आपकी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में बच्चों की परवरिश में आपके दादा-दादी निभाते हैं अहम भूमिका

ऑफिस में काम करने वाले अभिभावकों को अक्सर एक चिंता सताती है। उनके बच्चे घर पर क्या कर रहे होंगे? उन्होंने खाना खाया होगा भी या नहीं? अगर वह अकेले बाहर निकल गए तो क्या होगा? इतना ही नहीं बचपन से ही अकेले रहने वाले बच्चों की परवरिश पर भी गलत प्रभाव पड़ता है। ऐसे में अभिभावक की पहली प्राथमिकता है बच्चों को अच्छी परवरिश देना। लेकिन अति व्यस्तता के कारण ऐसा मुमकिन नहीं हो पाता।

ऐसे में दादा दादी की भूमिका बहुत अहम होती है। उनके साथ बच्चे न केवल खुश रहते हैं बल्कि सुरक्षित भी महसूस करते हैं। दूसरी तरफ आप भी ऑफिस में मन लगाकर काम करते हैं। आजकल रोजगार के लिए लोग छोटे शहरों को छोड़कर महानगरों की तरफ जा रहे हैं। आज की युवा बुजुर्ग माता-पिता को अपने पुराने घर में छोड़कर बड़े शहरों में नई दुनिया बना रही है।

शुरुआत में यह सब दिल को बेहद खुशी देता है लेकिन बाद में जब नई पीढ़ी का आगमन होता है तो जिम्मेदारियां बढऩे लगती हैं। तब उन्हें एहसास होता है कि बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए ग्रैंडपेरेंट्स का साथ होना कितना जरूरी है। इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि इन दोनों पीढयि़ों के लिए एक दूसरे का साथ कितना जरूरी है।

दूर होता है बच्चों का अकेलापन

आजकल केवल पुरुष ही नहीं स्त्रियां भी कामकाजी होती हैं। ऐसे में दादा-दादी या नाना-नानी का साथ न केवल बच्चों का अकेलापन दूर करता है बल्कि पेरेंट्स भी तनाव मुक्त होकर अपने ऑफिस में मन लगाकर काम करते हैं।

संस्कारों की पकड़ हो मजबूत

परिवार के बुजुर्ग परंपरा और संस्कृति से जुड़े होते हैं। ऐसे में वह अपने पोते-पोती को भी वही संस्कार देना चाहते हैं जो उन्हें उनके माता-पिता या दादा-दादी द्वारा दिए गए थे। दादा-दादी के साथ रहने पर बच्चे छोटी उम्र से ही मंत्र, श्लोक आदि से परिचित रहते हैं। चूंकी स्त्रियां अपने बच्चे को चाह कर भी कुछ नहीं सिखा पाती हैं इसलिए बुजुर्ग बच्चों में आई उस कमी को कमी को पूरा करते हैं।

परवरिश में प्यार जरूरी

हमें लगता है कि नाना-नानी या दाद-दादी के लाड प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं, पर ऐसा नहीं है। वर्षों से चली आ रही यह प्रचलित धारणा गलत है, पुराने समय में शायद ऐसा होता होगा पर आज के बुजुर्ग जागरूक हैं। साथ ही वे अनुशासन की अहमियत को ना केवल समझते हैं बल्कि बच्चों को समझाते भी हैं। इसलिए वे उन्हें मनमानी करने की छूट नहीं देते हैं। वे भी बच्चों की हर गतिविधि में उनका साथ देते हैं। वे उनके साथ बातें करने में, खेलने में, शाम को पार्क में घूमने में आदि में साथ निभाते हैं ऐसे में बच्चों और बुजुर्गों का रिश्ता और गहरा होता है।