व का विषय है।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए एसीएफ कीर्ति राठौड़ ने बताया कि शेर, हाथी, पैंगोलिन और चिंकारा के शरीर के हर अंग की गैर कानूनी तरीके से तस्करी की जाती है। उन्होंने बताया कि पैंगोलिन का विश्व में अवैध व्यापार किया जाता है। साथ ही चाइना में इस जीव की दवाइयां बनाई जाती है। राठौड़ ने वन्यजीवों की तस्करी को रोकने के लिए सतर्कता एवं सजकता से कार्य करने पर बल दिया।
सुरक्षा संबंधी जानकारी दी

पशु चिकित्सक डॉ. अरविंद माथुर ने पैंथर और अन्य बड़े वन्यजीवों के रेस्क्यू और पुनर्वास से संबंधित उचित जानकारी वन्य जीव प्रेमियों एवं विभागीय कार्मिकों को प्रदान की। उन्होंने बताया कि चीता और पैंथर के रेस्क्यू के लिए टीम को कम समय में पहुंचना, ट्रेंकुलाइज करने की आवश्यकता ना हो तो ट्रैप केस लगाए जाएं औऱ घायल वन्य जीव के लिए विशेष सावधानी रखनी चाहिए। साथ ही रेस्क्यू टीम के पास जाल, बाई स्टिक, प्रोटेक्टिव केयर जैसी अन्य आवश्यक सामग्री होनी चाहिए। उन्होंने रेस्क्यू किये गए वन्य जीव को वन में सफलतापूर्वक छोडऩे की भी जानकारी दी।
सांपों की 42 प्रजातियां पाई जाती हैं
सांप के रेस्क्यू करने की जानकारी देते हुए होप एंड बियॉन्ड एनजीओ संचालक डॉ. जोए गार्डनर ने कहा कि राज्य में सापों की 42 प्रजातियां पाई जाती है, जिसमें से कोबरा, कॉमन करैत, सिंध करैत सहित 6 प्रजातियां जहरीली है। उन्होंने बताया कि हर प्रजाति के सांप के रेस्क्यू के लिए अलग-अलग विधियां अपनाई जाती हैं। साथ ही उन्होंने कोबरा सांप का सजीव प्रस्तुतीकरण दिया और वन्य जीव प्रेमियों एवं विभागीय कार्मिकों को विभिन्न सांपों को पहचानने की जानकारी साझा की।
रक्षा एनजीओ संचालक रोहित गंगवाल ने बताया कि राज्य में 500 से अधिक प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं । उन्होंने बताया कि घायल पक्षियों का रेस्क्यू करना चुनौतीपूर्ण विषय है। रेस्क्यू करते समय टीम को सावधानी रखनी चाहिए कि पक्षी को पकड़ते समय डावल वैप का उपयोग करें एवं पक्षी की आंखों को बंद कर दें जिससे पक्षी घबराए नहीं। उन्होंने बताया कि पक्षी को छोड़ते समय उसका निर्धारित इलाज किया जाए। साथ ही घायल पक्षी को 18 से 60 दिन में स्वस्थ होने के बाद ही छोडऩा चाहिए। इस दौरान नेचुरलिस्ट, नेचर गाइड्स, वन्यजीव प्रेमी, विद्यार्थी, रेस्क्युर, एनजीओ और विभागीय कार्मिक उपस्थित रहे।
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