थाळी की गूंज

एक फिलिम आई थी, जिस का नाम था- ‘कर्मा उस में दिलीप कुमार आतंकवादी का किरदार निभा रहे अनुपम खेर को एक चमाट मारते हैं, फिर कहते हैं- डॉ डेंग, इस थप्पड़ की गंूज सुनी तुम ने। कोई यह ना समझे कि हमने थप्पड़ की जगह थाळी की गूंज सुना दी। कोई यह भी ना सोचे कि हम कोरोना को भगाने के लिए थाळी बजा रहे हों। हकीकत तो यह है कि इन दिनों लगभग सारे खबरिया चैनल्स पर थाळी बज रही है। संसद से सड़क तक थाळी की गूंज। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


लटका शीर्षक पढने के बाद ज्यादातर लोगों के जेहन में पीएम सर नरेन्द्र मोदी वाली ‘थाळी बज रही होगी। मोदीजी ने कोरोना का प्रकोप पसरने से रोकने के लिए आखे देश के थाळी बजवाई थी। हम ने भी सपरिवार ‘तिपड़े चढ कर ‘थाळी कूटी। किसी ने घंटी बजाई। किसी ने घंटा बजाया। किसी ने शंख फूंका। कहते हैं कि इन तरंगों से हवा में तैरते विषाणुओं का खात्मा हो जाता है। थाळी-घंटी वादन के बाद पूरे देश ने बत्तियां गुल कर दीए जलाए.. दिवाली मनाई। हो सकता है भाई लोगों ने मोदी थाळी को याद कर लिया हो। सोचा कि वही गूंज तो पिंड में नही आ रही है। पण वैसा नही है।


हो सकता है कई लोगों ने इस गूंज को नए मेहमान की आमद का संदेश समझ लिया हो। अपने यहां पुत्ररत्न की प्राप्ति होने पर घर की छत पर चढ कर चम्मच अथवा बेलन से थाळी बजाने की परंपरा रही है। अब तो पुत्री मणि के आगमन पर भी ऐसा किया जाता है। पहले पुत्र होने पर लड्डू बंटते थे। अब पुत्री होने पर भी बंटते हैं। सोचा होगा कि थाळी की गूंज के पीछे नए मेहमान आने की सूचना छुपी होगी। ऐसा करने पर पूरा क्षेत्र जान जाता कि फलां के यहां ‘डीकरा आया है। अब परिवर्तन इतना सुंदर कि ‘डीकरी के आने पर भी लड्डू बंटते हैं.. थाली बजती है। अचकच हुए पड़ोसियों को पूछना पड़ता है-‘बाईसा रे कांई हुओ.. या कि भाभीसा रे छोरो हुयो ‘क छोरी। हम तो लुड़का-लुड़की कको बरोबिट्ट मानते आए है.. मान रहे हैं.. और मानते रहेंगे।


‘थाळी रसोई की रौनक। आप को बरतन भांडों के नाम गिनाने को कहें या कि परीक्षा में सवाल आए कि दस बरतनों के नाम लिखो, तो दावा है कि सबसे पहली थाळी ही आएगी उसके बाद कटोरी-चम्मच अथवा गिलास-लोटा या कि भगोना-कढ़ाई। बिन थाळी रसोई सून। बिन थाळी अंदर के कमरे सून। कमरे तो कमरे हैं-क्या अंदर वाले और क्या बाहर वाले। ऐसे लोग भी हैं जो एक कमरे में बसर कर रहे हैं।

उनके लिए वही स्टडी रूम। वही बेड रूम। वही गेस्ट रूम और वही डाइनिंग रूम। कमरे के एक कोने में रसोई और बाकी में सुविधा और स्थान के हिसाब से सामान की जमावट। कुल जमा वन रूम फ्लैट। घर चाहे दो-चार कमरों का हो या एक-दो का। पारंपरिक परिवारों में थाळियों की सजावट सरीखी दिखती है। टांग पे खडी कर के रखी थाळिएं उन के कटोरियों की किलोनुमा सजावट। सबसे नीचे छह-फिर पांच-फिर चार-उन पर तीन-दो-एक। साइड में गिलासों की सजावट। इस तरफ भगोने और उस तरफ दूसरा सामान। ये भांडे वार-त्यौंहार रसोई में आते हैं और काम में लेने के बाद ‘बेक टू पंछीत। डेली यूज के बरतन रसोई में सजा के रखे जाते हैं। वहां भी थाळी सारे बरतनों की किलंगी।


शादी-विवाह के दौरान अपने यहां भांत-भांत का सामान देने की परंपरा रही है। यदि कोई पक्ष जबरदस्ती कुछ लेता है या कि फलां-ढीमका लेने पर अड़ जाता है, वह गलत है। ऐसे मांगीलालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए वरना समाज में राजी-खुशी देने का रिवाज भी रहा है। बरतन भांडों में थाळी ना हो, ऐसा हो ही नही सकता। हमें वो दिन याद है-तब शादी-ब्याह के ‘जीमण घर के ‘डागळों पर हुआ करते थे। मां, कसम भोजन का इतना आनंद आता कि शब्दों में बयां करना नामुमकिन। छत पर बिछी चांदनिया और बाजोट पर सजी थाळी-कटोरियां और गिलास। कई लोग साथ बिराज के खाना खाते। एक थाली में छह-आठ जन। पर हथाईबाज जिस थाळी की बात कर रहे हैं वह इन दिनों खबरिया चैनल्स पर गूंज रही है। पहले सुशांत फिर रिया-फिर कंगना फिर दिशा फिर ड्रग और अब थाळी।


हथाईबाजों ने पहली बार राज्यसभा में थाळी-थाळी सुनी। एक पार्टी की महिला सांसद ने किसी पे तंज कर दिया कि जिस थाळी में खाते है, उसी में छेद करते हैं। उसके बाद तो आखे देश में थाळी-थाळी हो गई। किसी ने कहा थाळी किसी ने सजा के नही दी, हम ने अपनी मेहनत से बनाई है। किसी ने कहा छेद गंजेड़ी-नशेड़ी कर रहे हैं.. हम तो स्वच्छताग्रही हैं। कही से ऐसी थाळी आप के बेटे-बेटी के सामने रखी जाती तो क्या होता है.. के सुर फूूटे तो कही से कुछ और आवाज आती सुनी।
कुल जमा खबरिया चैनल्स पर थाळी की गूंज। इलेक्ट्रोनिक मीडिया महंगाई भूल गया। किसानों की समस्याएं भूल गया। आम लोगों की तकलीफें ताक पर। फिलहाल थाळी का ही रट्टा। हो सकता है कल देगड़ों-भगोनों की खनक सुनाई पड़ जाए। इसी बात पे ठोको थाळी..।