गुनाह के अंत का जश्न

आज हथाईबाजों को किसी की मौत पर फिर खुशी हुई। मन हुआ कि खुल कर जश्न मनाएं। भाईसेणों को न्यौतें। निमंत्रण दें। पार्टी करें। जीमण जिमाएं मगर कोरोनाकाल को देखते हुए सारा इंतजाम रद्द कर दिया गया। सोचा कि स्थगित कर दें, पर ऐसा भी करने का नहीं। जब जश्न मनाना है तो खुलकर मनाओं, नहीं तो मति मनाओ। यही सोचकर प्रोग्राम कैंसिल कर दिया मगर मन में जश्न। तन में जश्न। जैसी खुशी हमारे मन में खदबदा रही है, वैसी लाखों-करोड़ों लोगों के मन से फूट रही होगी। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
आगे बढने से पहले बता दें कि हथाईबाज इतने पत्थर दिल नहीं, जो किसी की मौत पे जश्न मनाएं। हम इतने संवेदनहीन नहीं, जो किसी की मौत पर खुशी मनाएं। हम इतने निष्ठुर नही जो किसी के मरने पर राजी होवें। हथाईबाज इतने संगदिल नही जो किसी के ‘टेंÓ होने पर पार्टी-सार्टी करें लेकिन कुछ हादसे ऐसे होते हैं जिन पर अफसोस कम और खुशी ज्यादा होती है। आप एक बात बताइए-इंसानियत के दुश्मन की मौत पर आप मातम मनाएंगे या जश्न। गली-गुवाड़ी के नामचीन गुंडे की मौत पर आप ‘थेपड़ीÓ देने जाएंगे या मन ही मन में खुशी मनाएंगे? जहां तक हमारा खयाल है, आप का फैसला मौत की खुशी में होगा। हमें पता है कि आप भी इतने निष्ठुर नही है जो किसी की मौत पर लड्डू बांटे। मगर कुछ मौतें ऐसी होती हैं जिन पर ऐसा करने का मन करता है, यह बात दीगर है कि लोक लिहाज के कारण हम ऐसा कर नहीं सकते। हथाईबाजों के साथ भी वैसा ही हुआ। मन तो काफी-कुछ करने को हुआ, पण कोरोनाकाल के नियम और सामाजिक बंदिशें आड़े आ गई।
जहां तक हमारा खयाल है, समझने वाले समझ गए होंगे कि इशारा किस की तरफ है। इस का क्लू पहले पेरेग्राफ के प्रारंभ में ‘फिर खुशी हुईÓ से मिल गया होगा। इसका मतलब यह कि हथाईबाजों के साथ-साथ आप लोग इससे पहले भी ऐसा कर चुके हैं। याने कि किसी की मौत पे इससे पहले भी खुशियां मनाई जा चुकी हैं। इसका जवाब ‘हांÓ में। हां, हमने इससे पहले भी किसी की मौत पर खुशी मनाई थी। फरक इतना कि वो मौतें थोक के भाव थी और ये थोक में होते हुए भी फुटकर। वहां एक साथ चार को टपकाया गया था और यहां एक-एक करके पांच-छह-सात। पहले चंगु-मंगुओं को टपकाया और आतंक के विकास का अंत हो गया। दूसरी खुशी का क्लू ‘आतंक के विकास का अंतÓ में नजर आ जाएगा।
आप को तेलंगाना में एक महिला डाक्टर के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और फिर उसे जिंदा जला कर मार देने की घटना याद होगी। यकीनन होगी। देश में निर्भया कांड जैसे कुछ अन्य ऐसे महाकांड हो चुके हैं जिन्हें देशवासी कभी भूल नही सकते। निर्भया के दरिंदो को फांसी देने में सालों लग गए मगर तेलंगाना कांड में ऐसा नही हुआ। हैदराबाद पुलिस ने महिला डाक्टर के साथ दुष्कर्म कर उसकी नृशंस हत्या करने वाले चार आरोपियों को गिरफ्तार किया। अगले दिन उन्हें मौका तस्दीक करवाने ले जाया गया, आरोप है कि उस दौरान उन्होंने पुलिस वाले की राइफल छीन कर भागने की कोशिश की जवाबी कार्रवाई में चारों आरोपी मारे गए। इसे मुठभेड़ का नाम दिया गाय। हमें पता है कि कानून इस की इजाजत नहीं देता। ऐसे तो पुलिस बगैर कोई कानूनी-नियम मुजब कार्रवाई किए किसी को भी मुठभेड के नाम पे टपका देती। सिक्के के दूसरे पहलू के अनुसार जो भी हुआ ठीक हुआ। काहे की जांच-काहे की तफ्तीश। केस सालों चलता है। इसके माने दुष्कर्मियों को सालों तक पालों। उन्हें रोटी-बाटी खिलाओ। मुस्टंडा बनाओ। जमानत हो जाए तो और किसी की बहन-बेटी की अस्मत खतरें में। इससे बेहतर तो यही है कि मुठभेड़ दिखा के टपका दो और मामला नक्की। कथित मानवाधिकारवादी रोते रहेंगे।
हथाईबाजों ने शुक्रवार को कानपुर के कुख्यात गंैगस्टर विकास दुबे की टपकन पे खुशी मनाई। इस समाज कंटक ने गत 2-3 जुलाई की मध्य रात्रि चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में पुलिस के आठ जवानों को गोलियों से भून दिया था। उस पर पांच दर्जन मुकदमें चल रहे थे। वो हत्या का आरोपी। वो लूट का आरोपी। वो फिरौती का आरोपी। उस पर यूपी के एक दरजा प्राप्त मंत्री की थाने में घुस कर हत्या करने का आरोप। वह करोड़ों की संपत्ति का सरदार। वो अवैध वसूली में माहिर। वो भाई। उस पर सियासी हाथ। अपने आप को तुर्रम खान समझने वाला विकास शुक्रवार की सुबह कानपुर देहात क्षेत्र के सचेंडी क्षेत्र में कथित मुठभेड में मारा गया। उसे गुरूवार को उज्जैन के महाकाल मंदिर क्षेत्र में गिरफ्तार किया गया था। कानूनी प्रक्रिया के बाद उसे यूपी पुलिस को सौंप दिया गया। जिस गाड़ी में उसे बिठाया गया था वह शुक्रवार सुबह कानपुर देहात क्षेत्र में पलट गई। विकास ने मौका देखकर सिपाही का हथियार छीन कर भागने की कोशिश की। आरोप है कि उसने पुलिस पर फायर किए जिसमें दो सिपाही घायल हो गए। जवाबी कार्रवाई में वह मारा गया।
इस कांड को लेकर तरह-तरह की बातें बन रही है। कुछ लोग मुठभेड को फरजी बता रहे हैं। ज्यादातर लोग खुश-चलो आतंक का अंत हुआ। हथाईबाज भी उनमें शामिल। लोगों में कानून का खौफ जरूरी है। भय बिन प्रीत नहीं। ऐसे तत्व समाज के लिए जहरीले नाग के समान है। उन्हें पालने की बजाय ‘टपकानाÓ ज्यादा बेहतर है। आप का क्या ख्याल है?