8747. देखा देखी दरड़ में

daswa_ved
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मूरख मारग छोड, देखा देखी दरड़ में।
हालै होडाहोड, गाडर ज्यूं गोविंदिया।।
जो मूर्ख होते हैं वे दूसरों की देखा-देखी करते हुए उनके अनुसार चलने लगते हैं और गडढे में जा गिरते हैं ठीक भेडों की तरह।
(गतांक से आगे) जब सेठ ने सेठानी से हलवा बनाने को कहा तो सेठानी कड़ाही मांगने के लिए पड़ोसिन के यहां गई। पड़ोसिन को बड़ा आश्चर्य हुआ कि आज उसके यहां हलवा बनाया जा रहा है। तब पड़ोसिन ने सेठानी से पूछा कि सेठ इतने रूपये कहां से ले आया, इसका रहस्य मुझे भी बतलाओ। सेठानी ने कहा कि अभी उन्होंने इस बारे में मुझे कुछ नहीं बतलाया है, लेकिन मैं उनसे अवश्य ही यह सब पूछ कर तुम्हें बतलाऊंगी। मेरा विश्वास करो। घर आने के बाद सेठानी के पूछने पर सेठ कुछ नही बोला। उसने बात को टालने की बहुत चेष्टा की, लेकिन जब उसने अधिक आग्रह किया तो सेठ ने विषाद पूर्ण स्वर में कहा कि क्या बार बार पूछती हो, ये रूपये आक चबाकर लाया हूं। सेठानी ने सेठ से यह सुनने के बाद जाकर पड़ोसिन को ऐसा ही कह दिया।

 

अब पड़ोसिन अपने पति को धन कमाकर लाने के लिए प्रेरणा देने लगी। उसने आक चबाने वाली बात भी अपने पति को बतला दी। पत्नी द्वारा बार बार उत्तेजना दिलाये जाने पर सेठ का पड़ोसी अगले दिन सवेरे ही पास के जंगल में पहुंचा और आक चबाने लगा। आक चबाने के कारण वह तुरंत ही अंधा हो गया। उसे असहय पीडा होने लगी। निदान किसी प्रकार वह अपने घर पहुंचा। अपने पति की यह हालत देखकर पडोसिन को बड़ा क्रोध आया वह सेठ सेठानी की शिकायत करने के लिए राजदरबार में पहुंची। तब राजा ने सेठ को दरबार में तलब किया।

 

सेठ ने जाकर राजा को सारी बात ज्यों की त्यों बतला दी और कहा कि मेरे कहने का आशय तो यह था कि ये रूपये में बड़ी जिल्लत उठाकर लाया हूं। इन रूपयों के लिए मुझे वह काम करना पड़ा जो कदापि मेरे योग्य न था और यदि कोई परिचित व्यक्ति मुझे उस हालत में देख लेता तो शायद मैं लौटकर मुंह दिखाने के लिए घर भी न आता। आक चबाकर लाने का तात्पर्य अपमान की कड़वी और विषैला घूंट ही था। मेरा पड़ोसी अपनी मूर्खता के कारण अंधा बन बैठा है। भला कोई आक चबाने से रूपये मिलते हैं। राजा ने सेठ की बात के औचित्य को स्वीकार किया और प्रार्थी से कहा कि तुम अपनी मूर्खता के कारण ही अंधे बने हो। इसके लिए सेठ सेठानी जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि तुम्हारी पत्नी की मूर्खता है। इस तरह राजा ने उचित फैसला दिया।