वर्ल्ड ब्रेन स्ट्रोक-डे : महात्मा गांधी अस्पताल में हुई वेबिनार

मृत्यु का बड़ा कारण ब्रेन स्ट्रोक

जयपुर। मृत्यु का विश्व में दूसरा तथा भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारण ब्रेन स्ट्रोक है। लकवा पक्षाघात, अधरंग आदि नामों से लकवा को जाना जाता है। विश्व में हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित होता है तथा प्रत्येक 4 मिनट में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। यह जानकारी विश्व स्ट्रोक-डे के अवसर पर आयोजित वेबीनार कार्यक्रम में महात्मा गांधी अस्पताल के न्यूरोलॉजी विशेषज्ञों ने दी।

डॉ आरके सुरेका, डॉ गौरव गोयल, डॉ अमित अग्रवाल एवं डॉ वासुदेव पराशर ने अपने क्लीनिकल अनुभव साझा किए

वेबीनार में डॉ आरके सुरेका, डॉ गौरव गोयल, डॉ अमित अग्रवाल एवं डॉ वासुदेव पराशर ने अपने क्लीनिकल अनुभव साझा किए । न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ आर के सुरेका ने कहा कि अधिक ब्लड प्रेशर के कारण ब्रेन को खून की सप्लाई बंद हो जाती है अथवा नस फट जाती है उसे सेरेब्रल स्ट्रोक कहते हैं। इसका खतरा 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में अधिक बढ़ जाता है। ब्रेन स्ट्रोक हाइपरटेंशन एवं ब्लड शुगर के रोगियों में होने की संभावना अधिक रहती है। इस अवसर पर डॉ गौरव गोयल ने बताया कि यदि रोगी ब्रेन स्ट्रोक होने के 4 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंच जाए तो न्यूरोइंटरवेंशन तकनीक द्वारा बिना चीरे के थ्रोमबेक्टमी की जा सकती है ।

अत्यधिक मोबाइल लैपटॉप का प्रयोग, अत्यधिक शराब व धूम्रपान के सेवन से हो सकता है ब्रेन स्ट्रोक

यह उपचार 70 फ़ीसदी तक सफल रहता है इसी तरह कोइलिंग के जरिए भी नसों की रुकावट को खोला जा सकता है। केरोटिड धमनी की रुकावट को भी स्टेंट के जरिये खोला जा सकता है । वेबीनार में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ अमित अग्रवाल ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए नियमित दिनचर्या व व आहार जरूरी होता है । अपनी लाइफ स्टाइल को सक्रिय रखना चाहिए है। अत्यधिक मोबाइल लैपटॉप का प्रयोग, अत्यधिक शराब व धूम्रपान के सेवन से ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है उन्होंने कहा कि ब्रेन स्ट्रोक होने पर आवाज भी जा सकती है और आधा शरीर सुन्न पड़ जाता है । अस्पताल में उपचार के बाद इसके लिए स्पीच थेरेपी तथा फिजियोथैरेपी की मदद ली जाती है।

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ वासुदेव पाराशर ने कहा कि ब्रेन स्ट्रोक होने पर यदि रोगी की पुरानी क्रॉनिक डिजीज हो तो थ्रम्बोलाइज़ करना सबसे अच्छा होता है । यदि रोगी समय पर अस्पताल आ जाए तो पूरी 75 फ़ीसदी तक रिकवरी हो जाती है। समय पर उपचार नहीं किये जाने की स्थिति में लकवा अटैक के दोबारा होने की संभावना रहती है।