भेदियापंथी का इनाम!

राष्ट्र में महाराष्ट्र और महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है उसे राष्ट्र के साथ-साथ महाराष्ट्र वाले भी देख रहे है। एक तो घमासान और दूसरा भेदियागिरी का इनाम। हम ने तब कहा था। कई बार कहा था। चीख-चीख के कहा था। आज वह अक्षरस सच्चा और खरा साबित हो रहा है। शहर की एक हथाई पर आज इसी के चर्चे हो रहे थे।

जो है वह सब के सामने है। राष्ट्र में महाराष्ट्र आज-कल का तो है नहीं। शायद ऐसा भी नहीं कि पहले कोई दूसरा नाम हो फिर बदलकर दूसरा कर दिया गया हो। राष्ट्र में महाराष्ट्र कल भी था आरज भी है और भविष्य में भी रहेगा। अगर किसी ने महा से प्रेरणा ली होती तो कई स्थानों पर महा नजर आते। सिर्फ किसी के आगे महा लगाने भर से किसी का रूप-सिणगार नहीं बदल जाता। अगर कोई अपनी मरजी से ऐसा कर ले या मस्ती-मजाक में महा चस्पा कर ले, उसका तो कोई इलाज नहीं। हमने ऐसे-ऐसे येडे देख रखे है जिन्हें सूथण संभालना तक नहीं आता मगर नाम ज्ञानचंद। इमने धनीराम को भंगार लेते देखा। हमने धनराज को भीख मांगते देखा। बिग बी को सदी का महानायक यूं ही नही कहा जाता। उन्होने बॉलीवुड में पचास साल सेवाएं दी और आज भी सक्रिय है। नंदा-महानंदा यूं ही नहीं बनी। भारत में महाभारत यूं ही नहीं हुआ। नदी-महानदी खामखा नहीं बनी। हर महा के पीछे कोई ना कोई सॉलिड कारण रहा होगा वरना यहां-वहां भतेरे। कहां और जहां को भी ढूंढने की जरूरत नहीं। महा तेरी महिमा न्यारी। राष्ट्र में महाराष्ट्र है तो भी राज्य है और महाराष्ट्र राष्ट्र ममें है तो भी स्टेट है। वहां इन दिनों जो राजनीति हो रही है। देश देेख रहा है। वहां पिछले दिनों जिस तरह की सियासत हुई। आखे देश ने देखा।
हथाईबाजों ने तब भी कहा था कि चाचा-भतीजा मिलीभगत की राजनीति कर रहे है। लिखा भी था कि वहां जो कुछ हुआ, वह चाचा की लिखी पटकथा है जिस पर भतीज बादशाह मंचन का रहे है। अब वह लिखावट सौ फीसदी खरी उतरती नजर आ रही है। भेदियापंथी का इनाम उस लिखाई को पुख्ता कर रहा है।

भेदियापंथी का इनाम के बारे में पढ़-सुन कर हैरत हो रही होगी। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। इसके अपने कारण है। अपने यहां भांत-भांत के इनाम, जिन की गिनती करना मुहाल है। एक-एक की गिनती करने बैठ गए तो पखवाड़ा गुजर जाएगा मगर खास-खास को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। इनाम क्यूं दिए जाते है, इस पर ज्यादा पत्रवाचन करने की जरूरत नहीं। पहला इनाम किसने दिया। किस को दिया। किस बात पर दिया इसका अधिकृत लेेखाजोखा तो किसी के पास नहीं। इत्ता जरूर है कि इसकी शुरूआत हजारों-हजार साल पहले हुई थी और आज भी जारी है। आने वाले समय में भी चलती रहणी है।

इनाम अच्छे कार्यो के लिए प्रदान किए जात है। जितने भी क्षेत्र है उनमें जो बंदे उल्लेखनीय कार्य करते हैं उन्हें इनाम देकर नवाजा जाता है। उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। शिक्षा से लेकर खेल के क्षेत्र में। चिकित्सा से लेकर सफाई के क्षेत्र में। वीरता से लेकर शूरवीरता के क्षेत्र में। सामाजिक क्षेत्र से लेकर आर्थिक क्षेत्र में। साहित्य से लेकर रंगमंच के क्षेत्र में। हालीवुड से लेकर बॉलीवुड में। ज्ञान से लेकर विज्ञान के क्षेत्र में। ज्योतिष क्षेत्र से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में। कानून के क्षेत्र से लेकर पुलिस और सैन्य क्षेत्र में। कुल जमा अपने यहां हर क्षेत्र में अच्छे और गौरतलब कार्य करने वालों को पुरस्कृत करने की परंपरा रही है। सियासी क्षेत्र में भी ऐसा होता है। फलांचंदजी को साल का सर्वश्रेष्ठ विधायक घोषित किया गया। ढीमकाचंदजी साल के सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार के लिए चुने गए। यहां तो ठीक है। इसके आगे जहान और भी है। आज अपने सर्वश्रेष्ठ हुजूरचंदसा को पद देकर पुरस्कृत करते है। आलाकमान की चमचागिरी करने वालों को संगठन या सरकार में धांसू पद देकर नवाजा जाता है। अव्वल दर्जे के हाजरियों और कुलसेवकों को ओहदे प्रदान कर सम्मानित किया जाता रहा है। अब उसमें भेदियागिरी पुरस्कार भी शुमार हो गया लगता है। लगता क्या है शुमार हो ही गया। महाराष्ट्र में उसका लोकार्पण होते सबने देखा।

महाराष्ट्र में पिछले दिनों क्या हुआ और इन दिनों क्या हो रहा है उसे आखा देश देख रहा है। वहां पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनावों में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, हां भाजपा-शिवसेना गठबंधन को सरकार बनाने लायक सीटें जरूर मिल गई मगर शिवसेना द्वारा सीएम पद देने की जिद पर गठबंधन में दरार पड गई। इसका फायदा उठाकर एनसीपी और कांग्रेस ने शिवसेना को सीएम पद देकर भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया। इस से पहले हुए एक नाटकीय घटनाक्रम में एनसीपी नेता और शरद पवार के भतीजे अजित पवार भाजपा खेमे में चले गए। उनके बहकावे में आकर देवेन्द्र फडणवीस ने सीएम और अजित ने डीसीएम पद की शपथ भी ले ली। मगर जादुई आंकड़ा नहीं जुटा सके। नाटक दर नाटक के बाद फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ गया उसके बाद एनसीपी और कांग्रेस की बैसाखी क सहारे शिवसेना के उद्धव ठाकरे सीएम बने।

अब वहां मंत्री पद और विभागों को लेकर जो सिर फुडाई हो रही है उसे राष्ट्र और महाराष्ट्र दोनों देख रहे है। वहां अजित पवार को डीसीएम का पद फिर दिए जाने से साफ है कि उनका भाजपा के साथ जाना पूर्व नियोजित था। अजित ने भेदियापंथी दिखाई उसका पुरस्कार मिल गया। इस भेदियागिरी को भी राष्ट्र और महाराष्ट्र दोनों देख रहे है। वाह री राजनीति… वाह रे राजनेता..!